मुस्लिम हदीस – Hisnul Muslim Book/Pustak PDF Free Download

मस्नुन अज्कार और दुआएं
इन्सान कभी कभी ऐसे हालात में घिर जाता है कि सारे सहारे टूट जाते हैं उम्मीद की कोई किरन दिखाई नहीं देती सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं।
रिश्तेदारों और दोस्तों पर से भी भरोसा उठ जाता है यहाँ तक कि भाई भाई से, शौहर बीवी से और औलाद माँ बाप से खुल कर बात नहीं कर सकते मतलब यह कि सब कुछ होते हुए भी इन्सान अकेला, बेबस और मजबूर हो जाता है।
तब उस के अन्दर से एक आवाज़ उठती है कि एक सहारा अब भी मौजूद है, एक दरवाज़ा अब भी खुला है जहाँ इन्सान अपने दुख सुख और अपनी तकलीफ़ों की दास्तान हर क़ीमती और सब से अच्छा हदिया देते थे।
एक मुसलमान का दूसरे मुसलमान के लिए सब से अच्छा हदिया अगर कोई है तो वह दुआ ही है।
यह अक़ीदा रखना भी ग़लत है कि अल्लाह किसी बुजुर्ग की दुआ को रद्द नहीं करता अल्लाह तआला ने नूह की अपने बेटे के लिए दुआ को रद्द कर दिया (हूद: 46)
और ख़ूद रसूलुल्लाह की तीन दुआओं में से एक को कुबूल नहीं किया (मुस्लिम) और अब्दुल्लाह बिन उबई की बख़्शिश की दुआ को भी कुबूल नहीं किबा तौबा 80 ) ।
मुहतरम भाइयो और बहनो! ज़िक्र, अज़्कार और दुआओं की बहुत सारी किताबें मौजूद हैं लेकिन बहुत सी किताबों में मनगढ़त और ज़ईफ़ दुआएँ भी होती हैं,
मुसलमान की ज़िन्दगी में दुआओं की जितनी अहमियत है उतनी ही ज़रुरी यह बात भी है कि दुआएँ और अज़्कार वही पढ़े जाएं जो सुन्नत से साबित हों।
अज़्मत वाले अल्लाह, उस के करीम चेहरे और उसकी पुरानी सल्तनत की हिफ़ाज़त में आता हूँ शैतान मर्दूद से, अल्लाह के नाम के साथ (दाखिल होता हूँ) और दरुद और सलाम हो रसूल पर। ऐ अल्लाह! मेरे लिए अपनी रहमत के दरवाजे खोलदे।
लेखक | सईद बिन अली अल कहतानी-Said bin ali al kahtani |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 218 |
Pdf साइज़ | 29.2 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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