योगी कथामृत | Yogi Kathamrita PDF In Hindi

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योगी कथामृत – Yogi Kathamrita PDF Free Download

योगानन्दजी की “आत्मकथा”

योगानन्दजी की “आत्मकथा” का महत्त्व इस तथ्य के प्रकाश में बहुत अधिक बढ़ जाता है कि यह भारत के ज्ञानी पुरुषों के विषय में अंग्रेज़ी में लिखी गयी गिनी-चुनी पुस्तकों में से एक है,

जिसके लेखक महोदय न तो पत्रकार हैं और न कोई विदेशी, बल्कि वे स्वयं वैसे ही ज्ञानी महापुरुषों में से एक हैं – सारांश यह कि योगियों के विषय में स्वयं एक योगी द्वारा लिखी गयी यह पुस्तक है।

एक प्रत्यक्षदर्शी के नाते आधुनिक हिन्दू-सन्तों की असाधारण जीवन-कथाओं एवं अलौकिक शक्तियों के वर्णनों से युक्त इस पुस्तक का सामयिक और सर्वकालिक, दोनों दृष्टियों से महत्त्व है।

इस पुस्तक के प्रख्यात लेखक, जिनसे परिचित होने का सौभाग्य भारत तथा अमेरिका में मुझे प्राप्त हुआ था, के प्रति हर पाठक श्रद्धावनत और कृतज्ञ रहेगा।

निस्सन्देह उनकी असाधारण जीवन-कथा हिन्दू मन तथा हृदय की गहराइयों एवं भारत की आध्यात्मिक संपदा पर अत्यधिक प्रकाश डालने वाली पश्चिम में प्रकाशित पुस्तकों में से एक है।

अपने जन्म के एक सौ वर्ष बाद, आज श्री श्री परमहंस योगानन्द की गणना हमारे समय की परम विशिष्ट आध्यात्मिक विभूतियों में होती है; और उनके जीवन एवं शिक्षाओं का प्रभाव निरंतर बढ़ता ही जा रहा है।

दशकों पूर्व उनके द्वारा प्रतिपादित बहुत से धार्मिक एवं दार्शनिक विचार और पद्धतियाँ अब शिक्षा, मनोविज्ञान, व्यवसाय, चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों में अभिव्यक्ति पा रही हैं,

तथा इस प्रकार मानव जीवन को एक अधिक एकीकृत, मानवीय एवं आध्यात्मिक स्वरूप देने में योगदान दे रही हैं।

यह तथ्य है कि विविध दार्शनिक एवं अधिभौतिक आंदोलनों के प्रतिपादक अब परमहंस योगानन्द जी की शिक्षाओं की व्याख्या कर रहे हैं और इनको रचनात्मक रूप से भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में प्रयोग में ला रहे हैं।

यह न केवल उनकी शिक्षाओं की व्यावहारिक उपयोगिता के महत्त्व की ओर इंगित करता है, अपितु भविष्य में इनको तनूकरण, विखण्डन और विरूपण से बचाने के उपायों की आवश्यकता की ओर भी ध्यानाकर्षित करता है।

प्रकरण

  1. मेरे माता-पिता एवं मेरा बचपन।
  2. माँ का देहान्त और अलौकिक तावीज
  3. द्विशरीरी संत
  4. हिमालय की ओर मेरे पलायन में बाधा 5. गंधबाबा के चमत्कारी प्रदर्शन
  5. बाघ स्वामी
  6. प्लवनशील सन्त
  7. भारत के महान् वैज्ञानिक सर जगदीशचन्द्र बोस
  8. परमानन्दमग्न भक्त और उनकी ईश्वर के साथ प्रेमलीला
  9. अपने गुरु श्रीयुक्तेश्वरजी से मेरी भेंट
  10. दो अकिंचन बालक वृन्दावन में
  11. अपने गुरु के आश्रम की कालावधि
  12. विनिद्र संत
  13. समाधि लाभ
  14. फूलगोभी की चोरी
  15. ग्रह शान्ति
  16. शशि और तीन नीलम
  17. एक मुस्लिम चमत्कार प्रदर्शक
  18. मेरे गुरु कोलकाता में प्रकट होते हैं श्रीरामपुर में
  19. कश्मीर यात्रा में बाधा
  20. हमारी कश्मीर यात्रा
  21. पाषाण प्रतिमा का हृदय
  22. विश्वविद्यालय से उपाधि की प्राप्ति
  23. मेरा संन्यास ग्रहण स्वामी संस्थान के अन्तर्गत
  24. भाई अनन्त एवं बहन नलिनी

