मानक हिंदी व्याकरण – Manak Hindi Grammar Book PDF Free Download

सरस्वती मानक हिंदी व्याकरण एवं रचना
व्याकरण का महत्व
प्राचीन एवं मध्यकाल में व्याकरण का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत था। लेकिन अब भाषाविज्ञान, शब्दार्थ और अलंकार के तीन अंगों को इससे अलग कर दिया गया है और इन्हें स्वतंत्र अनुशासन माना जाने लगा है। अब व्याकरण, वार्तालाप और साहित्य में उपयोग की जाने वाली भाप की प्रकृति, उसके निर्माण, उसके घटकों, उनके प्रकार और आपसी संबंधों तथा उनकी संरचना और रूप में परिवर्तन पर विचार किया जाता है।
भाषा के दो मुख्य घटक हैं – एक शब्द और दूसरा विराम चिह्न। किसी शब्द के घटक बोलने में ध्वनियाँ और लिखने में अक्षर होते हैं। शब्दों के प्रकार विकृत एवं अरूपांतरित होते हैं तथा इनके भी कई प्रकार होते हैं- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, विभक्ति, क्रिया, क्रिया-विशेषण, विस्मयादिबोधक आदि।
इन्हें या इनमें से कुछ को एक विशिष्ट क्रम में प्रस्तुत किया जाता है और वाक्य का रूप ले लिया जाता है। . वाक्य के भी कई भाग और प्रकार होते हैं। व्याकरण में इन सभी बातों का विचार किया जाता है।
व्याकरण को वास्तव में भाषा संबंधी नियमों का संग्रह कहा जाना चाहिए। ये नियम वास्तविक स्थिति के आधार पर बनाए गए हैं. भाषा के विकास एवं परिवर्तन के फलस्वरूप नियमों में भी परिवर्तन की आवश्यकता होती है।
हमारे प्राचीन भाषा-विज्ञानियों ने कुछ व्यंजन वर्णों को कोमल और अन्य व्यंजन वर्णों को कठोर कहा है । कोमल व्यंजन वर्णों को सुदु या घोष भी कहते हैं, और कठोर व्यंजनों को अघोष भी कहते हैं।
घोष का अर्थ है-मृदु ध्वनिवाला; और अघोष का अर्थ है-मृदु ध्वनि से रहित । पाँचों वर्गों के पहले दो दो वर्ण तथा ऊष्म वर्ण कठोर या अघोष होते हैं।
और प्रत्येक वर्ग के अन्तिम तीन वर्ण, अंतर वर्ण और विसर्ग मदु अर्थात् घोष वर्ण कहे जाते हैं।
वर्णों के इस भेद का पता उनके उच्चरित होने के बाद चलता है, इसलिए यह भेद बाह्य- प्रयत्न भेद या यत्न-भेद कहलाता है।
घोष और अघोष वर्णों की एक सुगम पहचान यह है कि घोष गुणों का कारण [करने के बाद गले में एक हलकी होती है;
परन्तु अघोष वर्णों का ধारण करते समय ऐसी कोई झनकार या गूँज नही होती।इस प्रकार क ख अघोष हुए और गू प् ( तथा कूभी) घोष हुए । इसी प्रकार ज टू टू टू टू टू अघोष हुए और ज् कू ब् ् द्् द न म म म् घोष ध्वनियाँ हुई।
अब यह भी जान लेना चाहिए कि कू कू कंठ्य अथोष व्यंजनों में तथा ग् घ् कंट्य घोष व्यंजनों में परस्पर क्या अन्तर है।
इनमें अस्तुतः स्यरूप रचना या प्राणभेद का अंतर है। कु के साथ ह का संयोग होने पर ख बनता है, इसी प्रकार हर वर्ग के पहले और तीसरे वर्गों में ह का संयोग होने पर उस वर्ग के क्रमशः दूसरे और चौथे वर्ण बनते हैं।
लेखक | रामचंद्र वर्मा-Ramchandra Verma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 168 |
Pdf साइज़ | 11.1 MB |
Category | Grammar |
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