मनुस्मृति | Manusmriti PDF In Hindi

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मनुस्मृति श्लोक अर्थ सहित – Manu Smruti Book PDF Free Download

मनुस्मृति के बारेमें

मनुस्मृति का यह परिवर्धित एवं परिष्कृत | नवीन संस्करण आपके हाथों में है । प्रथम संस्करण का प्रकाशन अत्यत्न शीघ्रता में हुआ था । प्रकाशन के साथ-साथ अग्रिम अनुसन्धान कार्य भी चलता रहा था ।

भूमिका भाग पहले छप चुका था और प्रक्षेपानुन्धान का कार्य उसके बाद भी होता रहा । इन तथा कुछ अन्य कारणों से प्रथम संस्करण में कुछ कमियां और त्रुटियां रह गयी थीं ।

उनके लिए हमें खेद हैं। अग्रिम संस्करणों में उन त्रुटियों को दूर कर दिया गया है। साथ ही पाठकों के लिए बहुत सारी नयी सामग्री भी इसमें दी जा रही है।

भूमिका में मनु एवं मनुस्मृति से सम्बन्धित नये विषयों पर भी विचार किया गया है और नये दृष्टिकोण से निर्णय लेने का प्रयास किया गया है ।

इस बात की अत्यन्त आवश्यकता है कि प्रक्षेपानुसन्धान के परिप्रेक्ष्य में मनुस्मृति का पुनर्मूल्यांकन किया जाये । उसी आवश्कता की पूर्ति के लिए यह एक प्रयास है।

मैं आशा करता हूं कि यह संस्करण पाठकों के लिए और अधिक उपयोगी सिद्ध होगा ।

स्मृतियों या धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सर्वाधिक प्रामाणिक आर्ष ग्रन्थ है । मनुस्मृति के परवर्तीकाल में अनेकों स्मृतियां प्रकाश में आयीं किन्तु मनुस्मृति के तेज के समक्ष वे टिक नहीं सकीं अपना प्रभाव न जमा सकीं, जबकि मनुस्मृति का वर्चस्व आज तक पूर्ववत विद्यमान है ।

मनुस्मृति में एक ओर मानव एवं मानव-समाज के लिए सांसारिक श्रेष्ठ कत्तव्यों का विधान है, तो साथ ही मानव को मुक्ति प्राप्त कराने वाले आध्यात्मिक उपदेशों का निरूपण मी है, इस प्रकार मनुस्मृति मौतिक एवं आध्यात्मिक आदेशों – उपदेशों का मिलाजुला अनूठा शास्त्र है ।

इसके साथ-साथ सभी धर्मशास्त्रों से प्राचीन होने और सृष्टि के प्रारम्भिक काल का शास्त्र होने का गौरव मी मनुस्मृति को ही प्राप्त है।

शतपथ, तैत्तिरीय, काठक, मैत्रायणी, ताण्ड्य आदि ब्राह्मणों में मनु का उल्लेख होना और “मनुर्वै यत्किञ्च्चावदत तद् भैषजम्” अर्थात् ‘मनु ने जी कुछ कहा है, वह भेषज = औषध के समान गुणकारी एवं कल्याणकारी है’, आदि वचनों का प्राप्त होना मनुस्मृति को प्राचीनतम और विशिष्ट धर्मशास्त्र सिद्ध करता है।

महर्षि दयानन्द ने मनुस्मृति का काल आदिसृष्टि में माना है । उसका अभिप्राय यही है कि मनु मानव एवं मानव-समाज की मर्यादाओं, व्यवस्थाओं के सर्वप्रथम उपदेष्टा थे ।

मनु की व्यवस्थाएं सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक रूप में सत्य एवं व्यावहारिक हैं। इसका कारण यह है कि मनुस्मृति वेदमूलक है ।

पूर्णत : वेद मूलक होना मनुस्मृति की एक ओर परमविशेषता है। इस विशेषता के कारण भी मनुस्मृति को सर्वाधिक सम्मान मिला।

