हिंदी प्रार्थना – Hindi Prayers Book Pdf Free Download
प्रार्थना की व्याख्या और फायदे
“प्रार्थना आश्रम की नींवका मुख्य भाग है। इसलिये इस वस्तुको हमें अच्छी तरह समझ लेना चाहिये । प्रार्थना मन से न हो, तो सव व्यर्थ है।”
“प्रार्थना खाने को अपेक्षा करोड़ गुनी ज्यादा उपयोगी चीज़ है । खाना भले छूट जाय लेकिन प्रर्थना कमी न छूटे । प्रार्थना छूट जाय तो मनुष्य को बड़ा दुख होना चाहिये । खाना छोड़ना कितनी बार शरीर के लिये लाभकारी होता है । प्रार्थना का छूट जाना कभी लाभदायक हो ही नहीं सकता ।”
“प्रार्थना में जो कुछ बोला जाता है उसे सबको शीघ्र ही समझ लेना चाहिये । मूल भाषा न आये तो उसका अर्थ तो जान ही लेना चाहिये और उसका मनन करना चाहिये ।”
“मैं प्रार्थना को इसलिये महत्व देता हूँ क्योंकि मैं एक उच्चतर सत्ता में विश्वास करता हूँ । जीवन केवल एक घटना मात्र नहीं है। जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथों में हैं ।
यदि हम पूरे दिन भर ईश्वर का चिन्तन किया करें, तो बहुत अच्छा, किन्तु चूंकि यह संभव नहीं हैं, इसलिए हमें प्रति-दिन कम-से कम कुछ घंटों के लिये तो उसका स्मरण करना ही चाहिये ।
यड़ि हम प्रतिदिन ईश्वर की कृपाओं के लिये कृतज्ञता प्रकाश नहीं करते, तो जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता ।
हम कुछ समय तक शारीरिक भोजन के बिना तो काम चलाने में समर्थ हो सकते हैं, किन्तु आत्मा के भोजन-प्रार्थना की उपेक्षा हम नहीं कर सकते । हमें किसी से भिक्षा नहीं माँगनी चाहिये, किन्तु ईश्वर से भिक्षा माँगने में कोई लज्जा नहीं है ।”
“प्रार्थना में उपस्थित रहने का ध्येय ईश्वर से संभाषण करना एवं अन्तरात्मा की शुद्धि के लिये प्रकाश प्राप्त करना है, ताकि ईश्वर की सहायता से हम अपनों कमजोरियों पर विजय प्राप्त कर सकें ।”
“प्रार्थना करने वाले को याद रखना चाहिये कि जिसका हृदय मलिन है वह मलिनता रहने देकर प्रार्थना नहीं कर सकता ।”
“प्रार्थना के समय मलिनता छोड़नी ही चाहिये। जैसे कोई आदमी उसे कोई देखता हो तब बुरा काम करने में शरमायेगा, वैसे ही उसे ईश्वर के सामने मलिन काम करने में शरम आनी चाहिये। मगर ईश्वर तो हमेशा हमारे हर काम को देखता है, विचारों को जानता है।
जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथों में हैं। यदि हम पूरे दिन मर ईश्वर का चिन्तन किया करें, तो बहुत अच्छा, किन्तु चूंकि यह संभव नहीं है, इसलिए हमें प्रति-दिन कम-से- कम कुछ घंटों के लियेतो उसका स्मरण करना ही चाहिये। यदि हम प्रतिदिन ईश्वर की कृपाओं के लिये कृतज्ञता प्रकाश नहीं करते,
तो जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता । हम कुछ समय तक शारीरिक भोजन के बिना तो काम चलाने में समर्थ हो सकते हैं, किन्तु आत्मा के भोजन-प्रार्थना की उपेच हम नहीं कर सकते । हमें किसी मे भिक्षा नहीं मांगनी चाहिये, किन्तु ईश्वर से भिक्षा माँगने में कोई लज्जा नहीं है ।”
प्रार्थना में उपस्थित रहने का ध्येय ईश्वर से संभाषण करना एवं अन्तरास्मा की शुद्धि के लिये प्रकाश प्राप्त करना है, ताकि ईश्वर की सहायता से हम अपनो कमजोरियों पर विजय प्राप्त कर सके “प्रार्थना करने वाले को याद रखना चाहिये कि जिसका हृदय मलिन है वह मलिनता रहने देकर प्रार्थना नहीं कर सकता ।
“प्रार्थना के समय मलिनता छोड़नी ही चाहिये । जैसे कोई आदमी उसे कोई देखता हो तब बुरा काम करने में शरमायेगा, वैसे ही उसे ईश्वर के सामने मलिन काम करने में शरम आनी चाहिये । मगर ईश्वर तो हमेशा हमारे हर काम को देखता है, विचारों को जानता है।
इसलिये ऐसा एक भी चण नहीं जब प्रार्थना में इच्छित फल मिला या नहीं इसका हमें पता नहीं चलना । मैं नर्मदा की मुक्ति के लिये प्रार्थना करूं और उमे दुःख से छुटकारा मिलजाय तो मुझे यह नमान लेना चाहिये कि वह मेरी प्रार्थना का फल है । प्रार्थना निष्फल वो हरगिज नहीं जानी, लेकिन हमें यह पता नहीं लगता कि कौनसा फल देनी है।
लेखक | महात्मा गांधीजी-Mahatma Gandhiji |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 178 |
Pdf साइज़ | 11.2 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
ध्यान दे: इस किताब में 50 वें पन्ने से प्रार्थना लिखी हुई है
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