मानसरोवर – Mansarovar Book/Pustak PDF Free Download

मानसरोवर कहानी
शिवदास ने भंडारे की कुंजी अपनी बहू रामप्यारी के सामने फैककर अपनी बूढी आँखों में आँसू भरकर कहा-बहू, आज से गिरस्ती की देखभाल तुम्हारे ऊपर है।
मेरा सुख भगवान से नहीं देखा नया, नहीं तो क्या जवान बैदे को ी छीन लेता उसका काम करने वाला तो कोई चाहिए पक हल तोड़ दे तो गुजारा न होगा।
मेरे ही कुकरम से भगवान का यह कौन आया है, और में ही अपने माये पर उसे लूंगा। चिरजू का हल अब में ही संभालूंगा।
अब घर देख रेख करने वाला, धरने उठाने वाला तुम्हारे सिवा दूसरा कौन है? रोना मत बेटा, भगवान की जो इच्छा थी, वह हुआ और जो इच्छा होगी वह होगा।
हमारा-तुम्हारा क्या बस है? मेरे जीते-जी तुम्हें कोई टी आँख से देख भी न सकेगा। तुम किसी बात का सोच मत किया करो। बिरजू गया, तो अभी बैठा ही हुआ हूं।
रामप्यारी और रामदुलारी दो सगी बहने थी] दोनों का विवाह मथुरा और बिरजू दो सगे भाइयों से हुआ।
दोनों बहने गैहर की तरह ससुराल में भी प्रेम और आनंद से रहने लगी। शिदान को पेंशन मिली। टिन-अरे दवार पर गपशप करते।
भरा-पूरा परिवार देखकर प्रसन्न होते और अधिकार र्म-चर्च में लगे रहते थे, लेकिन दैव गति से बड़ा लड़का विरजू बिमार पड़ा और आज उसे मरे हुए पंद्रह दिन बीत गए |
अभिक्रिया-करने से फुरसत मिली और शिवदास ने सच्चे करवीर की ऑति फिर जीवन संग्राम के लिए कमर कर ली मन में उसे चाहे कितना ही दुख हुआ हो, उसे किसी ने रोते नहीं देखा।
आज अपनी बह को देखकर एक क्षण के लिए उसकी आँखे समान ही गई, लेकिन इसने मन को सभाला और रूद कठ म उस दिलासा देने लगा।
लेखक | प्रेमचंद-Premachand |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 350 |
Pdf साइज़ | 1.6 MB |
Category | कहानियाँ(Story) |
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