कल्याण भक्ति अंक – Kalyan Bhakti Ank Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
भावित चिलका नाम उन्हीं-उन्हीं श्च्दोंद्ारा कहा नता-है। जैसे देषकी सामग्री उपस्थित होने चिक्की तदाकारत वृत्तिका माम द्वेष होगा उसी प्रकार भगवान के दिव्य – विग्रहके दर्शनसे, उनकी लोकातीत स्त्रीलामोंके श्रवण तथा परम-प्रेमास्पद
भक्त-जनाहादिनी उनकी कथा ओके कथोपकथनसे द्रवीकृत चिवचिका नाम भक्ति’ है । पुनः- पुनः भगवद्दर्शनः अवण और बननले द्रुत चितचब्ृत्धि ही भक्तिका आविर्भाव है ।
पुण्यसे भक्तिका आविर्भाव यह नुव सत्य है कि कोई भी प्राणी अपनी हानि और तिरस्कृति नहीं चाहता।
सभी उत्कर्षकी ओर अनवरत प्रयत्न करते देखे गये हैं इसपर भी कभी-कभी अपकर्षका सामना करना पड़ता है।
इसका सीधा तात्पर्य यह है कि पुण्यवान् न्यतिथे पुण्योझा प्रभाष उसे उस्कर्षकौ ओर ते जाता है । भगवत् प्रसादसे पहले पुष्पार्नमे प्रवृचि होती १।
फत्वात् भक्त-वर्सल भगवान् स्वयं दया भाषसे भरपर अनुमद करते हैं। अथव यगुचिनीपति ले साथु फर्म कारवरसि धमथोनिर्नीषति समसा फर्म कास्यति ।
(उपनिषद) —भगवान् जिराफो उन्नति के मार्गपर ऐ जाना चाहते हैं, उसे उभम दारीय कर्मोमे मेरित करते हैं तथा जिसकी अधोगति करना चाहते हैं,
उसे निन्वित अशास्त्रीय कोकी ओर प्रेरित करते हैं । इसलिये सन्माकी मोर जाने के लिये पहले भगवान कृपा की आवश्यकता है और वह कृपा सत्कर्मानुष्ठान कर पुण्यद्वारा होमात हो सकती है। रहे थे, वैदिक लिद्धान्त हनकी भनषोर भयमॉर्मे आध्छछदित दो रहा
या. ठीक उसी समय श्रीशंकराचार्यनीका प्रादुर्भाव हुआ। आप भगयान् शंकरके अवतार थे।
एकमात्र वैदिक चर्मका प्रतिष्ठापन करना आपके अवतारका प्रयोजन था ।
वैसा ही हुआ भी सात वर्षकी आयुर्में आपने घरका परित्याग फरके पौधों तकोंको खोखलाकर धराशायी कर दिया और सनातन वैदिक धर्मके प्रतिष्ठापनके साथ साथ भक्ति-मान वैराग्यका विजयस्तम्भ प्रष्वीपर स्थापित कर दिया ।
भगवान् शंकराचार्य ने अपनी अद्भुत प्रतिभाद्वारा भारतीय दर्शनशास्त्र के चरम सिबान्त वेदान्तके अबैतवादका विनप- सम्म आरोपण किया तया ‘तत्वमसि’ |
लेखक | Gita Press |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 772 |
Pdf साइज़ | 51 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
कल्याण भक्ति अंक -kalyan gita press pdf Free Download