Short Stories On Humanity Hindi PDF Free Download
विद्यार्थी और बच्चों के लिए प्रेरक कहानी
मानवताका पुजारी नामक इस पुस्तकमें बहुत ही मङ्गलमयी प्रेरणादायक सत्य घटनाओंका संग्रह है। इसमें ऐसी भी घटनाका वर्णन है, जिनसे पतनके पथसे हटकर उत्थानके सत्य पथपर आरूढ़ तथा अग्रसर होनेमें बड़ी सहायता मिलती है। अपना उत्थान चाहनेवाले सभी लोगोंको इससे लाभ उठाना चाहिये।
मनुष्यमें देवता
रायचन्दभाईका बम्बईमें जवाहरातका बड़ा व्यापार था। उन्होंने एक दूसरे व्यापारीसे सौदा किया। सौदेमें यह निश्चय हुआ कि अमुक तिथिके अंदर अमुक भावमें वह व्यापारी रायचन्दभाईको इतने जवाहरात दे दे। सौदेके अनुसार लिखा-पढ़ी हो गयी। कंट्राक्टके दस्तावेजपर हस्ताक्षर हो गये।
परिस्थितिने पलटा खाया। इसी बीच जवाहरातकी कीमत इतनी अधिक बढ़ गयी कि वह व्यापारी यदि रायचन्दभाईको कंट्राक्टके भावसे जवाहरात दे तो उसको इतनी अधिक हानि हो कि उसे अपना घर-द्वारतक बेचना पड़े।
रायचन्दभाईको जब उस जवाहरातके वर्तमान भावका समाचार मिला, तब वे तुरंत ही उक्त व्यापारीकी दूकानपर पहुँचे। रायचन्दभाईको देखते ही वह व्यापारी घबरा गया और बड़ी ही नम्रता से कहने लगा- ‘रायचन्दभाई! मैं अपने उस सौदेके लिये बहुत ही चिन्तातुर हूँ। जैसे भी हो, वर्तमान बाजारभावके अनुसार मैं जवाहरातके नुकसानके रुपये आपको चुका दूँ। आप चिन्ता न करें।’
रायचन्द्रभाईने कहा- ‘क्यों भाई! मैं चिन्ता कैसे न करूँ। जब आपको चिन्ता होने लगी है, तब मुझको भी होनी ही चाहिये। हम दोनोंकी चिन्ताका कारण तो यह कंट्राक्टका दस्तावेज ही है न? यदि इस
दस्तावेजको नष्ट कर दिया जाय तो दोनोंकी चिन्ताकी पूर्णाहुति हो जाय।’ व्यापारीने कहा- – “ऐसा नहीं, मुझे आप दो दिनकी मुहलत दीजिये। मैं कैसे भी व्यवस्था करके आपके पैसे चुका दूंगा।’
रायचन्द्रभाईने दस्तावेजको फाड़कर टुकड़े-टुकड़े करते हुए कहा- ‘इस दस्तावेजसे ही आपके हाथ-पैर बंध रहे थे। बाजार भाव बढ़ जानेसे मेरे साठ-सत्तर हजार रुपये आपकी ओर निकलते हैं। परंतु मैं आपकी वर्तमान परिस्थिति जानता हूँ। मैं ये रुपये आपसे
लूँ तो आपकी क्या दशा हो? रायचन्द दूध पी सकता है; खून नहीं।’ वह व्यापारी रायचन्दभाईके चरणोंमें पड़ गया और उसके मुखसे
निकल पड़ा—’आप मनुष्य नहीं देवता हैं।’
छल-कपट, ठगी, झूठ और धोखेबाजीसे किसी भी प्रकार दूसरे मनुष्यकी बुरी परिस्थितिका लाभ उठानेके लिये आतुर आजका समाज इस महापुरुषके जीवन-प्रसङ्गसे प्रेरणा प्राप्त करे ।
– मधुकान्त भट्ट
कर्त्तव्य पालन
संध्याका समय था। रेलगाड़ी पूनासे बम्बई जा रही थी। गाड़ी में अधिक भीड़ नहीं थी। लोग आरामसे यात्रा कर रहे थे। पहला दर्जा तो बिलकुल खाली था, सिर्फ एक कालेजकी युक्ती थी।
कालेजकी छुट्टियों में वह बम्बई जा रही थी। उसी गाड़ीसे मेरा मित्र भी बम्बई जा रहा था। वह रेलवे पुलिसमें था ।
धीरे-धीरे अँधेरा होने लगा। गाड़ी तेजीसे चल रही थी। इतनेमें बगलके डिब्बेसे एक दर्दभरी चिल्लाहटकी आवाज आयी! पर शायद उस ओर किसीका ध्यान नहीं गया।
सिर्फ मेरे उस पुलिस मित्रने उसे सुना और वह सोचने लगा कि जरूर पहले दर्जेमें कुछ गड़बड़ी होगी।
तुरंत ही वह गाड़ीके दरवाजेपर आ गया। सिग्नल न मिलनेके कारण एक-दो मिनिटके लिये ही गाड़ी ठहरी। सिर्फ इतना ही मौका उसको मिला, वह झटसे गाड़ीसे कूद पड़ा और अगले पहले दर्जेके डिब्बेमें चढ़ गया।
वहाँकी हालत देखने, सोचने या सुनने लायक नहीं थी। उसमें एक अकेली युवती थी और दो गुंडे थे। युवतीका मुँह बंद किया हुआ था, जिससे वह चिल्ला न सके। मार-पीट और कीमती चीजें छीननेका काम चालू था।
इस करुणापूर्ण और भयानक दृश्यको देखकर मेरे मित्रकी आँखें लाल हो गयीं। उसने तुरंत ही दोनों गुंडोंपर हमला किया। उन लुटरोंके पास हथियार थे।
