मानक हिंदी व्याकरण – Manak Hindi Grammar Book PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
हमारे प्राचीन भाषा-विज्ञानियों ने कुछ व्यंजन वर्णों को कोमल और अन्य व्यंजन वर्णों को कठोर कहा है । कोमल व्यंजन वर्णों को सुदु या घोष भी कहते हैं, और कठोर व्यंजनों को अघोष भी कहते हैं।
घोष का अर्थ है-मृदु ध्वनिवाला; और अघोष का अर्थ है-मृदु ध्वनि से रहित । पाँचों वर्गों के पहले दो दो वर्ण तथा ऊष्म वर्ण कठोर या अघोष होते हैं।
और प्रत्येक वर्ग के अन्तिम तीन वर्ण, अंतर वर्ण और विसर्ग मदु अर्थात् घोष वर्ण कहे जाते हैं।
वर्णों के इस भेद का पता उनके उच्चरित होने के बाद चलता है, इसलिए यह भेद बाह्य- प्रयत्न भेद या यत्न-भेद कहलाता है।
घोष और अघोष वर्णों की एक सुगम पहचान यह है कि घोष गुणों का कारण [करने के बाद गले में एक हलकी सी ानकार या गज होती है;
परन्तु अघोष वर्णों का ধारण करते समय ऐसी कोई झनकार या गूँज नही होती।इस प्रकार क ख अघोष हुए और गू प् ( तथा कूभी) घोष हुए । इसी प्रकार ज टू टू टू टू टू अघोष हुए और ज् कू ब् ् द्् द न म म म् घोष ध्वनियाँ हुई।
अब यह भी जान लेना चाहिए कि कू कू कंठ्य अथोष व्यंजनों में तथा ग् घ् कंट्य घोष व्यंजनों में परस्पर क्या अन्तर है।
इनमें अस्तुतः स्यरूप रचना या प्राणभेद का अंतर है। कु के साथ ह का संयोग होने पर ख बनता है,
इसी प्रकार हर वर्ग के पहले और तीसरे वर्गों में ह का संयोग होने पर उस वर्ग के क्रमशः दूसरे और चौथे वर्ण बनते हैं। इसी लिए हम हर वर्ग के पहले और तीसरे बणं को अल्प-श्राण
लेखक | रामचंद्र वर्मा-Ramchandra Verma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 168 |
Pdf साइज़ | 11.1 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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