भारत की राजव्यवस्था – Indian Political Science Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
जिनसे प्रेम, समानता और सहयोग का व्यवहार हो तो उन्हें समरस समाज का अंग कहा जा सकता है श्री विनोबा के शब्दों में ‘वैसे चोरी करना पाप है, बैसे संग्रह करना भी पाप ही माना जाय।
धार्मिक दृष्टि से यह पाप होगा और राष्ट्रीय दृष्टि से गुनाह। उद्योग के क्षेत्र में मालिक-मजदूर भेद हैं ।
उसकी मिटाना होगा। मालिक-मजदूर का साझा मानना होगा। चाहे कितने भी बड़े उद्योग हों, जो आज खानगी तौर चलते हैं, समाज की मालकियत के तौर पर वे चलेंगे।
देश की आधी शक्ति, स्त्री-शक्ति हिन्दुस्तान में निकम्मी पड़ी है और उसे सामने प्रकट होने का मौका नहीं है।
यह हालत भी बदलनी होगी स्त्रियां को पुरुषों के बराबर अधिकार देने होंगे। तब अपना समाज एकरस होगा और शान्ति के लिए देश में वातावरण बनेगा।”
आत्मीयता के विस्तार की आवश्यकता- समरस समाज के लिए यह आवश्यक है कि आदमी एक दूसरे में आत्मीयता का अनुभव करें, दूसरों के दुःख को अपना दुःख और दूसरों के सुख को अपना सूख मानें।
इस समय दूसरे आदमियों के भूख से व्याकुल होने पर भी हमें तरह-तरह के पकवान आदि खाने और अपने दोस्तों की दावत करने में कुछ संकोच नहीं होता। हम अपने लिए कई कई जोड़े कपडे रखने में अपना गौरव मानते हैं,
जब कि हम प्रत्यक्ष उन भाई बहनों को देखते हैं, जिनके पास बदन इकने या लज्जा निवारण के लिए भी काफी कपटा नहीं है।
उनके शरीर पर जो नाममात्र का वस्व है, वह फट कर चीथड़ा हो रहा है, और बहुत दिन का मैला होने के कारण दुर्गन्ध से भरा है ।
लेखक | भगवानदास केला-Bhagvandas Kela |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 182 |
Pdf साइज़ | 12 MB |
Category | विषय(Subject) |
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