शास्त्रकारों ने मनुस्मृति के महत्व को निर्विवाद रूप में स्वीकार करते हुए ही यह स्पष्ट घोषणा की है कि

मनुस्मृति-विरुद्धा या सा स्मृतिर्न प्रशस्यते । (बृह. स्मृति संस्कारखण्ड वेदार्थोपनिबदत्वात् प्राधान्यं हि मनो: स्मृते: ।। १३-१४)।

अर्थात ‘जो स्मृति मनुस्मृति के विरुद्ध है, वह प्रशंसा के योग्य नहीं है । वेदार्थों के अनुसार वर्णन होने के कारण मनुस्मृति ही सब में प्रधान और प्रशंसनीय है ।’

इस प्रकार अनेकानेक विशेषताओं के कारण मनुस्मृति मानवमात्र के लिए उपयोगी एवं पठनीय है । किन्तु खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज ऐसे उत्तम और प्रसिद्ध ग्रन्थ का पठन-पाठन लुप्त प्राय: होने लग रहा है।

इसके प्रति लोगों में अश्रद्धा की भावना घर करती जा रही है। इसका कारण है. ‘मनुस्मृति में प्रक्षेपों की भरमार होना । प्रक्षेपों के कारण मनुस्मृति का उज्ज्वल रूप गन्दा एवं विकृत हो गया है ।

परस्परविरुद्ध, प्रसंगविरुद्ध एवं पक्षपातपूर्ण बातों से मनुस्मृति का वास्तविक स्वरूप और उसकी गरिमा विलुप्त हो गये हैं।

एक महान् तत्त्वद्रष्टा, ऋषि के अनुपम शास्त्र को प्रक्षेपकर्ताओं ने विविध प्रक्षेपों से दूषित करके न केवल इस शास्त्र के साथ अपितु महर्षि मनु के साथ भी अन्याय किया है ।

इस अनुसन्धानकार्य एवं भाष्य की विशेषताएं –

(१) प्रक्षिप्त श्लोकों के अनुसन्धान के मानदण्डों का निर्धारण और उन पर समीक्षा.

इस प्रकाशन का सबसे प्रमुख प्रयोजन यही है कि मनुस्मृति के दूषित, गदले, विकृत रूप को दूरकर उसके वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत करना ।

वैसे तो बाजार में हिन्दी-संस्कृत की टीकायुक्त मनुस्मृति के सैकड़ों प्रकाशन उपलब्ध हैं, और कई सौ वर्षों से मनुस्मृति पर लेखन कार्य होता चला आ रहा है, किन्तु अभी तक इस दृष्टि से और इस रूप में किसी भी लेखक ने कार्य नहीं किया ।

महर्षि दयानन्द के वचनों से प्रेरणा एवं मार्गदर्शन प्राप्त करके मनुस्मृति के प्रक्षेपों के अनुसन्धान का यह कठिन एवं उलझनभरा कार्य प्रारम्भ किया और कई वर्षों तक सतत प्रयास के परिणामस्वरूप मनुस्मृति के प्रक्षेपों को निकालने का कार्य सम्पन्न हो पाया है।

यद्यपि अभी इस अनुसन्धान कार्य को ‘अन्तिम’ नहीं कहा जा सकता, किन्तु इतना अवश्य है कि अधिकांश प्रक्षेपों के निकल जाने से मनुस्मृति का वह दूषित, विकृत और गदला स्वरूप पर्याप्त रूप में दूर हो गया और उसका उज्ज्वल वास्तविक रूप सामने आया है ।

प्रक्षेपों को निकालने में किसी पूर्वाग्रह या पक्षपात की भावना का आश्रय न लेकर तटस्थता को अपनाया है और ऐसे ‘आधारों’ या ‘मानदण्डों को आधार बन्मया है, जो सर्वसामान्य है ।

