फलदीपिका भावार्थ बोधिनी | Phaladeepika PDF In Hindi

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फलदीपिका – Phaladeepika Bhavartha Bodhini PDF Free Download

फलदीपिका भावार्थ बोधिनी

ऊपर कितने स्ववर्ग आदि में ग्रह क्या-क्या कहलाता है यह बतलाने के बाद अब इसका फल बताते हैं : यदि कोई ग्रह “पारिजाताश” में ही तो वह जातक को अनेक गुणों से युक्त घनी, सुखी, मान प्रतिष्ठा वाला बनाता है।

यदि कोई ग्रह उत्तमांश में हो तो बह उत्तम आचार वाला (कुलक्रमागत गिष्ट, जनानुमोदित) रास्ते पर चलने वाला चतुर और विनयी होता है।

यदि किसी जातक का कोई ग्रह गोपुरांग में हो तो उसकी बुद्धि शुभ होती है और उसको गायों का, बन का, खेत का तथा अपने मकान |

मुख प्राप्त होता है। यदि ग्रह सिंहासनांश में हो तो मनुष्य राजा का प्यारा हो;

या राजा के बराबर हो या राजा ही हो जाय, यह सब परि स्थिति देखकर फलादेश कहना चा यदि कोई ह पारावतांक में हो तो जातक को थेष्ठ, घोडे, हाथी, मवारी आदि प्राप्त हों और संभव से युक्त हो।

यदि कोई ग्रह देवलोकांश म हों तो जातक सत्कीर्ति से युक्त भूमण्डलाधीश (राजा) गवर्नर आदि हो। ऐरावत में ग्रह होने से बह साक्षात् इन्द्र के वैभव से युक्त होगा और अनेक राजा उसको सलाम करेंगे मुरलोकांश का फल भी करीब करीब एसा ही है।

धन-धान्य, सौभाग्य, पुत्र मुख से युक्त महाराजा हो। ऊपर जो अधिकाधिक शुभ वर्गों में उत्तम फल बताये गये हैं; इनका शब्दार्थ नहीं लेना चाहिये ।

केवल भावार्थ लेना चाहिये कि जितना अधिक कोई ग्रह स्वचर्गों में होगा उतना ही मुख, फक दिखाने में समर्थ होगा।

केवल एक ग्रह अच्छा होने से न कोई राजा बनता है न कोई एक ग्रह खराब होने से कोई रक हो जाता है।

न सब ग्रह किसी के बनते न सब ग्रह किसी के बिगड़ते हैं इसीलिये फलादेश करते समय सब प्रहों] के बलाबल का तारतम्य कर अन्तिम नतो पर पहुंचना चाहिये ।। ९॥ ऊपर के इलाकों में पहों के बलवान् होने का शुभ फल |

अब इस अध्याय के प्रारंभ में सबसे पहले यह बताते हैं कि किस ग्रह से क्या विचार करना चाहिये—किस वस्तु का कौन-सा ग्रह कारक है।

प्रथम अध्याय में यह बता चके हैं कि किस भाव से क्या-क्या विचार करना चाहिये, इससे यह भी सिद्ध होता है कि जो बात भाव से विचार की जावे वह भाव के स्वामी से भी विचार करना चाहिये ।

उदाहरण के लिये यदि छठ भाव से णत्र्‌ का विचार किया जाता है तो छठ भाव के स्वामी से भी शत्रु का विचार करना चाहिये। यह तो भाव का मालिक होने के कारण उस ग्रह में विशेषता आई ।

परन्तु उसका अपना साधारण गूण क्या है ? मान छीजिये दस आदमियों की कुण्डली में सूयं अछग-अलऊग दस भावों का स्वामी है।

जिसमें लग्न का स्वामी है उसमें लग्नेश का प्रभाव दिखावेगा, जिसमें धन स्थान का स्वामी है उसमें घनेश का प्रभाव दिखावेगा “यह उचित ही है परन्तु सूर्य का अपना स्वाभाविक गुण, धमं क्या है ? ग्रहों के जो स्वाभाविक गुण, धर्म हैं, जिन वस्तुओं के वे कारक हैं–वह नीचे के इलोकों में बताया जाता है।

ताम्नं स्वर्ण पित॒ृशुभफलं चात्मसोख्यप्रतापं धेयें’ शोय समितिविजयं राजसेवां प्रकाशम ॥

शं व॑ कार्य वनगिरिगरति होमकायंप्रव॒रत्ति देवस्थानं कथ यतु बुधस्तक्ष्ण्यमुत्साहमर्कात्‌ ॥१॥

मातुः स्वस्ति मन:प्रसादमुदधिस्नानं सित॑ चामरं छत्नं सुब्यजनं फलानि मुदुर्ल पुष्पाणि सस्यं कृषिस ।

कीति मौक्तिककांस्थरोप्पसधरक्षो रादिवस्त्राम्ब॒ुगोयोषाप्ति सुखभोजनं तनसखं रूप वर्देच्चन्द्रतः ॥२॥।

लेखक पंडित गोपेश कुमार ओझा-Pandit Gopesh Kumar Ojha
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 684
Pdf साइज़13.6 MB
Categoryज्योतिष(Astrology)

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