कर्मकांड भास्कर – Karmkand Bhaskar Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
कर्मकाण्ड प्रारम्भ करने के पूर्व वातावरण शान्त करके सबका ध्यान उसी ओर खींच लेना चाहिए। कर्मकाण्ड के कृत्य भले ही गिने-चुने व्यक्ति करते हो; परन्तु सभी उपस्थित व्यक्तियों के विचारों और भावनाओं के एकीकरण संयोग से ही उसमें शक्ति आती है। यह मर्म संक्षिप्त, किन्तु सारगर्भित इनसे समझाकर कार्यारम्भ किया जाना चाहिए
• कर्मकाण्ड की शक्ति, मंत्र प्रयोग की सजीवता, विचारों की दिशा, श्रद्धा भावना के उभार तथा क्रियाओं के सुसंयोग से उभरती है। इसलिए मंत्रोच्चार भर करते रहना पर्याप्त न समझा जाए ।
कार्य को सही ढङ्ग से करने के निर्देश, संकेत विचारपरक व्याख्या, भावपरक टिप्पणियों आदि का सन्तुलित प्रयोग करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए ।
मन्त्रोच्चार प्राणवान् तब बनते हैं, जब उच्चारण के साथ मनोयोग भी जुड़े, इसके लिए मंत्र कंठस्थ न भी हों, तो कम से कम इतने रवाँ होने चाहिए कि उन्हें सही-सही पढ़ने में ही सारा ध्यान न चला जाए इतना होने पर ही स्तर में भावनाओं का पुट दिया जाना सम्भव होता है ।
विचारपरक व्याख्याओं तथा भावनापरक टिप्पणियों का सन्तुलन ठीक प्रकार बिठाना चाहिए विचारपरक व्याख्या न तो इतनी अधिक हो कि कर्मकाण्ड नैतिक शिक्षा की कक्षा लगने लगे और न इतनी कम रहे कि प्रेरणाओं का प्रवाह ही न उमड़े ॥
कर्मकाण्ड करने वाले व्यक्तियों के ज्ञान और अभ्यास का ध्यान रखकर क्रिया निर्देश बोलने चाहिए । न तो वे इतने कम हों कि न समझ पाने से लोग गलत करें और न इतने अनावश्यक हों कि लोग ऊब उठे।
यदि दो- एक व्यक्ति न समझ पाएँ, तो उनके पास समझदार स्वयंसेवक नियुक्त कर देना चाहिए, जो उनसे कृत्य ठीक से कराते रहे । इससे न तो प्रवाह टूटेगा और न भूले होंग
लेखक | श्री राम शर्मा-Sri Ram Sharma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 390 |
Pdf साइज़ | 16.7 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
कर्मकांड भास्कर – Karmakand Bhaskar Book/Pustak Pdf Free Download
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