महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
माता-पिता के संस्कारों ने उन्हें पहले ही धर्मात्मा बना दिया था सचाई के प्रति यह प्रेम जो बचपन से आपकी नस-नस में समा गया था, जो आजीवन आपका साथी रहा।
वचपन की शिक्षाओं का प्रभाव स्थायी होता है। जिन दिनों पाप हाई स्कूल में पढ़ते थे, शहर में एक नाटक कंपनी आई। नाटक राजा हरिश्चन्द्र का था।
नाटक देखने के बाद गांधीजी ने स्वप्नों में भी राजा हरिश्चन्द्र ही दिखाई देते थे। जीवन में आप सत्य की बदौलत ही विजय पाते रहे।गांधीजी हरिश्चन्द्र की दृढ़ता से बहुत परिभाषित हुए।
हरिश्चन्द्र की विजय ने उन्हें विश्वास दिला दिया कि सत्य की विजय शटल है । गांधीजी ने कई वार इसी कहानी को मन ही मन दुहराया ।
अन्त उन्होंने भी निश्चय कर लिया कि यह सत्य का सो कभी न छोड़ेंगे। सत्य के मार्ग में आने वाली कटि नाइयां उन्हें पग-भर पीछे नहीं हटा सकेंगे ।
गांधीजी जब तक जीवित रहे, सत्य का पालन भरत रहे। उन्होंने सत्य को यहां तक अपनाया कि उत्तके पुजारी बन गए। उन्होंने सत्य के असलो] स्प को पहले ।
इसी सत्य अन्त में उन्होंने एक चिट्ठी पिताजी के लिए लिखी, जिसमें उन्होंने स्वयं अपना अपराध स्वीकार किया था।
गांधीजी ने सारी की सारी बात उसमें साफ-साफ लिख दो और प्रतीक्षा की कि वे भविष्य में कभी भी ऐसा अपराध न करेंगे गांधीजी ने इस भूल को स्वीकार किया। पत्र पढ़ते ही पिता की आंखें भर आई।
गांधीजी भी खूब रोए। गांधीजी को डर था कि पिताजी उनका दोप जानकर क्षमा नहीं करेंगे वे स्वभाव से उदार और सत्यप्रिय थे, किन्तु क्रोधी थे।
फिर भी उन्होंने गांधीजी द्वारा स्वयं दीप स्वीकार करने के बाद उन्हें हृदय से क्षमा कर दिया। तभी से गांधीजी ने यह शिक्षा ली कि प्रायश्चित्त का सबसे अच्छा उपाय शुद्ध हृदय से दोप स्वीकार कर लेना है।
लेखक | सत्यकाम विद्यालंकार-Satyakam vidyalankar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 66 |
Pdf साइज़ | 1.1 MB |
Category | इतिहास(History) |
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