कफन प्रेमचंद की कहानी | Kafan Premchand Story PDF In Hindi

कफन प्रेमचंद की कहानी – Kafan Premchand Book PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

कभी मुंह नहीं देखा, आज समय का हुआ अदन देखी उसे तन की सूप भी तो न होगी। मुझे देख सेगी सो खुलकर हाथ-पांच सीन पटक करेगी।

“मैं सोचता हूँ कोई बाल-बाप्पा हो गया तो क्या होगा? सोठ, मु तौल, कुछ भी नहीं पर मैं सब-कुछ आ जाएगा। भगवान दै लो।

जो लोग अभी एक पैसा नहीं दे रहे है, में ही कल मुणकर देगे। मेरे गौ मकर हुए, पर में कभी कुछ न था, मगर भगवान ने किसी तरह बेझा पार हो ।

जिस समाज मे रात-दिन मेहनत करने वाली की हालत उसकी हालत में बहुत कुछ अच्छी नहीं न थी और कियनी के मुकाबले में वे लोग,

जो किसानों को देवताओं से लाभ उठाना जानते थे, कहीं ज्यादा सम्पन्न थे, वहाँ इस तरह मनोवृत्ति का पैदा हो जाना कोई अचरज की बात न थी।

हम तो कहेगे सू किसान से कहीं ज्यादा विचारवान था, जो किसानों के विचार शून्य समूह में शामिल होने के बदले बैठकबाजों की कुत्सित माती में जा मिला था ही, उसमें यह सवित न थी कि बैठक बाजी के नियम और नीति का पालन करता।

इसनिए जीँ उसकी मंडली के और गाँव के सरगना और मुखिया बने हुए थे, उस पर सारा गांधी अंगुली उठाता था।

फिर भी उसे यह तकमीन तो थी कि अगर वह टेडाल है तो कम-से-कम उसे किसानों की-सी जी-तोड़ मेहनत तो नहीं करनी पड़ती।

सरसता और निरहता से दूसरे लोग बेजा फायदा तो नहीं खाते। दोनो आलू निकाल-निकालकर जलते-जलते खेल में कल से कुछ नहीं खाया। इतना सह़ न था कि इन ठंडा हो जाने दै। कई बार दोनों की जवानी जल गई।

छिल जाने पर आलू का बाहरी हिस्सा तो बहुत ज्यादा गरम न मालूम होता, अविन दांतों के लने पता ही अन्दर का हिस्सा जमाना, हलक और तालू को जला देता था और उस अंगारे को मुँह में रखने से ज्यादा खैरियत इसी में थी कि वह अन्दर पहुंच जाए।

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लेखक प्रेमचंद-Premchand
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 6
Pdf साइज़1 MB
Categoryकहानियाँ(Story)

कफन प्रेमचंद की कहानी – Kafan Premchand Book/Pustak Pdf Free Download

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