ब्रज भूमि मोहिनी – Braj Bhoomi Mohini Book Pdf Free Download
ब्रज भूमि मोहिनी
ब्रज भूमि का वर्णन बहुतों ने किया है, परन्तु पूर्णरूप से। सम्पूर्ण, परिचय उनमें नहीं मिलता, इसलिए ग्रन्थकार ने, पुराण तथा महानुभावों द्वारा लिखित ग्रन्थों के तथा विश्वसनीय
सन्तो की मुखश्रुत चर्चा के आधार पर, सभी के भावों को सुरक्षित रखते हुए, आलोचना रहित इस ग्रन्थ का लेखन, सम्पादन किया है ।आज से साढ़े पाच हजार वर्ष पूर्व द्वापरान्त में श्रीकृष्ण की लीला
इस ब्रज मण्डल में प्रत्यक्ष रूप से अवतरित हुई थी। यह बही गिरिराज गोवर्धन पर्वत है, जिन्हें श्रीकृष्ण ने अपने किन्नी उगली पर सात दिन तक सतत धारण किया था, वही यमुनाजी है
जो श्रीकृष्ण के अंग सपश से नीतिमा लिख अनन्त लीलाओ को (जल विहार, जलकेलि अपने में संजोकर प्रेमीजनों को प्रत्यक्ष दर्शन कराने में समर्थ है। यह वही बज रज है,
श्रीकृष्ण चरण स्पर्श जिसकी उद्धवजी ने रो-रोकर याचना की थी । उस समय व अब के समय में, इसमें इतना ही है कि उस समय प्रकट नीला सभी को सहज ही देखने में आती थी अब भी वह यहा निरन्तर हो रही है।
इस बात का रहस्य आपका पुराणान्तर्गत बजनाभ-शाण्डिल्ला आणि के सम्बाद के पढ़ने में ज्ञात हो सकता है।काल के प्रभाव से लुप्त प्राय इन स्थलियों को प्रमावतारी महाप्रभ ने अपने
अन्तरङ्ग भक्तो को ब्रज में भेजकर बज की नुन स्थलियो को पुनः प्रकट कराया। श्रीमन्यतन्य महाप्रभ स्थय भी बज-दशनार्थ आयेय अत्यन्त रसमयी स्थली श्रीराधाकण्ड को स्वयं प्रकट किया ।
लेखक ने जहां-तहाँ उन्हीं के शब्दों में उद्धरण दिये है। श्री ब्रज भूमि में आये व जहां-तहाँ भ्रमण कर बज भूमि के महत्व को प्रकट किया व बज चौरासी कोस की चलाई जो आज भी चल रही है।
लेखक | बाबा मनोहरदास-Baba Manohardas |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 442 |
Pdf साइज़ | 20 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
ब्रज भूमि मोहिनी | Braj Bhoomi Mohini Book/Pustak Pdf Free Download