निर्गुण भक्ति साधना – Nirgun Bhakti Sadhana Book/Pustak Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
उनके प्रति कृतक्षता भादि भानों को अभिव्यक्त किया है। धीरे-धीरे बहुदेववाद से एकदेववाद विकसित हुआ और भगवान् की शक्ति के रूप में अनेक देवी देवताओं की उपासना की जाने लगी।
पहलेपहल बह प्रकृति के किसी एक रूप पर देवत्व का भारोप करता था परन्तु उसके बाद उन्ही देवतामों में से किसी एक को परमदेव मानकर वह उसी की भक्ति करने लगा । कुछ देर तक भक्ति की साषना के क्षेत्र में यही क्रम चलता रहा।
ऋग्वेदकालीन समाज किसी एक देवता की स्तुति करता था और उसे ही सब से बड़ा देवता मान लेता था बाकी के देवता उसी परमदेव की विभिन्न विभूतियों के रूप में पूजा और प्रार्थना के विषय स्वीकार कर समय-समय पर ‘परमदेव भी मान लिए जाते रहे हैं।
‘परमदेवता’ की यह पदवी किसी एक देवता से हटाकर दूसरे देवता को भी दे दी जाती थी। इस प्रकार जो जिसे परमदेव मान लेता था वह उसी को सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान् तथा प्रानन्दस्वरूप बतलाता और तदनुकूल ही उसकी स्तुति के गीत गाने लगता ।
संक्षेप में यही उस युग की भक्ति भावना है।’वैदिककाल में वज्ञयागादि के रूप में कर्मकाण्ड ने सर्वाधिक प्रधानता प्राप्त कर ली। अतः उस युग की परिस्थितियों में भक्ति की साधना का व्यवस्थित रूप निर्मित न हो सका।
अवतारवाद के सिद्धान्त पर आधारित भागवतभक्ति के शास्त्रीय चे बन की ओर ध्यान न देते हुए यदि भक्ति-भावना को ही सम्मुख रखा जाए तो ऐसा लगता है कि भागवत-भक्ति में वर्णित सम्पूर्ण प्रासक्तियों के रूप बैदिकऋवां में मिल जाते हैं।
परवर्ती भक्ति सिद्धान्त की शास्त्रीय चर्चा का जैसा रूप इन प्रार्थनाओ्ओों का नहीं है। भागवतभक्ति में प्रभु के जिन गुणों तथा शक्ति की चर्चा की जाती है उसे दृष्टि में रखते हुए कहा जा
लेखक | हरवंशलाल शर्मा-Harvanshlal Sharma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 152 |
Pdf साइज़ | 9 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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