पर कटा पक्षी कविता | Par Kata Pakshi PDf

पर कटा पक्षी – Par Kata Pakshi Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

सिर फिरे हम लोग हाँ, हम सिर फिरे हैं है कहां हममें समझ इतनी कि पहिचान लेते जो हवा का रुख बैठ जाते आंख अपनी बन्द कर सीकर अधर कोई कहे कुछ भी, करे कुछ भी हमें क्या ?

मतलब हमें होता सिर्फ इससे कि जलता रहे चूल्हा पकती रहे हंडिया हमारी और अपने अह को स जाकर करीने से एक सुन्दर तश्तरी में काश! कर पाते समपित महा प्रभृ्रं के चरण में हम धन्य हो जाते मगर हम सिर फिरे हैं

है कहाँ हममें समझ इतनी करते बहुत कोशिश हम भी झूठ बोलें ताक में रख शर्म बबूलों को कहें बरगद सीख लें हम पर कर क्या भी हुनर यह इस भौथरे मास्तिष्क में यह बात घर करती नहीं है चाहते तो हैं बहुत पर क्या करें यह आत्मा मरती नहीं है ।

बंद कर रखा अ धोरों ने दियों को आज इन अट्टालिकाओं में जो थे कभी विश्वास जन-पथ के कर जोड़ पंक्ति बद्ध देखो ! हैं खड़े, मस्तक पकाए, प्रहरियों से । बिना संकेत के इन स्याह चेहरों के तनिक भी हिल नहीं सकते क्या करें प्राशा?

भला इन बंदियों से कि वे घर गली प्रांगन यहाँ पर या वहां पालोक बिखराए ।खो चके ये अस्मिता अपनी कोहरे से आवरित चेहरा दे सको तो दो इन्हें शुभ-कामना कि छोड़ कर अट्टालिका का मोह जन-पथ पर चले पाए

पुनः आलोक बरसाए ।है महाव क्षो! करो स्वागत तुम्हारी कोंपलों का इन्हीं से वश चलता है मत तरेरो अांख भोंहे मत सिकोडो आशीष बरसाओ राह में अवरोध बन कर जो खड़े हों उन्हें रोको उन्हें टोको भौहें मत सिकोडो । हे महाव क्षो !

लेखक जबरनाथ पुरोहित-Jabarnath Purohit
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 44
Pdf साइज़1.6 MB
Categoryकाव्य(Poetry)

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