निष्काम कर्मयोग – Nishkam Karmyoga Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
कोई विपत्ति न आने दें, कोई थकावट या कोई व्यस्तता न आने दें, कोई घबड़ाहट या कोई अधीरता न आने दें, बुद्धिमानीसे अपनेको प्रतिक्षण सकुशल रखते हुए कर्म करें ।
दूसरे शब्दोंमें इस रीतिसे कर्म करें कि कर्मका शुभाशुभ फल नहीं भोगना पड़े न मुख-दुःख भोगना पड़े और न इस संसारमें पुनर्जन्म हो, शरीर छूट जाय और आत्माका पूर्णतम विकास ऐसा हो
वह परमात्माके साथ एक हो जाय, परमात्मासे आत्माका योग हो जाय; मन-चित्त निर्मळ और निष्पाप हो जाय, ज्ञानसे उद्भासित रहे; अज्ञानता मिट जाय । निर्मल आत्मा अपने खरूपमें स्थित हो जाय ।
बस; इसे ही तो मुक्ति कहेंगे । यही कर्मकुशलताकी सिद्धि है । इस युक्तिसे कुशलतासे कर्म करनेके लिये कर्मके मर्मको भलीभाँति समझना पड़ेगा, अनुभव करना पड़ेगा कि कर्म विकर्म कैसे होता है
वह ‘अकर्म’ कैसे बन जाता है । कर्ममें ऐसी कौन-कौन-सी विशेषताएँ हैं, जिनसे बचे रहनेपर कर्म बन्धनकारक न होकर आत्मविकासक हो जाता है, मुक्तिदायक हो जाता है ।
कर्मके सम्बन्धमें गीताके अनुसार साक्ष्यशास्त्रमें कथन है कि प्रत्येक कर्मके पाँच हेतु हैं नियत कर्म करना है और अपनेको कर्ता न समझ कर লিমিत्तमात्र समझना है ।
उसे सदैव यही समझना है कि गुण गुणों में बताते हैं मेरा किसी कर्मसे कुछ लेना-देना नहीं है। ऐसा सोचते हुए उसे किसी – कर्मसे आसक्त होना नहीं है; क्योंकि आसक्तिके कारण भी कर्मका संस्कार चित्तपर पड़ता है,
आसक्तिके चलते भी कर्म बन्धनकारक हो जाता है। अनासक भावसे किया गया कर्म कर्मयोगकी सीमामें होता है। निर्णय करनेमें कि क्या कर्म है, क्या अकर्म है !
देश, काल, परिस्थिति के अनुसार जो कर्म हाथमें आ जाय उसे फलमें समत्वबुद्धिसे, कौशलसे करना ‘कर्मयोग’ है । वर्णाश्रमपर आधृत कर्म हो, नौकरी हो या व्यापार हो,
लेखक | Gita Press |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 306 |
Pdf साइज़ | 23.7 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
निष्काम कर्म योगांक – Nishkam Karm Yogank Book/Pustak Pdf Free Download