राजपूत काल का इतिहास | History of Rajput Period PDF In Hindi

‘राजपूत काल 750-1200 सीई का इतिहास’ PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘History of Rajput Period 750-1200 CE’ using the download button.

राजपूत राजवंश का इतिहास और उत्पत्ति हिन्दी में – History And Origin of Rajput Dynasty PDF Free Download

राजपूत काल का इतिहास

राजपूतों का उदय

● हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद उत्तर भारत में विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया तेज हो गयी। किसी शक्तिशाली केन्द्रीय शक्ति के अभाव में छोटे छोटे स्वतंत्र राज्यों की स्थापना होने लगी।
● सातवीं-वींआठवीं शताब्दी में उन स्थापित राज्यों के शासक ‘ राजपूत’ कहे गए। उनका उत्तर भारत की राजनीति में बारहवीं सदी तक प्रभाव कायम रहा।

● भारतीय इतिहास में यह काल ‘राजपूत काल’ के नाम से जाना जाता है। कुछ इतिहासकर इसे संधिकाल का पूर्व मध्यकाल भी कहते हैं, क्योंकिक्यों यह प्राचीन काल एवं मध्यकाल के बीच कड़ी स्थापित करने का कार्य करता है।

● ‘राजपूत’ शब्द संस्कृत के राजपुत्र का ही अपभ्रंश है। संभवतः प्राचीन काल में इस शब्द का प्रयोग किसी जाति के रूप में न होकर राजपरिवार के सदस्यों के लिए होता था, पर हर्ष की मृत्यु के बाद राजपुत्र शब्द का प्रयोग जाति के रूप में होने लगा।

● इन राजपुत्रों के की उत्पत्ति के विषय में भिन्न-भिन्न मत प्रचलित हैं। कुछ विद्वान इसे भारत में रहने वाली एक जाति मानते हैं, तो कुछ अन्य इन्हें विदेशियों की संतान मानते हैं।

● कुछ विद्वान् राजपूतों को आबू पर्वत पर महर्षि वशिष्ट के अग्निकुंड से उत्पन्न हुआ मानते हैं। प्रतिहार, चालुक्य, चौहान और परमार राजपूतों का जन्म इसी से माना जाता है।

● कर्नल टॉड जैसे विद्वान राजपूतों को शक, कुषाण तथा हूण आदि विदेशी जातियों की संतान मानते हैं।
● डॉ. ईश्वरी प्रसाद तथा भंडारकर आदि विद्वान् भी राजपूतों को विदेशी मानते हैं।

● जी.एन.ओझा. और पी.सी. वैद्य तथा अन्य कई इतिहासकार यही मानते हैं की राजपूत प्राचीन क्षत्रियों की ही संतान हैं।

● स्मिथ का मानना है की राजपूत प्राचीन आदिम जातियों – गोंडगों , खरवार, भर, आदि के वंशज थे।

● इस काल में उत्तर भारत में राजपूतों तों के प्रमुख वंशों – चौहान, परमार, गुर्जर, प्रतिहार, पाल,चंदेल, गहड़वाल आदि ने अपने राज्य स्थापित किये।

गुर्जर-प्रतिहारवंश

● अग्निकुल के राजपूतों में सर्वाधिक महत्त्व प्रतिहार वंश का था। जिन्हें गुर्जरों से सम्बद्ध होने के कारण गुर्जर-प्रतिहार भी कहा जाता है।
● परंपरा के अनुसार हरिवंश को गुर्जर-प्रतिहार वंश का संस्थापक माना जाता है, लेकिन इस वंश का वास्तविक संस्थापक नागभट्ट प्रथम को माना जाता है।

● प्रतिहार वंश की प्राथमिक जानकारी पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख, बाण के हर्षचरित और ह्वेनसांग के विवरणों से प्राप्त होता है।

● प्रतिहारों का राज्य उत्तर भारत के व्यापक क्षेत्र में विस्तृत था। यह गंगा-यमुना, दोआब, पश्चिमी राजस्थान, हरियाणा तथा पंजाब के क्षेत्रों तक फैला हुआ था।

● नागभट्ट प्रथम (730-756 ई.) ने सिंध के अरब शासकों से पश्चिमी भारत की रक्षा की। ग्वालियर प्रशस्ति में उसे ‘म्लेच्छों (सिंध के अरब शासक) का नाशक’ कहा गया है।

● वत्सराज (780-805 ई.) इस वंश का शक्तिशाली शासक था। वत्सराज के बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय (800-833 ई.) गद्दी पर बैठा। उसने कन्नौज पर अधिकार करके उसे प्रतिहार साम्राज्य की राजधानी बनाया।

● मिहिरभोज के पुत्र ने राष्ट्रकूट शासक कृष्ण द्वितीय को हराकर मालवा प्राप्त किया तथा आदिवराह तथा प्रभास जैसी उपाधियाँ धारण की।

● मिहिरभोज के पुत्र महेन्द्रपाल प्रथम के दरबार में प्रसिद्द विद्वान् राजशेखर निवास करते थे।
● राजशेखर ने कर्पूर मंजरी, काव्यमीमांसा, विद्वशालमंजिका, बालभारत, बालरामायण, भुवनकोश तथा हरविलास जैसे प्रसिद्द जैन ग्रंथों की रचना की।

● महिपाल इसी वंश का एक कुशक एवं प्रतापी शासक था। इसके शासनकाल में बगदाद निवासी अल-मसूदी (915-916 ई.) गुजरात आया था।

● महिपाल के शासनकाल में गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य का विघटन प्रारंभ हो गया था। इसके बाद महेन्द्रपाल द्वितीय, देवपाल, विनायक पाल और विजयपाल जैसे कमजोर शासकों ने शासन किया।

● ह्वेनसांग ने गुर्जर राज्य को पश्चिमी भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य कहा है।

चौहान वंश

● वासुदेव को इस वंश का संस्थापक माना जाता है। इसने अपनी राजधानी अजमेर के निकट शाकंभरी में स्थापित की थी।

● चौहान शासक गुर्जर प्रतिहारों के सामंत थे। दसवीं शताब्दी के आरंभ में वक्पतिराज प्रथम ने प्रतिहारों से अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया था।

● पृथ्वीराज के प्रथम पुत्र अजयराज (12वीं शताब्दी) ने अजमेर नगर की स्थापना कर उसे अपने राज्य की राजधानी बनाया।

● विग्रह्राज चतुर्थ बीसलदेव इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। इसने तोमर राजाओं को पराजित करके दिल्ली पर अपना अधिकार कर लिया।

● यह विजेता होने के साथ साथ कवि और विद्वान् भी था। इसने ‘हेरिकेली’ नमक एक संस्कृत नाटक की रचना की। इसके दरबार में ललितविग्रह्राज का रचनाकार सोमदेव रहता था।

● इस वंश का सर्वाधिक उल्लेखनीय शासक और ऐतिहासिक महत्त्व का शासकपृथ्वीराज तृतीय था, जिसकी चर्चा लोक कथाओं में भी मिलती है।

● पृथ्वीराज तृतीय 1178 ई. में चौहान वंश का शासक बना। इसे ‘रायपिथौरा’ भी कहा जाता है।

● 1191 ई. में तराइन के युद्ध में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज को पराजित कर भारत में मुस्लिम सत्ता
का मार्ग प्रशस्त किया।

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 10
PDF साइज़2 MB
CategoryHistory
Source/Creditsdrive.google.com

राजपूत राजवंश का इतिहास – History And Origin of Rajput Dynasty PDF Free Download

1 thought on “राजपूत काल का इतिहास | History of Rajput Period PDF In Hindi”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!