नानी की ऐनक – Nani Ki Enak PDF Free Download
नानी की ऐनक
नानी की ऐनक हमेशा गुम हो जाती है। “मैं कहाँ ढूँढू, मैंने उसे कहाँ रख दिया?” वह हमेशा कहती रहतीं। अपनी ऐनक के बिना, वह ऐनक नहीं ढूँढ सकतीं।
इसलिए उन्हें मेरी ज़रूरत है, उनकी आँखें बनकर उनकी आँखें ढूँढ़ने के लिए! कभी उनकी ऐनक बाथरूम में, कभी बिस्तर पर तो कभी माथे के ऊपर होती।
“नानी! आपका चश्मा आपके सिर पर है, मैं कहती। “सचमुच! मैं बड़ी बेवकूफ़ हूँ। शुक्रिया ऋचा बेटी!” वह हँसती हुई कहतीं। मगर, इस बार नानी की ऐनक मुझे नहीं मिली…अब तक तो नहीं!
मैंने उसे हर जगह ढूँढा, जहाँ वह अक्सर रखी रहती। उनके माथे पर, बाथरूम में, उनकी अलमारी में पूजा की जगह पर उनकी पसंदीदा कुर्सी के नीचे और खाने की मेज़ पर। नहीं… कहीं नहीं मिली। कहाँ गई वह ऐनक?
मैंने तय किया कि अब मुझे अच्छा जासूस बनना पड़ेगा। मैंने जानना चाहा कि नानी ने दिन भर में क्या-क्या किया? “मैंने आज कुछ खास नहीं किया, सिवाय वीणा की सास से बातें करने के।
तुम्हें तो पता ही है कि वह कितनी गप्पी है। हम दोनों ने कई बार चाय पी और वे सारे लड्डू खा गई जो तुम्हारी माँ ने बनाए थे।” नानी बोलीं। राजू ने कहा, “नानी आज बहुत व्यस्त रहीं।
वह अपनी पेन्शन के लिए मुख्यमंत्री को पत्र भी लिख रही थीं।”अम्मा बोली, “वह बहुत देर तक तुम्हारी मौसी से बात भी करती रही थीं। उन्होंने उस स्वेटर को भी पूरा किया, जो वह राजू के लिए बुन रही थीं।
फिर वह टहलने निकल गई थीं।”अब मुझे खोज के लिए कई सूत्र मिल गए। मैंने घर में तुरंत ही नई जगहों पर ढूँढना शुरू किया। “अहा! मुझे ऐनक मिल गई!”
ऐनक ऊन में लिपटी पड़ी थी। उनकी कलम के बगल में, फोन के नीचे, मेज़ के ऊपर। और वहीं पर मुझे आधा खाया हुआ लड्डू भी मिला। झे लगता है कि नानी के अगले जन्मदिन पर एक और ऐनक खरीदने के लिए मैं पैसे जमा कर लेती हूँ।
लेखक | नोनी-Noni |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 16 |
Pdf साइज़ | 1.8 MB |
Category | कहानियाँ(Story) |
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