हिंदुत्व हिंदु कोन है | Hindutva Who Is a Hindu PDF In Hindi

हिंदुत्व हिंदु कोन है – Hindutva Veer Savarkar Book/Pustak PDF Free Download

“हिन्दुत्व” क्या है ?

इसी प्रश्नका प्रामाणिक और तर्क शुद्ध उत्तर इस पुस्तकमें दिया गया है।

हम यह समझते हैं कि इस समय प्रत्येक हिन्दूको यह जानने की आवश्यकता है कि हिन्दुत्व क्या है। हिन्दुत्वकी पहचान ही हिन्दू-संघ टनका आधार है।

यदि हम यही नहीं जानते कि हिन्दुत्व क्या है अथवा वह कौनसी बात है जो प्रत्येक हिन्दूमें है, चाहे उसका धर्मसंप्रदाय कुछ भी हो, तो हम यही नहीं जानते कि हम हिन्दूसंघटनके नामसे किसका संघटन करने चले हैं अथवा क्या करना चाहते हैं।

हमने बहुतसे ऐसे लोंगोंको देखा है कि जो हिन्दूसंघटन चाहते हैं, पर यह नहीं जानते कि हिन्दूका हिन्दुत्व क्या है या हिन्दूकी परिभाषा क्या है।

बहुत से लोग तो यह समझते हैं कि हिन्दू तो कोई एक जाति ही नहीं है, न कोई एक धर्म ही है और इसलिये “हिन्दू” की कोई परिभाषा ही नहीं हो सकती। परन्तु यह कहते हुए भी वे इस बातको अस्वी

हिन्दू नाममें क्या है ?

हम हिन्दू हैं और हिन्दू ही बने रहना चाहते हैं

हिन्दू नामके साथ हमारी यह आसक्ति देखकर कुछ लोग, वेरोनाकी उस रूपवती कन्याके समान, जिसने अपने प्रेमीसे प्रेमके नामपर अपना नाम बदल देनेकी याचना की थी,

उसीके मुखसे निकले हुए उद्गार इस प्रकार दुहरा सकते हैं कि, “नाममें क्या है ? नाम हाथ नहीं है, पैर नहीं है, बाँह नहीं है, चेहरा नहीं हैं,

मनुष्य शरीरका कोई अवयव नहीं है, फिर इसमें है ही क्या जो हम इस नामकी पूजा करें – उसे छोड़ न सकें ! वस्तु है तो नामकी क्या परवा ?

गुलावको गुलाब न कहकर उसे और किसी नामसे पुकारें तो इससे उसकी सुगन्ध तो कहीं नहीं जाती !” एक ही वस्तु है, पर भिन्न-भिन्न भाषाओंमें उसके भिन्न भिन्न नाम हैं।

हिन्दू नामकी उत्पत्ति

अभी इतना ऐतिहासिक अनुसन्धान नहीं हुआ है कि यह निश्चित रूपसे बताया जा सके कि पहले-पहल आर्य लोग सिन्धु नदीके किनारे कब आकर बसे और कब उन्होंने वहां अपना अग्निहोत्र स्थापित किया।

परन्तु यह निश्चित है कि प्राचीन मिश्रवासी और बेबिलनवालोंकी जिस सभ्यताका संसारमें इतना नाम हुआ उस सभ्यताका जब पता भी नहीं था,

तभी पवित्र सिन्धुसलिलकी कलकल ध्वनि के साथ यज्ञीय धूमकी सुगन्ध भी प्रवाहित हुआ करती थी और वह तट-प्रदेश वेदघोषसे गूंजा करता था,

जिससे आर्यों के अन्तःकरणमें आध्यात्मिक ज्योति प्रज्वलित रहा करती थी। ये लोग पराक्रमी थे, वीर थे, सत्या नुसन्धान करते हुए इन्होंने अत्यन्त गम्भीर तत्वोंका अनुभव किया था।

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लेखक वीर सावरकर – Veer Savarkar
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 167
Pdf साइज़14.8 MB
Categoryइतिहास(History)

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