मध्यप्रदेश का प्राचीन इतिहास | Major Princely States Of Madhya Pradesh PDF In Hindi

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MP के इतिहास की प्रमुख रियासतें – Major Princely States In The History Of MP PDF Free Download

प्रमुख रियासतें

स्वतंत्रता संग्राम में मध्यप्रदेश के सभी क्षेत्रों से स्वतंत्रता सेनानियों ने भाग लिया। इस प्रकार शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र रहा हो जहाँ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौजूद न रहे हो।

हर क्षेत्र, हर स्थान के लोगों ने बढ़-चढ़कर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से इस राष्ट्रीय संग्राम में भाग लिया, जिनके अमूल्य बलिदान के फलस्वरूप ही आज हम आजादी के माहौल में साँस ले रहे हैं।

यद्यपि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रदेश की सीमाओं में न बंधकर राष्ट्र को सर्वोपरि मानते रहे हैं, अतएव उन्हें प्रदेश की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। यहाँ जिन प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का उल्लेख किया गया है, उनका मध्यप्रदेश के किसी-न-किसी स्थान से स्वतंत्रता संग्राम में योगदान रहा है।

सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई झाँसी की रहने वाली थी, लेकिन उन्होंने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण युद्ध मध्यप्रदेश में लड़ते हुए अंग्रेजों को कड़ी चुनौतियों व पराजित भी किया।

तात्या टोपे की मदद से उन्होंने ग्वालियर किले पर अधिकार कर लिया था। अंग्रेज सेनापति ह्यूरोज ने जब ग्वालियर को चारों ओर से घेर कर आक्रमण किया, रानी लक्ष्मीबाई बहुत वीरता से लड़ीं, 18 जून 1858 को ग्वालियर किले के पास युद्ध करते हुए बाबा गंगादास के बगीचे में वीरगति को प्राप्त हुई।

रानी का शरीर अंग्रेजों के हाथ न लगे इसीलिए गंगादास की कुटिया के पास रखी घास को गंजियों में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।

रानी का पीछा करते हुए अंग्रेजों की सेना ने आश्रम को तहस-नहस कर दिया। बाबा गंगादास के सहयोगी करीब दो-तीन सौ साधु सन्यासी इस संघर्ष में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए।

रानी लक्ष्मीबाई का समाधि स्थल ग्वालियर में है। अंग्रेज जनरलों ने भी उनका लोहा मानते हुए उन्हें ‘सर्वाधिक पौरुपवाली’ कहकर उनको वीरता को सम्मान दिया।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के उलेखनीय वीर सेनानी तात्या टोपे, ने रानी लक्ष्मीबाई को स्वालियर पर अधिकार करने में मदद की रानी लक्ष्मीबाई को मृत्यु के बाद भी तात्या टोपे मध्यप्रदेश व अन्य स्थानों पर गुधि पद्धति से 2 वर्ष तक अंग्रेजों से लड़ते रहे।

एक मित्र के विश्वासघात के कारण तात्या को कैद कर लिया गया और शिवपुरी में फाँसी दे दी गई। वीरांगना रानी अवंतीबाई मंडला जिले के बारे सेनानियों में रामगढ़ को रानी ने भी अपनी मातृभूमि के प्रति जिस प्रेम तथा सीर्यका प्रदर्शन किया था, उसके कारण उनका स्थान हमारे देश की महानतम वीरांगनाओं में है।

रामगढ़ मंडला जिले सरकार ने शासन प्रबंध अपने हाथ में ले लिया और वहाँ अपना एक अधिकारी नियुक्त कर दिया व राज परिवार के भरण-पोषण के लिए वार्षिक वृत्ति बाँध दी। रानी अवंतीबाई (विक्रमाजीत की पत्नी) अत्यंत योग्य एवं कुशल महिला थी, जो राज्य का योग्य प्रबंधन व संचालन कर सकती थी, लेकिन उस समय अंग्रेजों की हड़प नीति चरम सीमा पर थी।

रानी ने अपना विरोध प्रकट करते हुए रामगढ़ से अंग्रेजों द्वारा नियुक्त अधिकारी को निकाल भगाया और राज्य का शासन सूत्र अपने हाथ में ले लिया। साथ ही उसने जिले के ठाकुरों और मालगुजारों से समर्थन हेतु सम्पर्क स्थापित किया। पड़ोस के अनेक जमींदारों ने उन्हें सहायता देने का वचन दिया।

रानी, सैनिक वस्व धारण कर हाथ में तलवार लेकर स्वयं अपने सैनिकों का रणक्षेत्र में नेतृत्व करती थी। अप्रैल 1858 को अंग्रेजों की सेना ने पर दोनों ओर से आक्रमण किया, जिस कारण रानी और उनकी सेना ने अपनी शक्ति और स्थिति को हुए किला खाली कर दिया और पास के जंगल में चली गई।

वहाँ से रानी अंग्रेजों पर निरंतर आक्रमणा रहीं, परन्तु इनमें से एक आक्रमण घातक सिद्ध हुआ। जब उन्होंने देखा कि वह घिर गई और उसका जाना निश्चित है

वीरांगनाओं की गौरवशाली परम्परा के अनुरूप बंदी होने की अपेक्षा मृत्यु को श्रेष्ठतर और क्षणमात्र में घोड़े से उतर कर अपने अंगरक्षक के हाथ से तलवार छीनकर उसे अपनी छाती में पो हँसते हँसते मातृभूमि के लिए बलिदान दे दिया।

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भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 4
PDF साइज़1 MB
CategoryHistory
Source/Creditsdrive.google.com

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