कौटिल्य का अर्थशास्त्र | Kautilya Arthashastra PDF

कौटिल्य अर्थशास्त्र हिंदी अनुवाद सहित – Kautilya Arthashastra Book/Pustak PDF Free Download

Kautilya Economy In Hindi

कौटिल्य का अर्थशास्त्र याज्ञवल्क्य स्मृति से प्राचीन है कौटिल्य ने ऐसी बहुत सी बातें दी हैं जोकि पौराणिक काल के हिन्दुओं के विचारों के प्रतिकूल हैं।

कौटिल्य के समय के-अत्या चारपूर्ण राज्यकर, अन्तःपुर के दोष, अमीरों को मरवाकर धन लूटना, मनुष्यों की गणना, धार्मिककर, सांयात्रिककर, मन्दिरों की संपत्ति को लूटना, पशुओं को मारना, बेईमानी से भरी संधियां, कूटयुद्ध, खतरनाक धूओं का प्रयोग, चुप्पे चुप्पे लोगों को जहर देना-श्रादि कार्य बौद्धा के समय में पसन्द नहीं किये गए।

यही कारण है कि याज्ञवल्क्य स्मृति में इन बातों का उल्लेख नहीं मिलता। इसी प्रकार विवाह संबंध का भंग होना, स्त्रियों का किसी दूसरे पुरुष से पूर्वपति के रहते हुए भी विवाह कर लेना, शूद्रा लड़कियों के साथ ब्राह्मणों का विवाह करना, मांस खाना, शराब पीना तथा युद्ध करना भी ईस्वीसदी के प्रारम्भ में भारत के अन्दर प्रचलित नहीं रहा।

जादूगरी टोना टुटका आदि भी किसी अंश तक कम होगया ।

कौटलीय अर्थशास्त्र, संस्कृत साहित्य में अपने का उच्चकोटिका ग्रन्थ है। सबसे प्रथम इस ग्रन्थको सन् १९०९ १० में, मैसूर राज्यकी अन्यशाला के अध्यक्ष श्रीयुत शामशास्त्रीने प्रका शित कराया।

तथा अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगों के सभी के लिये उन्होंने इस प्रन्यका इंग्लिश मापामै अनुवाद भी करदिया। उसी • समय से इस दुरुह प्रत्यको समझने के लिये विद्वजन पर्याप्त पार थम फररहे है ।

शामशाखीने पहिले पहिल इस ग्रन्थका इंग्लिश अनुवाद किया; इसलिये उनका प्रयत्न प्रशंसनीय है, परन्तु यह कहे बिना नहीं रहा जा सकता कि उस अनुवाद में अनेक स्थलॉपर स्थलन है।

जिनका यहां उपकरना अनावश्यक देन। इस फार्यके मनन्तर इस विषयपर अनेक साप्ताहिक मासिक पत्र पत्रिकाम लम्बे नीढ़े विचारपूर्ण लेय समय २ पर प्रकाशित होते रहे, परन्तु पुस्तकके रूपमें कोई महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित नहीं हुआ।

अयसे पांच वरस पहिले में यह विचार कर रहा था, कि इस ग्रन्थका अनुवाद फरुं, जिससे सर्वसाधारणके सम्मुख यह चिपय उपस्थित किया जासके, तथा इसपर और भी अच्छा विचार होसके।

कुछ ही समयके मनन्तर मने सुना कि प्राणनाथ विद्यालङ्कार इस ग्रन्थका अनुवाद कररहे हैं, मैं चुप होगया। और सन् १९२३ १० में यह अनुवाद प्रकाशित होगया।

उस अनुवाद के देखनेपर में इसका अच्छी तरह निर्णय फरसका, कि मुझे भी अपने विचार कार्यरूपमें परिणत फरदेने चाहिये ।यद्यपि प्राणनाथ विद्यालङ्कारने अपने निवेदनमें एस वड़े जोरॉपर लिया है,

कि ‘डाटर शामशास्त्रीके बांग्लभाषाके, भाषान्तरको समुरा रखकर यह अनुवाद नहीं रियागया । परन्तु दोनों का मुकाबला करनेपर हमसे यह दाया. कुछ गलत साबित हुआ है ।

यद्यपि विद्यालङ्कारजीने कहीं २ अपने अनुवाद की टिप्प णियोंमें शामशाखीके अनुवादको अशुद्ध फरनेका यज्ञ किया है. परन्तु वहांपर मूलके अर्थको न समझकर आप स्वयं ही सुंदरी खा गये हैं।

इसके अतिरिक्त स्वयं अनुवाद करते हुए आपने पद् पदपर सवलन किया है। यदि आपके सम्पूर्ण अनुवादको सामने रखकर कहाजाय, तो पलात्कार मुंहसे ये शब्द निकल पड़ते हैं, कि यह अनुवार अपूर्ण तथा मूलके विपरीत और विलित मावोंसे भरा हुआ है।

