निर्मला उपन्यास | Nirmala Premchand Novel PDF In Hindi

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निर्मला – Nirmala Upanyas PDF Free Download

निर्मला उपन्यास

बाबु उदयमानुलाल का मकान बाजार में बना हुआ है । बरामदे में सुनार के हथौड़े, और कमरे में दर्जी की सुइयाँ चल रही हैं। सामने नीम के नीचे बढ़ई चारपाइयाँ बना रहा है।

खपरैल में हलवाई के लिए भट्टा खोदा गया है। मेहमानों के लिए अलग एक मकान ठीक किया गया है। यह प्रवन्ध किया जा रहा है कि हरेक मेहमान के लिए एक-एक चारपाई, एक-एक कुर्सी और एक-एक मेज हो ।

हर तीन मेहमानों के लिए एक-एक कहार रखने की तजवीज हो रही है। अभी बारात आने में एक महीने की देर है; लेकिन तैयारियों अभी से हो रही हैं।

बारातियों का ऐसा सत्कार किया जाय कि किसी को जबान हिलाने का मौक़ा न मिले। वे लोग मी याद करें कि किसी के यहाँ बारात में गए थे। एक पूरा मकान बर्तनों से भरा हुआ है।

चाय के सेट हैं, नाश्ते की तस्तरियाँ, बाल, लोटे, गिलास ! जो लोग नित्य खाट पर पढ़ हुक्का पीते रहते थे, बड़ी तत्परता से काम में लगे हुए हैं।

अपनी उपयोगिता को सिद्ध करने का ऐसा अच्छा अवसर उन्हें फिर बहुत दिनों के बाद मिलेगा। जहाँ एक आदमी 1 को जाना होता है, पाँच दौड़ते हैं।

काम कम होता है, हुलड़ अधिक। जरा-जरा सी बात पर घण्टों तर्क-वितर्क होता है; और अन्त में वकील साहब को आकर निश्चय करना पड़ता है।

एक कहता है, यह घी खराब है। दूसरा कहता है, इससे बाज़ार में मिल जाय, तो टाँग की राह निकल जाऊँ। तीसरा कहता है, इसमें तो हीक आती है।

चौथा कहता है, तुम्हारी नाक ही सड़ गई है, तुम क्या जानो घी किसे कहते हैं। जब से यहाँ आए हो, घी मिलने लगा है; नहीं तो घी के दर्शन भी न होते थे। इस पर तकरार बढ़ जाती है और वकील साहब को झगड़ा चुकाना पड़ता है।

मनाती हैं कि यह किसी तरह मरें, तो मैं अकेली आराम करूं। दिल की बात मुंह से निकल ही आती है, चाहे कोई कितना ही छिपाये। कई दिन से देख रहा हूं ऐसी ही जली-कटी सुनाया करती हैं।

मैके का घमण्ड होगा, लेकिन वहां कोई भी न पूछेगा, अभी सब आवभगत करते हैं। जब जाकर सिर पड़ जाऐंगी तो आटे – दाल का भाव मालूम हो जाएगा। रोती हुई जाऐंगी।

वाह रे घमण्ड ! सोचती हैं- मैं ही यह गृहस्थी चलाती हूं। अभी चार दिन को कहीं चला जाऊं, तो मालूम हो जाएगा, सारी शेखी किरकिरी हो जाएगा। एक बार इनका घमण्ड तोड़ ही दूं।

जरा वैधव्य का मजा भी चखा दूं। न जाने इनकी हिम्मत कैसे पड़ती है कि मुझे यों कोसने लगत हैं। मालूम होता है, प्रेम इन्हें छू नहीं गया या समझती हैं, यह घर से इतना चिमटा हुआ है कि इसे चाहे जितना कोसूं, टलने का नाम न लेगा। यही बात है, पर यहां संसार से चिमटनेवाले जीव नहीं हैं! जहन्नुम में जाए यह घर, जहां ऐसे प्राणियों से पाला पड़े। घर है या नरक? आदमी बाहर से थका-मांदा आता है, तो उसे घर में आराम मिलता है।

यहां आराम के बदले कोसने सुनने पड़ते हैं। मेरी मृत्यु के लिए व्रत रखे जाते हैं।

यह है पचीस वर्ष के दाम्पत्य जीवन का अन्त! बस, चल ही दूं।

जब देख लूंगा इनका सारा घमण्ड धूल में मिल गया और मिजाज ठण्डा हो गया, तो लौट आऊंगा। चार-पांच दिन काफी होंगे। लो, तुम भी याद करोगी किसी से पाला पड़ा था।

यही सोचते हुए बाबू साहब उठे, रेशमी चादर गले में डाली, कुछ रूपये लिये, अपना कार्ड निकालकर दूसरे कुर्ते की जेब में रखा, छड़ी उठाई और चुपके से बाहर निकले। सब नौकर नींद में मस्त थे । कुत्ता आहट पाकर चौंक पड़ा और उनके साथ हो लिया।

पर यह कौन जानता था कि यह सारी लीला विधि के हाथों रची जा रही है। जीवन रंगशाला का वह सूत्रधार किसी अगम गुप्त स्थान पर बैठा हुआ अपनी जटिल क्रूर क्रीड़ा दिखा रहा है।

यह कौन जानता था निर्दय कि नकल असल होने जा रही है, अभिनय सत्य का रूप ग्रहण करने वाला है।

निशा ने इन्दू को परास्त करके अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। उसकी पैशाचिक सेना ने प्रकृति पर आतंक जमा रखा था।

सद्रवृत्तियां मुंह छिपाये पड़ी थीं और कुवृत्तियां विजय-गर्व से इठलाती फिरती थीं। वन में वन्यजन्तु शिकार की खोज में विचार रहे थे और नगरों में नर पिशाच गलियों में मंडराते फिरते थे।

बाबू उदयभानुलाल लपके हुए गंगा की ओर चले जा रहे थे।

उन्होंने अपना कुर्त्ता घाट के किनारे रखकर पांच दिन के लिए मिर्जापुर चले जाने का निश्चय किया था।

उनके कपड़े देखकर लोगों को डूब ‘जाने का विश्वास हो जाएगा, कार्ड कुर्ते की जेब में था।

पता लगाने में कोई दिक्कत न हो सकती थी। दम के दम में सारे शहर में खबर मशहूर हो जाए गी। आठ बजते-बजते तो मेरे द्वार पर सारा शहर जमा हो जाएगा, तब देखूं, देवी जी क्या

लेखक प्रेमचंद-Premchand
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 301
Pdf साइज़10 MB
Categoryउपन्यास(Novel)

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