ज्योतिष श्याम संग्रह – Jyotish Shyam Sangrah Book Pdf Free Download
आज्यं मधु सलवर्ण दां दृश्या मुखी भवेत् । दुग्यकर्षर पुष्पेश ताम्रपा प्रपूरयेत् ॥५०॥
तस्य दोषस्य शंत्यर्षे कुर्यात्रात विचारणा । न करोति यदा दान में वे भवति ध्रुवम् ॥ ५१ ॥
राहु,सूर्य, चन्द्रमा, मङ्गन्छ, शनैचर इन यहाँका पञ्च वीजाक्षरों करके जप रवाये पीछेसे निःसंशय जप करनेवाले बामणको दान करे ॥2८॥
मोती मूंगाके दानकरने से सम्पूर्ण दोषोंका नाम होता है। तीस मासे सोना पुष्पराज मणि कर सहित ॥ ४९ ॥
सहित नोनका दान देने से सुसी होता है। दूध कपूर पुष्पकरके ताबका वर्तन भरे ॥ ५०॥
तिस दोषकी शांतिके अर्थ दे कुछ विचार नहीं करना चाहिये । अगर दान नहीं करे तो निर्भय करके बैर होता है ॥ ५१ ॥
अथ त्रिषुधातीयोगः।रविराह कुजः शौरिलने वा पंचमे स्थितः । आत्माने हेति पितरं मातरं च न संशयः ॥ ५२ ॥
योगोऽयं त्रिषुषातारो जन्मकाले भवेन्नृणाम् । पितृदोष कृतः पूर्व पुत्रहीनों नरो भवेत् ॥५३॥
सूर्य, राहु, मङ्गल, शनैश्चर ये जिस मनुष्यके लग्रमें अथवा पञ्चम चरी हो तो वह पुरुष अपना और मातापिताका नाश करता है ॥५२॥
यह विषुपातीयोग मनुष्योंक जन्मकालमें हो तो उस मनुष्यने वूर्य जन्में पितरोंका दोष किया है इससे सन्तान हीन नी होता है ॥ ५३ ॥
अथ अन्यप्रकारः।मूर्यतेत्रे गतःशौरिभीमक्षेत्रे यदा अगुः। राहुक्षेत्रे दिवानाथो मदकेतरे धरामुतः ॥ ५१ ॥
मुते लग्ननतुर्थस्थी पंचमे संस्थि- तेऽपि वा । शनिराडू धरासूनुः पुत्रनाशं करोति ॥ २९ ॥
अस्मिन् योगे नगे जातः त्रिपुषाती भवेद धुवम् । राजपुत्रो ऽथवा मंत्री पापकमान्वितः सदा ॥ ५,६ ॥
पश्मपसुवगेर्य रोय परिचतुर्गुणम् । शक्टो पसंयुक्तो दयाहोपरा इस योग उत्पन्न हुए मनुष्यका ललाट अच्छा होता है और उत्तम पराकम होता है। बाहण देवताओंके पूजनमें प्रीवि होती है, कातिमान् बडा पशस्तरी तथा नेमी होता है ॥ ६० ॥
उसके परमें दव्य नहीं ठहरता है, हमेशा किकरसे व्याकुल रहता है, साधुओंकी सेवा वरनेवाडा विन्यान मनुष्योंग राजा होता है ॥ ६१
लेखक | खेमराज श्रीकृष्णदास-Khemraj Shrikrishnadas |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 404 |
Pdf साइज़ | 30.5 MB |
Category | ज्योतिष(Astrology) |
ज्योतिष श्याम संग्रह – Jyotish Shyam Sangrah Book/Pustak Pdf Free Download