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हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास कक्षा 11 एवं 12 के लिए -History of Hindi Sahitya PDF Free Download

हिंदी साहित्य का इतिहास(आदिकाल)
आदिकाल
(सन् 993 ई० से 1318 ई० तक)
हिन्दी साहित्य की पूर्व पीठिका :
हिंदी भारत में सर्वाधिक बोले जाने वाली भारतीय आर्य भाषाओं में सर्वोपरि है।
भारतवर्ष को प्राचीन काल में आर्यावर्त के नाम से जाना जाता था और यहाँ के निवासियों को आर्य तथा आय द्वारा बोले जाने वाली भाषाओं को आर्य भाषाओं के नाम से जाना जाता था।
पृथ्वी के मानचित्र में भारत की स्थिति एक प्रायद्वीप के समान है।
इसके उत्तर में हिमाच्छादित हिमालय तथा सुदूर दक्षिण में अथाह अपार सागर हिलोरें ले रहा है. जिसकी महान संस्कृति ने वैदिक संस्कार, सदाचार एवं सुव्यवस्थित सुदृढ सामाजिक परम्पराओं को जन्म दिया है।
सहिष्णुता भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा गुण है जो समुद्र की भाँति अनेक नदियों की धाराओं को अपने अन्दर धारण करने की क्षमता रखती है|
यहाँ अनेक जाति धर्म के लोगों ने आक्रमण किया, किन्तु सब मिट गए और भारतीय संस्कृति आज भी अमिट है। यह संस्कृति हमारी परम्पराओं को नवजीवन प्रदान करती है, जिसके फलस्वरूप आज भी यह नवनूतन लगती है।
यहाँ राजनीतिक सामाजिक एवं आर्थिक सभी परिस्थितियों में उतार-चढ़ाव आए किन्तु इसकी सहिष्णुता की नीति से यह सदैव विजयी रही है। हिन्दी साहित्य में भक्ति वीर और श्रृंगार का त्रिवेणी संगम दृष्टिगोचर होता है।
इसमें भक्ति की धारा के संग ओजस्वी शैली के रासो साहित्य तो कहीं महाकवि बिहारी की नायिका का अद्भुत श्रृंगार और कहीं घनानन्द के वियोग भरे कवित्त के साथ-साथ भूषण का राष्ट्रप्रेम उजागर होता है।
भारत की इस पावन भूमि में धर्म, संस्कृति और संस्कारों की अजस्र धारा प्रवाहित होती है, जो जनजीवन को अमृतमय जीवन प्रदान कर रही है।
हिन्दी शब्द की व्युत्पत्ति
हिन्दी शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा के “सिन्धु” शब्द से मानी जाती है सिन्धु नदी के आस-पास का क्षेत्र सिन्धु प्रदेश कहलाता था ।
ईरान (फारस) की तरफ से भारत में आने वाले विदेशी आक्रमणकारी हिन्दुकुश पहाड़ी मार्ग को पार करके जब सिन्धु प्रदेश में आए तो उन्होंने सिन्धु प्रदेश को हिन्द प्रदेश कहा; क्योंकि ईरानी (फारस) भाषा में शब्द की प्रथम स ध्वनि को ह ध्वनि में उच्चारित करते हैं ।
अतः सिन्धु प्रदेश को हिन्दप्रदेश कहने लगे और वहाँ के निवासियों को सिन्धु के स्थान पर हिन्दु कहने लगे।
यही सिन्धु की भाषा हिन्द कहलाने लगी और आगे चलकर ईरानी भाषा का ईक प्रत्यय लगने के कारण हिन्द + ईक – हिन्दीक बन गया जिसका अर्थ हिन्द का हुआ ।
यही शब्द धीरे-धीरे परिवर्तित होकर हिन्दीका हुआ जो अंग्रेजी भाषा के
रूपान्तरण के कारण इण्डिया’ बन गया । आज यह इण्डिया” समस्त भारतवर्ष का सूचक बन गया है। I
हिन्दी भाषा का उद्भव और विकास
भारतीय भाषा का प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद है।
ऋग्वेद की भाषा संस्कृत थी, किन्तु समयचक्र सदैव गतिमान होने के कारण परिवर्तनशील है।
अतः भाषा भी धीरे-धीरे अनेक रूपों में परिवर्तित होने लगी संस्कृत भाषा का समय 1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व का रहा ।
यह दो प्रकार की थी। पहली वैदिक संस्कृत जिसमें वेद, उपनिषद्, आरण्यक, ब्राह्मण एवं दर्शन आदि की रचना हुई व दूसरी लौकिक संस्कृत जिसमें रामायण और महाभारत इत्यादि की रचना हुई।
यही लौकिक संस्कृत बोलचाल की भाषा के रूप में विकसित हुई और धीरे-धीरे पाली भाषा के रूप में प्रचलित हुई जिसका समय 500 ईसा पूर्व से ईसा की पहली शताब्दी तक माना गया।
इस भाषा में बौद्ध धर्म के विनयपिटक सूत्तपिटक, अभिधम्मपिटक एवं जातक कथाओं की रचना हुई, किन्तु भाषा के दो रूप सदैव प्रचलित रहे ।
पहला रूप साहित्यिक, दूसरा लौकिक अर्थात् बोलचाल की भाषा ।
लौकिक भाषा में धीरे-धीरे साहित्यिक रचनाएँ होने लगती हैं।
जब कोई भाषा कवि और लेखकों का आश्रय पाकर नवीन भाषा में परिवर्तित हो जाती है तो साहित्यिक भाषा का रूप धारण कर लेती है।
पाली भाषा में भी ऐसा ही हुआ।
वह समय के अनुसार प्राकृत का रूप धारण करने लगी। प्राकृत का समय ईसा की पहली शताब्दी से लेकर 500 ईस्वी के बाद तक रहा ।
इस काल में जैन साहित्य प्रचुर मात्रा में रचा गया प्राकृत के समय जनपदों में क्षेत्रानुसार भाषा का प्रचार हुआ। यहीं से प्राकृत भाषा अपभ्रंश के रूप में प्रसारित हुई ।
विद्वानों ने प्राकृत भाषा के अन्तिम चरण में अपभ्रंश का उद्भव माना है क्योंकि तत्का
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 151 |
PDF साइज़ | 2.4 MB |
Category | Education |
Source/Credits | Rajeduboard |
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