कलम का सिपाही – Kalam Ka Sipahi Book PDF Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
बनारस से आजमगढ़ जानेवाली सड़क पर, शहर से करीब चार मील दूर, एक छोटा-सा गाँव है, लमही, मौजा मढ़वाँ । पन्द्र-बीस षर कुमियों के, दो-एक कुम्हार, एकाध ठाकुर, तीन-चार मुसलमान (जिनमें पुरुषों में मथुरा और स्त्रियों में रमदेई,
सुनरी और कौसिलिया-जैसे नाम है !) और नौदस घर कायस्यों के – यही इस गाँव की कुल आबादी है। यों तो इक्का-दुक्का कायस्थ भी अपने हाथ से हल चला लेते हैं लेकिन बस इक्का-दुक्का । खेती-किसानी कुर्मियों का काम है ।
कायस्थों की शान में इससे बट्टा लगता है । वे यहाँ के अकेले पढ़े-लिखे लोग है और अपनी इसी काबलियत के बल पर अभी कुछ बरस पहले तक गाँव पर राज करते रहे है । मगर, अब कुछ तो कुर्मियों में शिक्षा के साथ अपने अधिकारों की चेतना
जागने के कारण और कुछ कायस्थों की आपसी फूट के कारण, उनके राज्य की चूलें हिल गयी है और उनका दबदबा काफी कम हो गया है। तो हम आज भी सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा वर्ग कायस्थों का ही है।
उनमे वकील है, मुख्तार है, पेशकार और अहलमद है, मुहरिर हैं, स्टाम्पफ़रोश है, पटवारी है, स्कूल के मुर्दारिस है । कहना न होगा कि उन्होंने भी जमाने के साथ तरक्की की है, क्योंकि एक वक्त था कि उनमें यहाँ-वहाँ बस एक-दो डाकमुंशी और ज्यादातर डाकिये थे ।
मंगर वह पुरानी बात है। सुनते है कि अब से कोई दो सौ बरस पहले एक कोई लाला टीकाराम थे। वह क्या थे, कहाँ थे, कहाँ जिये, कहाँ मरे – यह सब कुछ भी ठीक नहीं मालूम । लेकिन संभव है कि वह लमही के पास ऐरे नामक गाँव के रहे हों क्योंकि इतना मालूम है
लेखक | प्रेमचंद-Premchand |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 664 |
Pdf साइज़ | 44.9 MB |
Category | उपन्यास(Novel) |
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सतीश चोपड़ा
08.10.2022
Literature