राजयोग: स्वामी विवेकानंद | Rajyog Hindi PDF

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राजयोग – Rajyog Swami Vivekananda PDF Free Download

राजयोग: स्वामी विवेकानंद

‘वस्तु पर दीर्घ काठ चिन्तन और आलोचना के वाद, पत्र के विस स्थान पर यह मूलाधार पछ अवस्थित है, उसे गरम होते देखते हैं तो, यदि इस मुण्डलिनी पति को जगाकर उसे शातभाव से सुषुम्ना नाली में से प्रवाहित करते हुए

एक केन्द्र से दूसरे केन्द्र को ऊपर लाया जाय, तो बह ज्यो-यो विभिन्न केन्द्रो पर क्रिया करेगी, त्यो-त्यो प्रवर प्रतिक्रिया की उत्पत्ति होगी।

जब शक्ति का विलकुल सामान्य अश किसी स्नायु-तन्तु के भीतर से प्रवाहित होकर विभिन्न क्न्द्रो से प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है, तब वही स्वप्न भववा कल्पना के नाम से अनिहित होता है।

फिन्तु जब मूलाधार में सचित विपुलायतन शक्तिपुत्र दौर्घकालव्यापी तीव् ध्यान के बल से उबुद्ध होकर सुपुम्ना-मार्ग में भ्रमण करता है और विभिन्न केन्द्रो पर आयात करता है,

तो उस समय जो प्रतिक्रिया होती है, वह बड़ी ही प्रबल हैं बह स्वप्न अथवा कल्पनाकालीन प्रतिक्रिया से तो बनन्तगुनौ थेष्ठ है हो, पर जाग्रत्कालीन विषय-ज्ञान की प्रतिक्रिया से भी अनन्त गुनी प्रबल है ।

यही अतीन्द्रिय अनुमति है । फिर जब वह शक्तिपु समस्त ज्ञान के, समस्त अनुभूतियो के केन्द्र स्वरूप मस्तिष्क में पहुंषता है, तब सम्पूर्ण मस्तिष्क और उसके अनुभवसम्पन्न प्रत्येक परमाणु से मानो प्रतिक्रिया होने लगती है।

इसका फल है डॉन का पूर्ण प्रकाश या आत्मानुभूति । कुण्डलिनी शक्ति जैसे-बैसे एक केन्द्र से दूसरे केन्द्र को जाती है,

वैसे-हो-बीले मन को एक-एक परदा सुलता जाता है और तब योगी इस जगत् की सूक्ष्म मा कारण अवस्था की उपलब् करते जिस किसी प्रकार की उपासना हो,

बहु, शजञातभाव रे अमवा अज्ञात भाव से, उसी एक लक्ष्य पर पहुंचा देती है अर्थात् उससे कुण्डलिनी जाया हो जाती है ।

जो सोचते है कि मैंने अपनी प्रार्थना का उत्तर पाया, उन्हें मालूम नहीं कि प्रार्थना रूप मनोवृत्ति के द्वारा वे अपनी ही देइ में स्थित भनन्त शक्ति के एक दिन्दु को जयाने में समर्थ हुए है।

अब भी बहुत से मन्दिरो और गिरजापरों में यह भाव देखने को मिलता है; परन्तु अधिकतर स्थलो मे लोग इनका उद्देश्य तक भूल गए हैं।

चारो ओर पवित्र चिन्तन के परमाणु सदा स्पन्दित होते रहने के कारण वह स्थान पवित्र ज्योति से भरा रहता है।

जो इन प्रकार के स्वतंत्र कमरे की व्यवस्था नहीं कर सकते, वे जहाँ इच्छा हो वही बैठकर सावना कर सकते है शरीर को सीवा रखकर बैठो।

ससार मे पवित्र चिन्तन का एक स्रोत वहा दो मन-ही-मन कहो-तसार में सभी सुखी हो, सभी शान्ति काम करें, सभी आनन्द पावे। इस प्रकार पूर्व पश्चिम, उत्तर, दसिंग चहुँ ओर पवित्र चिन्तन की धारा यहा दो ऐसा जितना करोगे, उतना ही तुम अपने को अच्छा अनुभव करने लगोगे बाद मे देखोगे, ‘दूसरे सब लोग स्वस्थ हो, यह चिन्तन ही स्वास्थ्य लाभ का सहज उपाय है।

दूसरे लोग सुखी हो.’ ऐसी भावना ही अपने को सुखी करने का सहज उपाय है। इनके बाद जो लोग पर विश्वास करते है, वे ईश्वर के निकट प्रार्थना करे–अयं स्वास्थ्य अथवा स्वर्ग के लिए नहीं, वरन् हृदय में ज्ञान और सत्य न के उन्मेष के लिए।

इसके छोड वाकी सब प्रार्थना स्वार्थ ने भरी है। इसके बाद भावना करनी होगी ‘मेरा शरीर बणव दृढ सबल और स्वस्थ है।

यह देह ही मेरी मुक्ति में एकमात्र सहायक है।

इसी की सहायता से मे यह जीवन स पार कर गंगा जो है वह कभी क्ति नही पा माता समस्त लताओं का त्याग करो। देह से कहो, ‘न पद हो ।

नन से कहो, ‘तुम जनन्त पक्तिवर हो ।’ और स्वयं पर विवास और भरोसा रखो।

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Raja Yoga PDF in English

लेखक स्वामी विवेकानंद-Swami Vivekananda
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 307
Pdf साइज़7.1 MB
Categoryप्रेरक(Inspirational)

राजयोग – Rajyog Swami Vivekananda Pdf Free Download

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