श्री कबीर साहिब – Shri Kabir Sahib Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
जोकोई आय जान यज्ञशाला। सव कह पोषण कीन्ह भुवाखा ॥ पहुँचे अवधि सुदिन दिन आये। राजा नगर मई ढोल बजाये ॥ साखी-जाके बल बडु हों ये, चुप उठाये सोय ॥ सीता व्याहों ताहिको, मिथ्या वचन न होय ॥ चोपाई।
शानसागर।चल मई सीता जद फुलवाई । देवी पूजन मातु पठाई ॥ आवत राम मार्ग जब देखा । सुफल जन्म आपुन तब लेखा।। अहो अंबिका आदि भवानी सुनिये मातृ हुम अन्तर्जामी ॥
मोर मनोरथ पुरखो माता । सो बर देव जो मन में राता ॥ विधि विन्ती सीताकी जानी। ततक्षण भई अकाश तें वाणी ॥
अहो सीता लक्ष्मी अवतारा । निश्चय तोर राम भरतारा ॥ सुनत संदेशा भयो अनंदा । जिमि चकोर पाये निशि चंदा ॥ देवी पूजि गई निज सीता । मनमें हर्ष बहुत पुनि कीता ॥
आई सिय जहें सृष्टि भुवारा। उठै न धनुष सबै बलहारा ॥ रावन वालि महा बलधारी । उठे न धनुष सबै बलहारी ॥
जब तृप जनक भाई विसमादा । उठे न धनुपजन्म मम बादा ॥ तव रघुवर मुनि को शिर नाबा । सभी माझी तब धनुप उठावा ॥ खींचो राम धनुष चढ़ो जवही । महा अघोर शब्द भयो तबही ॥
साखी-मुनि गण त्याग्योध्यान तब, महि मंडल भुई चाल॥ हरच्यो राजा जनक तथ, सियादीन्ह जयमाल ॥ चोपाई।
टूबो धनुप धूम भइ भारी । परसराम तब लाग गुहारी ॥ आवत तासु जो नृपति सकानें । बहुत नाम जो सुनत प्रमाण ॥ सभा मंझ आये परसरामा सब मिलि दंडक्त कीन्ह प्रणामा भृगुकुल कह सुन मिथिला राजाटोरचो धनु किन मोदि बताऊ।।
एपति करें धनुपमै मापा। तुम किसी काम करत है दपार देखि राम भूगुक किय रोपा। गारीं शीख जो करो भरोसा ॥ विहसे राम लखन दोइ भाई । हे जिज या न फरी घुरमाई ॥
जान মুझিि जिन होडु अथाना । मिट तितिर उगै जब भांगा ॥ बिज कुल देख किया परमाना । तातें तुमको भयो अभिमाना।
लेखक | स्वामी युगलानंद-Swami Yuglanand |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 112 |
Pdf साइज़ | 5.8 MB |
Category | काव्य(Poetry) |
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