अर्थशास्त्र का सारांश(Summary)

सारांश यह है कि यह ग्रंथ चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रसिद्ध मंत्री बाणक्य का लिखा हुआ है। उसी का नाम विष्णु गुप्त तथा कौटिल्य है।

इस ग्रंथ का महत्व इसीसे जाना जासकता है कि ” भारत के प्राचीन इतिहास” की बहुत सी उलझने इससे सुलझगयी ।

संस्कृत साहित्य में यह एक ही ग्रंथ हैं जो कि प्राचीन भारत की- आर्थिक राजनैतिक तथा सामाजिक सभ्यता को विस्तृत रूपसे प्रगट करता है विद्वान् लोगों का ज्यों २ ध्यान इस ओर दिन पर दिन बढ़ता जाता है त्यों २ इसका महत्व दिन परदिन बढ़ता जाता है।

भारतमै समय आने वाला है जब कि कोई भी राष्ट्रीय या सरकरित संस्था ऐसी न होगी जिसमें यह ग्रंथ पाठ्य पुस्तक न हो शरीर के लिये जैसे भोजन आवश्यक है वैसेही प्राचीन श्राय्य के रहन सहन को समझने के लिये यह ग्रंथ आवश्यक है लेखक ने ग्रंथ का शब्दा नुवाद भी इसी लिये किया है कि इसका एैतिहासिक महत्व ज्यों त्यों बनारहे ।

यदि यह कठिन हैं तो हिन्दी पाठक भी इसकी कठि नाइयों से पूर्ण रूप से परिचित रहे। आशा है कि पाठक गण लेखक के यत्न से लाभ उठाने का प्रयत्न करेंगे।

अर्थशास्त्र का प्रणेता

कामन्दकीय नीतिसार के पूर्वोक्त प्रमाणों से सुनिश्चित है कि अर्थशास्त्र का निर्माण आचार्य कौटिल्य ने किया।

कुछ दिन पूर्व विदेशी विद्वानों के एक वर्ग ने यहाँ तक सिद्ध करने की चेष्टा की थी कि अर्थशास्त्र एक जाली ग्रन्थ है और जिसके नाम को उसके साथ जोड़ा गया है, वह कौटिल्य भी एक कल्पित नाम है ।

विदेशी विद्वानों की इन भ्रांत धारणाओं को व्यर्थ सिद्ध करने वाली नयी खोजों का सविस्तार उल्लेख आगे किया जायेगा। यहां तो इतना ही बता देना यथेष्ट है कि अर्थशास्त्र का प्रणेता विष्णुगुप्त कौटिल्य ही था ।

अर्थशास्त्र में समाप्ति-सूचक एक श्लोक आता है, जिसका निष्कर्ष है कि इस ग्रन्थ की रचना उसने की, जिसने की शस्त्र, शास्त्र और नन्द राजा द्वारा शासित पृथ्वी का एक साथ उद्धार किया

येन शास्त्रं च शस्त्रं च नन्दराजगता च भूः । अमर्षेणोद्धृतान्याशु तेन शास्त्रमिदं कृतम् ||

-अर्थशास्त्र, पृ० ७७१

( १ ) पृथिवी की प्राप्ति और उसकी रक्षा के लिए पुरातन आचार्यों ने जितने भी अर्थशास्त्र – विषयक ग्रन्थों का निर्माण किया उन सबका सार-संकलन कर प्रस्तुत अर्थशास्त्र की रचना की गई है ।

( २ ) इस अर्थशास्त्र के प्रकरणों और अधिकरणों का निरूपण इस प्रकार है :

पहला अधिकरण : विनयाधिकारिक – ( राजवृत्ति ) निरूपण

( १ ) १. विद्या-विषयक विचार; २. वृद्धजनों की संगति; ३. इन्द्रियजय; ४. अमात्यों की नियुक्ति; ५. मन्त्री और पुरोहित की नियुक्ति; ६. गुप्त उपायों से अमात्यों के आचरणों की परीक्षा; ७. गुप्तचरों का निरूपण; ८. गुप्तचरों की कार्यों पर नियुक्ति; ६. अपने देश में कृत्य-अकृत्य पक्ष की सुरक्षा; १०. शत्रुदेश में कृत्य अकृत्य पक्ष को मिलाना; ११. मंत्राधिकार; १२. दूतों की कार्यों पर नियुक्ति; १३. राजपुत्र की रक्षा; १४. नजरबन्द राजकुमार का व्यवहार; १५. नजरबन्द ( राज कुमार ) के प्रति राजा का व्यवहार; १६. राजा के कार्य-व्यापार; १७. राजभवन का निर्माण; १८. आत्मरक्षा का प्रबन्ध ।

लेखक कौटिल्य ‘चाणक्य’ – Kautilya ‘Chankaya’
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 906
PDF साइज़ 31 MB
Category अर्थशास्त्र(Economy)

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