प्रदोष व्रत कथा | Pradosh Vrat Katha In Hindi PDF

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सम्पूर्ण प्रदोष व्रत की कथा और विधि – Pradosh Vrat Katha PDF Free Download

प्रदोष (त्रयोदशी) व्रत कथा

भगवान शंकर की त्रयोदशी के दिन की जाने वाली कथा सातों दिनों की अलग-अलग कथाओं सहित

पूजा की विधि

‘प्रदोषो रजनी-मुखम’ के अनुसार सायंकाल के बाद और रात्रि आने के पूर्व दोनों के बीच का जो समय है उसे प्रदोष कहते हैं, व्रत करने वाले को उसी समय, भगवान शंकर का पूजन करना चाहिये।

प्रदोष (त्रयोदशी व्रत कथा प्रदोष व्रत करने वाले को त्रयोदशी के दिन, दिनभर भोजन नहीं करना चाहिये। शाम के समय जब सूर्यास्त में तीन घड़ी का समय शेष रह जाए तब स्नानादि कर्मों से निवृत्त होकर, श्वेत वस्त्र धारण करके तत्पश्चात् संध्यावन्दन करने के बाद शिवजी का पूजन प्रारम्भ करें।

पूजा के स्थान को स्वच्छ जल से धोकर वहाँ मण्डप बनाएँ, वहाँ पाँच रंगों के पुष्पों से पद्म पुष्प की आकृति बनाकर कुश का आसन बिछायें, आसन पर पूर्वाभिमुख बैठें। इसके बाद भगवान महेश्वर का ध्यान करें।

व्रत के उद्यापन की विधि

प्रातः स्नानादि कार्य से निवृत होकर रंगीन वस्त्रों से मण्डप बनावें। फिर उस मण्डप में शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करके विधिवत पूजन करें।

तदन्तर शिव पार्वती के उद्देश्य से खीर से अग्नि में हवन करना चाहिए। हवन करते समय ‘ ॐ उमा सहित-शिवाय नमः’ मन्त्र से १०८ बार आहुति देनी चाहिये।

इसी प्रकार ‘ॐ नमः शिवाय’ के उच्चारण के शंकर जी के निमित्त आहुति प्रदान करें। हवन के अन्त में किसी धार्मिक व्यक्ति को सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिये।

ऐसा करने के बाद ब्राह्मण को भोजन दक्षिणा से सन्तुष्ट करना चाहिये । व्रत पूर्ण हो ऐसा वाक्य। ब्राह्मणों द्वारा कहलवाना चाहिये।

ब्राह्मणों की आज्ञा पाकर अपने बन्धुबान्धवों की साथ में लेकर मन में भगवान शंकर का स्मरण करते हुए व्रती को भोजन करना चाहिये। इस प्रकार उद्यापन करने से व्रती पुत्र-पौत्रादि से युक्त होता है तथा आरोग्य लाभ करता है।

इसके अतिरिक्त वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है एवं सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। ऐसा स्कन्द पुराण में कहा गया है।

त्रयोदशी व्रत महात्म्य

त्रयोदशी अर्थात् प्रदोष का व्रत करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। उसके | सम्पूर्ण पापों का नाश इस व्रत से हो जाता है।

इस व्रत के करने से विधवा स्त्रियों को अधर्म से ग्लानि होती है और सुहागन नारियों का सुहाग सदा अटल रहता है, बन्दी कारागार से छूट जाता है।

जो स्त्री पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते हैं, उनकी सभी कामनाएँ कैलाशपति शंकर पूरी करते हैं। सूत जी कहते हैं – त्रयोदशी का व्रत करने वाले को सौ गऊ दान का फल प्राप्त होता है।

इस व्रत को जो विधि विधान और तन, मन, धन से करता है उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं। सभी माता-बहनों को ग्यारह त्रयोदशी या पूरे साल की २६ त्रयोदशी पूरी करने के बाद उद्यापन करना चाहिये।

प्रदोष व्रत में वार परिचय

  • १. रवि प्रदोष-दीर्घ आयु और आरोग्यता के लिये रवि प्रदोष व्रत करना चाहिये।
  • २. सोम प्रदोष – ग्रह दशा निवारण कामना हेतु सोम प्रदोष व्रत करें।
  • ३. मंगल प्रदोष-रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य हेतु मंगल प्रदोष व्रत करें।
  • ४. बुध प्रदोष – सर्व कामना सिद्धि के लिये बुध प्रदोष व्रत करें।
  • ५. बृहस्पति प्रदोष – शत्रु विनाश के लिये बृहस्पति प्रदोष व्रत करें।
  • ६. शुक्र प्रदोष – सौभाग्य और स्त्री की समृद्धि के लिये शुक्र प्रदोष व्रत करें।
  • ७. शनि प्रदोष – खोया हुआ राज्य व पद प्राप्ति कामना हेतु शनि प्रदोष व्रत करें।

नोट: त्रयोदशी के दिन जो वार पड़ता हो उसी का (त्रयोदशी प्रदोष व्रत) करना चाहिये। तथा उसी दिन की कथा पढ़नी व सुननी चाहिये। रवि, सोम, शनि (त्रयोदशी प्रदोष व्रत) अवश्य करें। इन सभी से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 34
PDF साइज़1.7 MB
CategoryVrat Katha

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