वे हैं. (१) अन्तर्विरोध या परस्परविरोध, (२) प्रसंगविरोध, (३) विषयविरोध, (४) अवान्तरविरोध, (५) शैलीविरोध, (६)पुनरुक्ति, (७) वेदविरोध । ये सभी मानदण्ड कृति के अन्त:साक्ष्य पर आधारित है ।

मनुस्मृति के सभी श्लोकों को यथास्थान, यथाक्रम रखते हुए जहाँ-जहाँ प्रक्षेप है, वहाँ-वहाँ उन पर पूर्वोक्त आधारों के नामोल्लेख पूर्वक ‘अनुशीलन’ नामक समीक्षा दे दी गयी है, जिससे पाठक स्वयं भी उनकी परीक्षा कर सकें ।

उपलब्ध मनुस्मृतियों में कुल श्लोक संख्या २६८५ है । प्रक्षेपा नुसन्धान के पश्चात १४७१ श्लोक प्रक्षिप्त सिद्ध हुए हैं और १२१४ श्लोक मौलिक । अध्यायानुसार प्रक्षिप्त एवं मौलिक श्लोकों की तालिका निम्न प्रकार है

(२) विभिन्न शास्त्रों के प्रमाणों से पुष्ट अनुशीलन समीक्षा

प्रक्षिप्त श्लोकों के विवेचन के अतिरिक्त लगभग ६०० श्लोकों’ पर ‘अनुशीलन’ समीक्षा देकर उसमें श्लोक के भावों, गुत्थियों, विवादों, मान्यताओं तथा अन्यान्य विचारणीय बातों पर मनन किया उसका उज्ज्वल गया है और अधिक से अधिक स्पष्ट करने तथा सुलझाने का प्रयास किया गया है ।

अनेक स्थलों पर विषय को तालिकाओं के द्वारा भी स्पष्ट किया गया है। समीक्षा में वेदों, ब्राह्मणग्रन्थों, संहिताओं, उपनिषदों, दर्शनों, व्याकरण एवं सूत्रग्रन्थों, निरुक्त, सुश्रुत तथा कौटिल्य अर्थशास्त्र आदि के अनेक प्रमाण देकर उनसे मनु की मान्यताओं और भावों का समन्वय स्थापित करते हुए उन्हें और अधिक प्रमाणित एवं पुष्ट किया गया है ।

अनेक पदों का व्याकरण देकर उनका अर्थ भी उद्घाटित किया न्त: साक्ष्य पर है। कौटिल्य अर्थशास्त्र को आंशिक रूप में ही प्रामाणिक माना गया है।

उसे तुलनात्मक रूप मे उद्धृत करने का अभिप्राय यह दर्शाना भी है कि मनूक्त विधि-विधान पर्याप्त अवरकाल तक अविरलरूप में मान्य और प्रचलित रहे है !

(३) मनु के वचनों से मनु के भावों की व्याख्या

उपर्युक्त अनुशीलन के साथ-साथ यह भी प्रयास किया गया है कि जिन श्लोकों या भावों की व्याख्या और स्थष्टीकरण स्वयं मनु के वचनों से प्राप्त हो सकें, उन्हें उनके आधार पर ही समझा और स्पष्ट किया जाये ।

ऐसी बहुत सी मान्यताएं है, जिन्हें स्वयं मनु ने ही अन्य श्लोकों में यत्र-तत्र स्पष्ट या पुष्ट किया है । ऐसे श्लोकों को अथवा उनकी संख्या को सम्बद्ध श्लोक पर अनुशीलन समीक्षा में तुलना या अन्यत्र व्याख्यात के रूप में दे दिया है।

इसके अतिरिक्त श्लोकव्याख्या के बीच में भी बृहतकोष्ठक के अन्तर्गत ऐसे श्लोकों की संख्या दी हुई है, जिनसे उस विषय पर प्रकाश पड़ता है।

अनुवादकरामेश्वर भट्ट -Rameshwar Bhatt
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 405
Pdf साइज़10.9 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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