मन को वश करने के उपाय | Man Ko Vash Karne Ke Upay PDF

मन को वश करने के उपाय – Man Ko Vash Karne Ke Upay Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

रकार रित सते समय बाद मन और भी ऐश्वर्या परिच्छा दिखे तो क्या वर्ष है। पर इससे डरकर मा माना बदन करना चाहिये।

इस प्रकारकी इद प्रतिभा कर लेनी चाहिये कि किसी प्रकारकी भी विधवा चिन्ता या मिथ्या संकल्पों की मन में नहीं आने दिया जाये या।

बड़ी बेटा, बड़ी हड्ता रखने पर भी मन साधककी चेष्टागीको कई बार व्यर्य कर देता है, साधा तो समझता है कि मैं ध्यान कर रहा हूपर मगदेवता संकल्प विकल्पों की पूजा में उप जाते हैं।

जब 1. साधक मन की ओर देखता है तो उसे आश्चर्य होता है कि यह प्या दुआ ?

इहने नये नये संकल्प, जितकी भावना भी नहीं की गयी ये कहाँ आ गये नात यह दोस्ती है कि साधक जिंद मन को विषय करना चाहता है

संघ संसारके नित्य व्यस्ट विपर्यसि उनको फुरसत मिल जाती है, उघर परमात्मामें लानेका इससमय तक उसे पूरा अभ्यास नहीं होता ।

इसलिये फुरसत पाते ही वह उन पुराने दृश्यों की ( जो संस्कार रूप से उस पर उल्टी हो रहे हैं) वायस्कोपके फिल्म की भक्ति गण क्षण में एक के बाद एक करने लग जाता है।

इसीसे उस समय पैसे संकल्प मन में उठते हुए मालूम होते हैं, जो संसारका काम करते समय याद भी नहीं आते थे। मनकी ऐसी पर्यटन होकर साधक स्तंभित-सा रह जाता है, पर है चिंता नहीं।

जव अभ्यास के बल बढ़ेगा तो उसको संसारसे फुरसत मिलते ही तुरन्त परमात्मामें लग जाएगा ।

अभ्यास दृढ़ मन साधककी चेष्टागीको कई बार व्यर्य कर देता है, साधा तो समझता है कि मैं ध्यान कर रहा हूपर मगदेवता संकल्प विकल्पों की पूजा में उप जाते हैं। जब 1. साधक मन की ओर देखता है तो उसे आश्चर्य होता है |

संस्कारोंसे रहित करते समय यदि मन और भी अस्थिर या अपरिच्छिन्न दीखे तो क्या आश्चर्य है ? पर इससे डरकर भा लगाना बन्द न करना चाहिये ।

इस प्रकारकी दृढ़ प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिये कि किसी प्रकारकी भी वृथा चिन्ता या मिथ्या संकल्पोंको मनमें नहीं आने दिया जायगा।

बड़ी चेष्टा, बड़ी दृढ़ता रखनेपर भी मन साधककी चेष्टाओंको कई बार व्यर्थ कर देता है, साधक तो समझता है कि मैं ध्यान कर रहा हूं पर मनदेवता संकल्प-विकल्पोंकी पूजामें लग जाते हैं।

जब साधक सनकी ओर देखता है तो उसे आश्चर्य होता है कि यह क्या हुआ ? इतने नये नये संकल्प, जिनकी भावना भी नहीं की गयी थी कहाँसे आ गये ! बात यह होती है कि साधक ? जब मनको निर्विषय करना चाहता है तब संसारके नित्य अभ्यस्त विषयोंसे मनको फुरसत मिल जाती है, उधर परमात्मामें लगनेका इससमय तक उसे पूरा अभ्यास नहीं होता।

इसलिये फुरसत पाते ही वह उन पुराने दृश्योंको (जो संस्काररूपसे उस पर, अङ्कित हो रहे हैं) बायस्कोपके फिल्मकी भांति क्षण क्षणमें एकके बाद एक उलटने लग जाता है।

इसीसे उस समय ऐसे संकल्प मनमें उठते हुए मालूम होते हैं, जो संसारका काम करते समय याद भी नहीं आते थे। मनकी ऐसी प्रचलता देखकर साधक स्तम्भित-सा रह जाता है, पर कोई चिन्ता नहीं।

जब अभ्यासका बल चढ़ेगा तब उसको संसार से फुरसत मिलते ही तुरन्त परमात्मामें लग जायगा |

तामसिक मालूम पड़ें उनके लिये मनको धिक्कारना चाहिये ।

प्रतिदिन इस प्रकारके अभ्याससे मनपर सत्कार्य करनेके और असत्कार्य छोड़नेके संस्कार जमने लगेंगे, जिससे कुछ ही समय में मन बुराइयोंसे बचकर भले भले कार्योंमें लग जायगा ।

भन पहले भले कार्यवाला होगा तब उसे यश करनेमें सुगमता होगी। कुसङ्गमें पड़ा हुआ चालक जबतक कुसङ्ग नहीं छोड़ता, तबतक उसे कुङ्गियोंसे बुरी सलाह मिलती रहती है, इससे उसका में होना कठिन रहता है पर जब कुसंग छूट जाता है तब उसे बुरी सलाह नहीं मिल सकती, दिनरात घरमें उसको माता पिता सदुपदेश मिलते हैं, वह भली भली बातें सुनता है। तब फिर उसके सुधरकर माता-पिताके आज्ञाकारी होने में विलम्ब नहीं होता। इसी तरह यदि विषय- चिन्तन करनेवाले हो निर्विषय करना चाहे तो वह नहीं कर सकता |

पहले मनको बुरे चिन्तनसे बचाना चाहिये, जब वह परमात्मा सम्बन्धी शुभ चिन्ता करने लगेगा तब उसको चश करने में कोई कठिनाई नहीं होगी । मनके कहने में न चलना मन में नहीं चलना चाहिये ।

जवंतक यह मन a नहीं हो जाता तबतक इसे परम शत्रु मानना चाहिये । जैसे शत्रुके प्रत्येक कार्यपर निगरानी रखनी पड़ती है वैसे ही सभी प्रत्येक कार्यको सावधानीले देखना चाहिये।

लेखक हनुमान प्रसाद-Hanuman Prasad
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 39
Pdf साइज़1 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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