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मरणोत्तर जीवन – Marnottar Jeevan PDF Free Download
मरणोत्तर जीवन
१. क्या आत्मा अमर है:
“विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति” -भगवद्गीता
उप बृहत् पौराणिक ग्रंथ महाभारत में एक आख्यान है त्रिसमें कथानायक युधिष्टिर से चर्म ने प्रश्न किया कि संसार में अत्यन्त आश्चर्यकारक क्या है?
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि मनुष्य अपने जीवन भर, प्रायः प्रतिक्षण अपने चारों और सरकार मृत्यु का ही दृश्य देखता है. नथापि उसे ऐसा दृढ़ और अटल विश्वास है कि मैं मृत्युहीन है।
और मनुष्य-जीवन में पद सचमुच अल्प्न आर্जनक ै द्यपि भिन्न भिन्न मतावलम्ची भिन्न भिन्न जमाने में इसके विपरीत दलीलें करते आए और यद्यपि इन्द्रिय द्वारा प्राध्य और
अतीन्द्रिय सृष्टियों के बीच जो रहस्य का परदा सदा पड़ा रहेगा उमका भेदन करने में बुद्धि असमर्थ है, तथापि मनुष्य पूर्ण रूप से यही मानता है कि वह मरणदीन है।
हम जन्म भर अध्ययन करने के पथात् भी अन्त में जीवन और मृत्यु की समस्या को तर्क द्वारा प्रमाणित करके “हो” या “नहीं” में उत्तर देने में अमफल रहे ।
हम मानव- जीवन की स्थिरता या अस्थिरता के पक्ष में या विरोध में चाहे जितना बोले या लिखे, शिक्षा हैं या उपदेश करे; हम इस पक्ष के या उस पक्ष के प्रबल या कट्टर पक्षपाती बन जायें;
एक से एक पेंचीदे सैकड़ों नामों का आविष्कार करके क्षणभर के लिये इस भ्रम में पडकर भले ही शान्त हो जाय कि हमने समस्या को सदा के लिए हल कर डाला
हम अपनी शक्ति भर किसी एक विचित्र धार्मिक मिथ्या विश्वास या और भी अधिक आपत्तिजनक वैज्ञानिक मिथ्या भ्रम से चाहे चिपके रहें, परन्तु अन्त में तो हम यहाँ देम्वगे कि
हम तर्क की संकीर्ण गली में खिलबाड हो कर रहे हैं और केवल बार बार मार म्वाने के लिए मानो एक के बाद एक बौद्धिक गोटियों उठाते और रखते जाते हैं ।
लेखक | स्वामी विवेकानंद-Swami Vivekananda |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 40 |
Pdf साइज़ | 2.9 MB |
Category | प्रेरक(Inspirational) |
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