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धार्मिक चमत्कार की सत्य घटना की कथा
वे कौन थे?
कुछ महीनों पहलेकी घटना है। मेरे पिताजीकी उम्र लगभग ५५ वर्षकी है। वे दोहाद (गुजरात) – में थे। एक दिन अकस्मात् हृद्रोग तथा उष्णताकी शिकायत बढ़नेसे वे भयानक बीमारीके चंगुलमें फँस गये ।
मल-मूत्रके द्वार रुक गये। पेट फूल गया। नलिकाके द्वारा बड़ी कठिनतासे पेशाब करवाया जाता था । लगभग बीस दिन लगातार इसी अवस्थामें बीत गये। अन्न-पानी सब बंद था। बोलना-चलना बंद ।
बिलकुल अवसन्न चारपाईपर लेटे रहते थे। बड़े-बड़े डाक्टर-हकीमोंका इलाज हुआ। करीब बारह-तेरह सौ रुपये खर्च हो गये, पर कोई अन्तर नहीं पड़ा डाक्टर – हकीमोंने आखिरी राय दे दी कि रोगी किसी हालतमें बच नहीं सकता और उन्होंने अपने हाथ टेक दिये।
घरमें सबकी राय हुई, अब व्यर्थमें दवा क्यों करायी जाय। दवा बन्द कर दी गयी। हमारी आँखें गङ्गा-यमुना-धार बनी हुई थीं। कोई उपाय हाथमें नहीं रहा।
तब केवल दीनदयाल ईश्वरपर भरोसा करके हम पाँचों भाई श्रीमद्भगवद्गीताका पाठ करने लगे। प्रत्येक करते। यों हमें ३० अध्यायके अन्तमें कातर भावसे रामधुन करते । य ३२ घंटे बीत गये।
इसी बीच अकस्मात् किसी एक महात्माने आकर हमारे दुःखका कारण पूछा। हमने सारी दु:ख-दर्दकी कथा महात्माको सुना दी, महात्माने एक पुड़िया फाँकनेकी दवा दी और कहा कि ‘इससे तुम्हारे पिता अच्छे हो जायँगे।’
हमें महात्माकी बातपर विश्वास नहीं था। जहाँ बड़े-बड़े डाक्टर कुछ नहीं कर सके, वहाँ इस पुड़ियासे क्या होना है। हमें विश्वास तो पूरा नहीं हुआ। पर और कोई उपाय था नहीं, हमने पुड़िया दे दी ।
आश्चर्यचकित हो गये सब-के-सब, जबकि पुड़िया देनेके करीब एक घंटे बाद ही पिताजीकी आँखें खुल गयीं। मुँह भी खुला। मल-मूत्रके द्वार भी खुल गये और पेट भी हलका हो गया।
सब घरके लोग, रिश्तेदार सभी दंग रह गये, देह-त्यागके लिये तैयार पिताजी डेढ़ घंटेमें ही पूर्ण स्वस्थ होकर खड़े हो गये।
शरीरमें कमजोरी अवश्य थी, पर उन्होंने नया जीवन पाया। यह कितना बड़ा आश्चर्य था। महात्माकी खोज की गयी, परंतु वे आजतक नहीं मिले। वे कौन थे, महात्मा ? भगवान् ? गीता माता ? या रामनाम ?
