हिन्दी संकेत लिपि (ऋषि प्रणाली) | Hindi Sanket Lipi PDF In Hindi

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संकेत लिपि – Hindi Sanket Lipi Rishi Pranali (Steno Shorthand) Book/Pustak PDF Free Download

हिंदी स्टेनो शब्द चिन्ह 

समय में सरकारी नौकरी में था और पचपि हुके भगवानी भी अच्छी थी परन्तु फिर भी व्यापार की तरफ अधिक दोने के ारमैं अक्सर यही सोचता था कि ऐसा कौन सा काम किया जाय जिससे नौकरी से परीक्षा का।

इसी समय हमारे दफ्तर इलाहाबाद से सठकर लखनऊ चला गया लखनऊ से पुद्धा मावा जी को सरा भी पसंद न आया। इन्हें पुरा किसा गंगा का धढ छोड़कर लखन ऊ मे रहना बहुत ही कष्ट का प्रसव हुआ।

वह अक्सर कहती थी कि भगवान ने अंत में कहाँ से कहाँ लाकर पटका । इन सब बातों में हमारे विचार को और मी पदख दिया और इम म महीने की छुट्टी लेकर इलाहाबाद लौट आये। यह सन् १९२४ की बात है।

अथ हम सोचने लगे कि क्या करना चाहिए जिससे लखनऊ न लगाना पड़े।

आखिर में ख्वारशिप और रेविन्यू एजेन्टी को परीक्षा देने का निश्चय किया और ईश्वर की इपा से उसमें सफलता भी मिली परन्तु उस समय असहयोग आन्दोलन जोरों पर था और लोग अक्षत का बहिष्कार कर रहे थे, इसलिए उधर भी जाना उचित न समझा।

व्यवसाय की तरफ लड़कपन से ही काम था, उसने फिर जोर मारा और इसी समय एक घनिष्ट सम्बन्धी के कहने- मुनने से मैंने एक प्रेस की स्थापना की और ईश्वर की कृपा से कुछ ही दिनों में यह पूरे प्रान्त के अच्छे प्रेसों में गिना जाने लगा परंतु अभाग्य या भाग्यवश वहाँ से भी हटना पक्का।

इसी समय हिंदी-शीघ्र-लिपि की पुकार सुनाई पड़ी, फिर क्या या, एक सरल-मुबोध तथा सर्वोक्न पूर्ण प्रणाली के आविष्कार में संज्ञा और उसके फल स्वरूप यह मुस्तफा के सामने प्रस्तुत है।हम सोचने लगे कि क्या करना चाहिए जिससे लखनऊ न लगाना पड़े।

बाएँ और दाहिने संकेत सुचारुता के विचार से कये गये हैं| कहाँ किसको लिखना चाहिए यदद आगे ससकाया जायगा।

रेखाओं के बारीक और मोटे होने पर, उनके ऊपर से नीचे ओर नीचे से ऊपर लिखे जाने पर या उनके सरल ओर, कठे द्ोने पर खूब ध्यान रखना चाहिए और इनका इतना अच्छा अभ्यास करना चाहिए जिससे लिखते समय ध्वनि संकेत सुचारु रूप से आप ही आप लिखे ज्ञा सके ।

तीर का निशान लगाकर यह पहले ही बताया जा चुका दे कि कौन रेखा कहाँ से आरंभ होती है और किस ओर जातो है |

लिखते समय इस्र बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए किलज्लो रेखा जहाँ से आरंभ होतो है वहीं से आरंभ को जाय और द्विर ऊपर, नीचे या आड़ी जिस तरफ लिखी है उसी तरफ लिखी जाय |

इस लिपि को बड़ी सावधानी से खूब बनाकर लिखना चाहिए, यहाँ तक कि एक एक वर्णन इतना लिखा जाय कि वह पुस्तक में दिये हुये वण से मिलते जुलते मालूम द्वों ।

इसमें जल्दी , करने से लिपि कभी भी आगे चलकर फिर न सुधरेगी और परिणाम यह होगा कि इस तरह जल्दी २ लिखने वाले लेखक महाशय कभी भी कुशल हिन्दी-संकेत-लिपि के ज्ञावा न दो सकेंगे |

विचार से देखिये तो वर्णमाला के पंचवर्गो’ के जितने अक्षर हैं, उनका प्रथम अक्षर तो सूल-अक्षर है पर उसके बाद का दूसरा अक्षर उसी मूल अक्षर में “ह? लगा देने से बना है |

इसी तरह तीखरा अक्षर मूल अक्षर है और चौथा: अक्षर उसी में ‘ः त्ञगा देने से बना दे । जैसे कवर्े का ‘“क’ प्रथम अक्षर है और इसके बाद का अक्षर ख’ क सें ह लगाकर बना है।

स्वर जब दो व्यंजनों के बीच में आता है तो प्रथम ओर द्वितीय स्थान पर तो यथानियम पहले व्यंजन के पश्चात्‌ रखा जाता है पर जब तीसरे स्थान पर आता है तो पहले व्यक्लन के तीसरे स्थान पर न रखकर आगे वाले व्यंजन के कृतीय स्थान के पहले रखा जाता है, क्योंकि यद्द सुविधाजनक होता है।

ऐसा करने से पहले व्यक्लन के बाद तृतीय स्थान और उसके आगेवाले व्यव्ञन के पहले के प्रथम स्थान में उन्तकन न पड़ेगी ।

कभी २ ऐसा भी होता है कि दो व्यंजनों के मिलने के कारण तीसरे स्थान की जगह नहीं बचती । इन्हीं बातों को दूर करने के लिए उपरोक्त नियस रखा गया है।

लेखक रिशीलाल अग्रवाल-Rishilal Agarwal
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 314
Pdf साइज़7 MB
Categoryसाहित्य(Literature)
Sourcesarchive.org

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