प्राकृतिक चिकित्सा क्यों – Prakrit Chikitsa Kyo Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
कथा वर्षों की पुरानी हो गई | जब मै सर्वप्रथम प्राकृतिक चिकित्सा का एक प्रारम्थिक विद्यार्थी ही था, तभी सन् ३८ में बिहार जि० छपरा के गाव चैनपुर के निवासी श्री वासुदेव प्रसाद सर्राफ का प्राकृतिक चिकित्सा व नेति, धौति, प्राणायाम द्वारा सफल उपचार हुआ जब रोगी टी०बी० या दमा की भयकर दशा में से गुजर रहा था।
मुझे तो तब इतना सम्यक् ज्ञान भी न था, वस्तुतः दमा का स्वरूप हो क्या है।
वाराणसी के प्रसिद्ध वैद्यों व डॉक्टर का इलाज चल चुका था, जब मैंने सफतता पाई।अपनी पूर्ण सफलता का बोध भी मुझे तब हुआ, जब कहीं चिकित्सा के २४ वर्ष बाद, पुनः उनके घर जाना हुआ,
तब वासुदेव जी ने कहा कि, “मै तो भूल ही गया था कि मुझे भी कमी दमा था। दमा के रोगी जब मुझसे पूछते है कि ‘तुम्हारा पैतृक दमा या, कंसे ठीक हुआ ? पर मै उन्हे क्या बताऊं? क्योकि कोई भी सयम और तप तो करना नहीं चाहता”।
इसी बीच सम्भवतः सन् ५० में हरियाणा के जिला करनाल के गद सनराई गाँव मे अनुभवार्थ अश्विन पूर्णिमा को दमा निवारण खीर बांटने का एक साहसिक पग उठाया, तब से लाभ की बाते कान में आने लगी।
‘दमा’, दम के साथ जाता है-यह किवर्दति सर्वथा थोथी जान पड़ी ।
कुछ समय बाद सन्देह भी होने लगा, यह ठीक भी है, एक ही रोग में एक साथ दोनों बाते सवंथा झूठ, दूसरी ओर पूर्ण सत्य दिखाई देने लगी ।
जिन्होंने जीवन बदला, संयम अपनाया, उन्होंने दमे को मार भगाया।
दूसरी ओर वर्षों बाद वही दिनचर्या, असयमी जीवन से वे ही ही लोग फिर रोगी वन गये जो हमारेउपचार से ठीक हो गये थे। इस बीच अनेक युवतियाँ गी चिकित्सा मे आई, इतनी स्वस्थ हुई कि सुधा की माता ने कहा, “तुम तो स्वामी जी के यहां से भूख
लेखक | जगदीश्वरानन्द-Jagdishvaranand |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 86 |
Pdf साइज़ | 4 MB |
Category | स्वास्थ्य(Health) |
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