उसी रात जब हमारी गाड़ी एक स्टेशन पर खड़ी हुई थी और मैं अर्द्धनिद्रित अवस्था में था, तब पूछताछ करते एक और अधिकारी ने आकर अमर को जगा दिया। वह भी ” टॉमस” और “टॉमसन” नामों के इन्द्रजाल में फँस गया।

भोर होते-होते गाड़ी ने हमें सफलतापूर्वक हरिद्वार पहुँचा दिया। हमें अपनी ओर बुलाते गौरवशाली पर्वत कुछ दूरी पर अस्पष्ट दिखायी दे रहे थे हम लोग तेजी से भागते हुए स्टेशन से बाहर निकले और नगर की स्वतन्त्र भीड़ में प्रविष्ट हो गये।

हमारा पहला काम था देशी पोशाक धारण करना, क्योंकि अनन्तदा को किसी प्रकार हमारे यूरोपियन छद्मवेष का पता लग गया था। पकड़े जाने के पूर्वाभास मेरे मन पर बोझ बन रहा था।

हरिद्वार से तुरन्त निकल जाना ही उपयुक्त मानकर हमने सदियों से अनेकानेक सन्तों की चरणरज से पवित्र हुए ऋषिकेश जाने के लिये टिकटें खरीद लीं।

मैं पहले ही ट्रेन में बैठ गया था, जबकि अमर अभी पीछे ने प्लेटफार्म पर ही था एक पुलिस वाले ने पुकारकर उसे रोक लिया। वह अवांछित प्रतिपालक हमें पुलिस स्टेशन के बंगले में ले गया और उसने हमारे सब पैसे ले लिये।

उसने शिष्टतापूर्वक यह स्पष्ट किया कि मेरे बड़े भाई के आने तक हमें वहाँ रोककर रखना उसका कर्तव्य था। यह जानकर कि इन दो भगोड़ों का गन्तव्य स्थल हिमालय था, उस सिपाही ने एक अद्भुत घटना सुनायी।

“मैं देख रहा हूँ कि तुम सन्तों के दीवाने हो! अभी कल ही मेरी जिस संत से मुलाकात हुई थी, उस से बड़ा सन्त तुम्हें कभी नहीं मिलेगा ।

मेरे एक सहयोगी ओर मैं उनसे पहली बार पाँच दिन पहले मिले थे।

एक विशिष्ट हत्यारे की तीव्र खोज में हम गंगा के पास गश्त लगा रहे थे।

उसे जिन्दा या मुर्दा पकड़ने का हमें आदेश था। उस के बारे में हमें सिर्फ यह ही ज्ञात था कि तीर्थयात्रियों को लूटने के लिये वह साधु का छद्मवेष धारण कर घूम रहा है।

अपने सामने थोड़ी ही दूरी पर हमने एक आकृति देखी जो उस अपराधी के वर्णन से मिलती-जुलती थी। जब वह हमारे आदेश पर नहीं रुका तो उसे पकड़ने के लिये हम लोग दौड़े। उसके पीछे

लेखक परमहंस योगानंद-Parmhans Yoganand
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 736
Pdf साइज़16.5 MB
Categoryआत्मकथा(Biography)

ज्ञानेश्वर महाराज चरित्र PDF

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