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आर्य्य भटीय ग्रंथ – Arya Bhatiya Book PDF Free Download
आर्यभटीयम ज्योतिशास्त्र
परन्तु ब्रह्मगुप्त के अनन्तर यह ग्रन्थ रचा गया ऐसा स्पष्ट प्रतीत होता है। इस का कारण यह है कि यह अपने सिद्धान्त को कलियुग के प्रारम्भ ही में बनना बतलाते हैं,
इस से अपने ग्रन्थ को पौरुष ग्रन्थकारों में गवना करते हैं। ब्रह्मगुप्त के पहिले इन के ग्रन्थोलिखित वर्षमान या अन्यान्य मानों का वस्तुतः कहीं प्रचार होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता।
ब्रह्म गुप्त ने अपने ग्रन्थ में शार्यभट के दूषणों को सब से पहिले दिखलाया है। इस से ब्रह्मगुप्त के पहिले प्रथम प्रायभट हुए यह सिद्ध होता हैं। द्वितीय आर्यभट के सिद्धान्त के किसी विषय का उल्लेख ब्रह्मगुप्त ने नहीं किया,
यदि द्वितीय श्रर्यटग्रन्थ उस समय या उससे पहिले बना होता तो अवश्य इस का भी उल्लेख ब्रह्मगुप्त करते । “ पञ्चसिद्धान्तिका” (जो शाके ४२७ का बना है)
में जय गति का उन कुछ भी नहीं दीखता पहिला घायंभट, ब्रह्मगुप्त, लम इन के ग्रन्थों में प्रगति का वर्णन नहीं है और इस द्वितीय सिद्धान्त में इसका वर्णन है।
अधिक क्या कहा जावे प्रथम आयभट २दूषण ब्रह्मगुप्त ने दिखलाये हैं. उस २ के उद्वार का पत्र, द्वितीय, आर्यभट ने किया है। इन के ग्रन्थ में युगपद्धति (सत. त्रेता, द्वापर, कलि) है;
कल्प का प्रारम्भ रविवार को माना है और पहिला मा० म० युग के बारम्भ में मध्यमय एकत्र रहते, स्पष्टयह एकत्र नहीं रहते ऐसा लिखा है। इसका खण्डन ब्रह्मगुप्त ने किया है
(०२ आयो ४६) परन्तु द्वितीय आर्यभट के प्रमाण में सृष्टि के प्रारम्भ में स्पष्ट यह एकत्र होते हैं इन सब प्रमाणों से ब्रह्मगुप्त के अनन्तर अर्थात् शाके ५८७ के अनन्तर से आ०० थे। यह उस समय का प्राचीन सिद्धान्त माना जाता और अवांचीन सिद्धान्त सब से पह
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लेखक | परमेश्वर-Parameshwara |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 134 |
Pdf साइज़ | 10 MB |
Category | ज्योतिष(Astrology) |
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आर्यभटीयम ज्योतिशास्त्र की किताब – Aryabhatiya Book PDF Free Download
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|| जय श्री राम। ||
कुंवर जितेंद्र सिंह चौहान
|| वंदे भारत मातरम्—जय श्रीराम—जय शिव शंकर ||
24 June 2021
धन्यवाद जीतेन्द्र जी