महाभिनिष्क्रमण – Mahabhinishkramn Book/Pustak Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
फेवल बीमका उपयोग ही नहीं कर रहा था, पीक यौधन बचा है । उसके आारममें कय है ।
इसके अंतर क्या है । सामी विचार करता था इतना ही नहीं कि यह सेव करमा या, चरिक ऐश-श्यायाम क्या है । उसी सुख कितना 1 कितना है ।
ऐसे मेनका काल फियना है एक भी विचार करता था। जहाना है।”इस राधिका उपभोग करते-करते, मेरे मनो विचार प्रामा कि मनुषय स्वर्षपेके हस है, फिर मीं उसे आदमी को देख ग्यानि होती है और उसका तिरस्कार करता है ।
लेकिन में सर्ग टाे तालमें सने का हू इसलिए सय नु रद श-प्रसा मनुष्यकी मनि करना या उसका तिरस्कार कना गई) देता । एस निपाके कारग मैा योकनका मद नड़ मूलो जाता रहा ।
सामान्य मा मनुष्य स्वर्य ब्याथके श्ड़ेमें] वयनेवाला है, फिर भी ग्यापिनासता गनुपप को देख उसे जानि होती है और उसका तिरस्कार या है।
लेकिन में स्वर्ष साधिके सर्र से नदी कूट सका; इसालिये भवधि-पल से स्नानि करना या उसका तिरस्कार कुटनों मुझे शोमा नदी देता इस विश्व रमणे मेरा आरोग्य मध्य यहा ।
को सामान्य श्रम मनुष्य स्मयको मात्र होनेवाला है, किर मा च ग देइकी देत करडा है और उसझा तिरस्कार करता है । सेकिन एमी की मृत्यु होगी, इसलिए सामान्य मनुष्य की व सूत-परको ऐस यानि करना और उसका शिकार करना नहीं देव ।
इस दिशा मेरा अयु-द विकृत न्यू हो गया ।जिनके पास घर, गाड़ी, घोड़ा, पशु, घन, स्री, पुत्र दाख-दाती भादि हो, वे इस संसार में सुखी माने जाते हैं । ऐसा माना जाता है कि मनुष्य का सुख इन वस्तुओं के आधार पर हैं; लेकिन सिद्धार्थ विचार करने लगा :।।
लेखक | हिजमनलाल जैन-Jamanlal Jain |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 160 |
Pdf साइज़ | 4.2 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
महाभिनिष्क्रमण – Mahabhinishkramana Book/Pustak Pdf Free Download