इसके पास सिर्फ एक डंडा था पर अपनी जानको जोखिममें डालकर मेरा मित्र उनसे भिड़ गया। वहाँ एक छोटी-सी लड़ाई हो गयी। लुटेकि हथियार मेरे मित्रने छीन लिये।
पर उसको बहुत बुरी मार और तकलीफ सहनी पड़ी। आखिर लुटेरोको मार खाकर भागना पड़ा। इस छोटी-सी लड़ाई में मेरे मित्रकी जीत हो गयी। वह महिला डरके मारे कांपती हुई इस दृश्यको देख रही थीं।
वह बोल नहीं सकती थी। मेरे मित्रकी जीतको देखकर उसमें कुछ धीरज आया। वह समझी कि इन बहादुर पुरुषके रूपमें खुद भगवान् ही मेरी सहायता के लिये आये हैं।
मेरे मित्रने उस युवतीको बम्बईमें उसके भाईके घरपर पहुँचाया। मेरे मित्रकी इस बहादुरीको देखकर अत्यन्त कृतज्ञ हुई वह महिला कुछ पुरस्कार दे रही थी, किंतु मेरे मित्रने लिया नहीं ।
केवल इतना ही कहा कि ‘समझो, मेरी बड़ी बहनपर ऐसी विपत्ति पड़ती तो क्या मैं सहायता नहीं करता? इस अवस्थामें मदद करना मेरा कर्तव्य है।
भगवान्ने मुझे उस समय ऐसी शक्ति दी कि मैं लुटेरोंका मुकाबला करके बहनकी जान बचा सका। यह सब भगवान्की कृपासे ही हुआ, मुझसे कुछ भी नहीं।’
बादमें मेरे घरपर आकर मित्रने मुझे यह दुर्घटना सुनायी। दुर्घटना सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ। मैंने भगवान्से केवल यही प्रार्थना की – ‘हे प्रभो! ऐसा टेढ़ा समय किसीपर न आने देना ।’
मनुष्य जब इस दुनियामें सचाईके साथ सत्कार्य करता है तो टेढ़े समयपर खुद भगवान् ही किसी-न-किसी रूपमें उसकी सहायताके लिये आ खड़े होते हैं।
– वि० ग० ढमाले, ओतूर (पूना)
नियतमे भेद
बिहारीलाल और रामजीदास दो सगे भाई थे। बिहारीलाल बड़े थे, रामजीदास छोटे। दोनों पत्नियाँ थी और दोनोंके ही दो-दो लड़के थे। परस्पर बहुत प्रेम था।
श्रीबिहारीलाल ही बड़े होनेके नाते घरके मालिक थे। चारों बच्चोंको वे ही सँभालते; उनके लिये कपड़े बनवाने, फल-मिठाई लाने, पढ़ाईकी व्यवस्था करने आदि सब कार्य बड़ी दिलचस्पीसे बिहारीलाल करते।
घरकी तथा बच्चोंकी ओरसे रामजीदास निश्चिन्त थे। बिहारीलालके दोनों बालकोंका जैसा पिताजीपर अधिकार था, ठीक वैसा ही रामजीदासके दोनों बालकोंका ताऊजीपर।
बिहारीलाल भी किसी प्रकारका भी भेदका बर्ताव कभी नहीं करते। चारों बच्चोंके लिये सब चीजें समान आती। घरमें रामजीदासकी पत्नीके लिये भी, जो कुछ आवश्यक होता,
जेठजी ही सब करते और उनके किसी बर्तावसे रामजीदासकी पत्नीको कभी कोई शिकायत नहीं हुई। रामजीदास दुकानका काम देखते, घरकी सारी देखभाल बिहारीलाल करते।
एक दिन छुट्टी थी, दूकानें बंद थीं। अतएव रामजीदास घरपर ही थे। मकानके बाहरके आँगनमें एक कुर्सीपर बैठे कुछ पढ़ रहे थे । चारों बालक खेल रहे थे। बिहारीलाल बच्चोंके लिये
फलादि लाने बाजार गये थे बच्चे बिहारीलालजीकी बाट देख रहे थे, क्या फल लाते हैं। थोड़ी ही देरमें बिहारीलालजी लौट आये। वे एक झोलेमें आठ केले और आठ आम लाये थे।
उनके आते ही रामजीदास बड़े भाईक सम्मानार्थ कुर्सीसे उठकर एक ओर खड़े हो गये। बिहारीलालजी कुर्सीपर बैठ गये चारों बालक खेलना छोड़कर फलोंके लिये
बिहारीलालजीके समीप आकर फल माँगने लगे रामजीदास बच्चोंकी उत्सुकता देखने लगे। बिहारीलालका उस ओर कोई ध्यान नहीं था वे झोलेमेंसे फल निकाल रहे थे बच्चोंको देनेके लिये।
केले तो एक-से थे। सुनकर मेरी प्रसन्नताका ठिकाना न रहा। मैं तुरंत दौड़ा महात्माजीके पास गया और चरणों में जा गिरा। सारा हाल बताया और फिर उसी दिन कवींको भागा आया।
लेखक | Gita Press |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 128 |
Pdf साइज़ | 24.8 MB |
Category | Story |
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