– वंशीलाल एम्० अग्रवाल, बी० ए०
सेवा – मूर्ति
कुछ समय पहलेकी बात है। पल्यूका प्रकोप सम्पूर्ण देशमें व्याप्त हो चुका था। उसी समय मैं रामायणपर प्रवचन करनेके हेतु नवरोजाबाद गया। वहाँ जाते ही इनफ्ल्यूएंजाने मुझे भी अपने चंगुलमें धर दबाया। मैं अशक्त हो गया। सर्वत्र निराशा दीखने लगी।
वहाँ किसीसे मैं परिचित भी नहीं था। अकेला ही था। इसीसे विशेष घबरा गया। पासमें विशेष पैसे भी नहीं थे, जिससे कि घर ही किसी प्रकार जा सकूँ। बहुत बड़े चक्करमें पड़ गया।
उसी समय वर्षा भी होने लगी। ऐसी विपत्तिमें कोई बात पूछनेवाला भी नहीं दिखायी पड़ रहा था। तीन बज रहे थे। बुखार जोरोंसे चढ़ा था।
जिस मन्दिरमें रुका था, वह भी वर्षाके आघातको सहन करनेमें असमर्थ था। ऐसी स्थितिमें मैं रामायणकी चौपाईको धीरे-धीरे पढ़ने लगा।
उसी समय एक बुढ़िया माई मेरे पास आयी और बिना कुछ कहे सुने ही मेरा लाउडस्पीकर, हारमोनियम और सारा सामान उठा लिया और बोली ‘बाबा चलो। मैं भी बिना किसी हिचकिचाहटके लड़खड़ाते हुए चल पड़ा।
वहाँ जाकर मैं लेट गया। मुझे नींद आ गयी । पाँच बजे उठा तो देखा कि बुढ़िया भीगी हुई मेरी चारपाईके पास बैठी रो रही है। मैंने पानी माँगा।
बुढ़ियाने पानी देते हुए कहा-‘बेटा ! तू जल्दीसे अच्छा हो जा।’ इतना कहकर उसने ‘ऐस्प्रो’ की दो टिकिया मुझे पानी के साथ खिला दी। मुझे कुछ आराम मालूम पड़ा।
रात्रिमें बिना कुछ खाये ही मैं सो गया। जब दो बजे रातको नींद खुली तो देखा, बुढ़िया बैठी है। उसकी आँखोंसे प्रेमाश्रु दल रहे हैं। मैंने कहा -‘माँ! तू बैठकर रोती क्यों है? बुढ़ियाने आँसू पोंछते हुए कहा- ‘बेटा! सो जा, कुछ नहीं। मैं सो रही थी; अभी तो आयी हूँ।’
बेचारी इस प्रकार प्यार करती मुझे चाय बनाकर पिलाती और सेवा करती। वैसे यह बीमारी तीन दिनोंके पहले नहीं समाप्त होती, पर मैं दो ही दिनोंमें पूर्ण स्वस्थ हो गया।
स्वस्थ होनेपर कथा हुई। लोग अपने यहाँ भोजनके लिये आमन्त्रित करते, अच्छा स्थान भी रहनेके लिये देते, पर बुढ़ियाके वात्सल्यभावको देखकर मैं कहीं नहीं गया। कथा समाप्त होनेपर दो सौ रुपये दक्षिणास्वरूप प्राप्त हुए। मैंने अपनी उस बुढ़िया माईके चरणोंमें ले जाकर इस पत्र पुष्पको समर्पित कर दिया।
आग्रह करनेपर बुढ़िया माईने कहा ‘बेटा! मेरे ऐसे भाग्य कहीं, जो मैं सेवा कर सकूँ। मैं अपनेको धन्य समझती हूँ कि तूने मेरी सेवा स्वीकार की।
बेटा! मेरी दक्षिणा तो यही होगी कि हमेशा तू इस अभागिन माँकी सेवा स्वीकार करता रह।’ बुढ़िया माईकी इस स्नेहभरी वाणीको श्रवणकर मैं आनन्द-विभोर हो गया। उसके इस भावको देखकर हृदयमें श्रद्धाकी लहर उमड़ पड़ी। उसने २५ रुपये और देकर २०० रुपये वापस कर दिये।
आज भी जब मैं इस सेवा मूर्तिका पवित्र स्मरण करता हूँ तो मेरे नेत्रोंमें प्रेमाश्रु छलछला आते हैं।
– कुमुदजी कथावाचक, बी० ए०, साहित्यरत्न
लेखक | Gita Press |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 128 |
Pdf साइज़ | 25.9 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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