जैन तत्त्व सारांश – Jain Tatva Saransh Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
जैसे कोई घनवान मनुप्य भावितन्यता से प्रेरिख होकर स्वादिष्ट मिठाई और ख को जानता हुआ मी सक खावा हैं। कोई ईसापुर स्वान को पचाने के रास्ते शुमा शुभ स्थान का उल्लंघन करता है।
चोर, परिगामी, व्यापारी, मतवारी और ब्राह्मण जानते हुए भी शुभ अशुभ कार्य को करते हैं। भिक्षुक, बंदिजन ( भाट इत्यादि) और तर्य्ञानी, योगी, दीक्षा को स्निग्ध (घृता स्नेह से युक्त) अथवा रस युक्त जान कर के जैसी मिली वैसी आरोगते हैं ।
युद्ध में घिरा हुआ शूर जानता हुआ भी शत्रु, मित्र की हत्या करता है और रोगी कुपथ्य को जानता हुआ मी भवितव्यता से उस का सेवन करता है।
प्र-जीव, ज्ञान के विना कमों को क्या ग्रहण कर सकता है उ-विना ज्ञान लोहचुम्बक जैसे लोह को खींचता है वैसे फलोदी से प्रेरित जीव भी विना जान समीपस्थ शुभा शुभ कर्मों को खिंचता है।
बाल्मा ही शुभाशुभ कर्मों को करता है । येणे अंग] नहीं फरते। और भी व्यामी महात्मा चाधागत इन्द्रियों की मदद के बिना इच्छित कार्य करता है और यह,
पुण्य का तथा श्रीपाद के विना मी केवल सद्भाव से पूजा सफत करते है वैसे विना निहा जप करते हैं। बिना कार्य और सुन भी लेते है।
इसी वरह वह जीव भी इन्द्रियाँ और स्वाद के बिना काल, समवाय आदि से प्रेरित होकर कर्मों को ग्रहण करता है।
प्र-जीव के प्रत्येक प्रदेश में अनन्त कर्म लगे हुए हैं तब बे पिन्डीभूत होकर क्यों नहीं दिखते? उ-सूक्ष्मतम कर्म चर्म चक्षुओं से नहीं देखा जाता, मात्र कहानी- जन ही उन को अपनी दिव्यज्ञान दृष्टि से देख सकते ।
उदाहरण:-किसी पात्र या वस्त्रादि में लगे हुए सुगंध युक्त या दुर्गंधयुक्त पुद्गलों को नासिका द्वारा जान सक्ने है परन्तु पिण्डीभूत होनेपर भी नयनादिक से देख नहीं सक्ते, मात्र केवलज्ञानी ही उन को यथार्थ रूप से देख सक्ते है।
लेखक | जैनाचार्य श्री – Jainacharya shri |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 190 |
Pdf साइज़ | 4 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
तत्त्व सारांश – Jain Tatva Saransh Book/Pustak Pdf Free Download