योग मंत्र – Yoga Mantra Book PDF Free Download
मंत्र सिद्धिके १६ अंको
भावना की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए भगवान ने कहा है “जो मुझे जिस प्रकार से मजते हैं, उन्हें में उसी प्रकार से फल देता हूँ । हे पार्थ ! किसी भी जोर से हो, मनुष्य मेरे ही मार्ग में अT मिलल हैं’ (७१) ।
देवताओं का व्रत करने वाले देवताओं के पास पितरों का व्रत रखने वाले पितरों के पास मित्र-मित्र भूतों के भजने वाले उन भूतों के पास जाते हैं और मेरा मजन करने वाले मेरे पास आते हैं।” (९।२४) ।
श्री मदभागवत भक्ति का अपूर्व अन्य है। उसमें भक्ति की महत्ता और उससे होने वाले परिणामों के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहा गया है । यथा “मैं भक्तों के आधीन हूँ, स्वतन्त्र नहीं है। मेरे हृदय पर साबु भक्तों का राज्य है।
भकों के बिना मुझे आत्मा और परम श्री भी अपदी नहीं लगती। मैं साधुओं की ही परमगति हूं।
जिस मक्तों ने स्त्री, पुत्र परिवार, धन, ऐश्वर्य और परलो प्राप्ति की कामना को भी स्खाग दिया और मेरा माधप लिग है, उन्हें में कैसे छोड़ सकता है ?
पतिव्रता स्त्री गैसे अपने निःस्वार्थ प्रेम से अपने पति को वश में करती है, वैसे ही मेरा भक्त मुझे बाप लेता है साधु मेरा हृदय और मैं साधुओं का हृदय है। वे मेरे अतिरिक्त और किसी को नहीं पचानते और मैं भी उनके अतिरिक्त और किसी को नहीं पहिचानता।”
एक अन्य स्थान पर मक्ति से उत्तम गति की पर्वा करते हुए कहा गया है “भगवान की परम भक्ति से मोहादि अविद्या की ग्रग्थियो टूटने लगती है, मसार चक शियिल होने लगता है, ब्रह्मपद की प्रालि होती है जिसका परिणाम परम सुख होता है ।
लेखक | चमन लाल गौतम- Chaman Lal Gautam |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 397 |
Pdf साइज़ | 91.6 MB |
Category | ज्योतिष(Astrology) |
मंत्र योग – Mantra Yoga Book/Pustak Pdf Free Download