दासबोध अर्थ हिंदी | Dasbodh PDF In Hindi

समर्थ स्वामी दास बोध – Das Bodh Hindi Book Pdf Free Download

पहला दशक

पहला समास

ग्रंथाम्भ निरूपण

श्रोता पूछते हैं कि यह कौन ग्रन्थ है, इसमें क्या-क्या बातें कही गई हैं और इसे सुननेसे क्या लाभ होता है ।

इसका उत्तर यह है कि इसका नाम दासबोध है, इसमें गुरु और शिष्यका संवाद है और इसमें भक्ति-मार्गका विस्तृत वर्णन है।

इसमें नवधा भक्ति और ज्ञानका वर्णन है, वैराग्यके लक्षण कहे गये है और प्रायः अध्यात्मका निरूपण किया गया है। इस ग्रन्थका यह मतलब है कि भक्तिकी सहायतासे मनुष्य अवश्य ही ईश्वरको प्राप्त करता है।

इसमें मुख्यतः भक्ति, शुद्ध ज्ञान, आत्मस्थिति, शुद्ध उपदेश, सायुज्य मुक्ति, मोक्ष-प्राप्ति, ईश्वरके शुद्ध स्वरूप, विदेह-स्थिति, अलिप्तता, मुख्य देवता या ईश्वर, अच्छे भक्त, जीव और शिव (जीवात्मा और परमात्मा) मुख्य ब्रह्म और नाना मत आदिका निश्चय या निरूपण किया गया है ।

इसमें मुख्य उपासना, नाना प्रकारके कवित्व और चातुर्यके लक्षण कहे गये हैं। मायाकी उत्पत्ति और पंचभूतोंके लक्षण बत लाये गये हैं; और बतलाया गया है कि कर्त्ता कौन है।

इसमें नाना प्रकारके संशयों और शंकाओंका निवारण किया गया है और अनेक प्रकारके प्रश्नोंका उत्तर दिया गया है । इस प्रकार जाई गई हैं उन वर्णन यह नहीं हो सकता ।

पूरा दासबोध दशकों में विभक्त किया गया है और हर एक दशकका विषय उसी दशकके आरम्भमें बतला दिया गया है। इसमें उपनिषद्, वेदान्त, श्रुति आदि अनेक ग्रन्थोंके मत दिये गये हैं; और शास्त्रोंके प्रमाण सहित आत्म-प्रतीति या अपने अनुभवकी बातें बतलाई गई हैं।

इसमें अनेक ग्रन्थोंके मत हैं जो मिथ्या नहीं कहे जा सकते; तथापि वे बातें अब अनुभवकी सहायतासे प्रत्यक्ष कर दी गई है। यदि मत्सर के कारण कोई इसकी बातोंको मिथ्या कहे, तो वह मानों समस्त धर्मग्रन्थोंके मतों और ईश्वरीय वाक्योंका उच्छेद या खण्डन करेगा।

शिव गीता, राम गीता, गुरु गीता, गर्भ गीता, उत्तर गीता, अवधूत गीता, वेद, वेदान्त, भगवद्गीता, ब्रह्म गीता, हंस गीता, पाण्डव गीता, गणेश गीता, यम गीता, समस्त उपनिषद्, भागवत आदि अनेक ग्रन्थोंके मत 2 इसमें दिये गये हैं । वे सब वास्तवमें भगवद्वाक्य हैं और बिलकुल ठीक है ।

दूसरा समास

गणेश स्तुति

गण-नायक, सर्व-सिद्धि फलदायक, अज्ञान और भ्रान्तिका नाश करनेवाले योधरूप गणेशजीको नमस्कार है । आप कृपाकर मेरे हृदयमें विराजें, सदा वहीं ब्रास करें और मुझ पाकशुन्यसे कुछ कहलावें ।

आपकी कृपासे जन्म-जन्मान्तर की भ्रान्तिका नाश होता है और त्रिभक्षक काल भी दासत्व करने लगता है । आपकी कृपाका प्रवाह होते ही बेचारे चिन कोंपने लगते हैं और आपका नाम लेनेसे ही वे तितर बितर हो जाते हैं ।

इसीसे आपका नाम चिनहर है । जाप हम अनायके नाथ हैं, हरिसे हर तक सभी देवता आपकी वन्दना करते हैं। मंगलनिधिका वन्दन करके जो कार्य किये जाते हैं।

उनमें सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और विघ्न-वाधाएँ मार्गमें नहीं आतीं । आपका ध्यान करते ही परम समा धान होता है । सब अंगोंको छोड़कर मन केवल आँखोमें आ बसता है।

बाकी सब अंग पंगु हो जाते हैं। आपका सगुण रूप भी बहुत ही सुन्दर हैं। आपके नृत्य करते ही सब देवता स्तब्ध हो जाते हैं। वे सदा आनन्दसे मत्त होकर घूमते रहते है और हर्षसे सु प्रसन्न-वदन रहते हैं।

आपका भव्य रूप और भीम मूत्ति महाप्रचण्ड है; विस्तीर्ण और उन्नत मस्तक सिन्दूरसे चर्चित है । गण्डस्थलसे नाना प्रकारकी सुगन्धियाँ निकलती हैं और भ्रमर वहाँ आकर गुंजारते हैं।

सूँड सरल और कुछ मुड़ा हुआ है, अभिनव कपोल शोभित है, अधर लम्बा है जिसमेसे क्षण क्षण पर तीक्ष्ण मद टपकता है।

चौदहों विद्याओंके स्वामी छोटी छोटी आँखें हिला रहे है और कोमल तथा लचीले कान फड़फड़ा रहे हैं । रत्न-जटित मुकुट झलझला रहा है जिस पर अनेक प्रकारके रंग चमक रहे हैं ।

कुण्डलों में जड़े हुए नीलम चमक रहे है । दृढ़ और शुभ्र दाँतोंमें सोनेके जड़ाऊ कड़े पड़े है जिनके नीचे छोटे छोटे स्वर्णपत्र चमक रहे है।

तीसरा समास

शारदा स्तुति

अब मैं वेदमाता, ब्रह्मसुता, शब्दमूला, वाग्देवता, महामाया श्री शारदाकी वन्दना करता हूँ।

जो मुखसे शब्द निकलवाती है, अपार वाणी कहलवाती है और जो निःशब्दके मनका भाव भी विदित कराती है; जो योगियोंकी समाधि, दृढ़ निश्चयी लोगोंकी दृढ़ता है और जो विद्या होनेके कारण अविद्याको नष्ट करती है;

जो महापुरुषोंकी तुरीया अथवा चतुर्थावस्था में परम निकट रहनेवाली माया है और जिसके लिए साधु लोग बड़े बड़े कार्यों में प्रवृत्त होते हैं; जो महान् लोगोंकी शान्ति, ईश्वरकी निज शक्ति, ज्ञानियोंकी विरक्ति और निराशाकी भी शोभा है;

जो अनन्त ब्रह्मांडोंकी रचना करती और विनोदमें ही उन्हें नष्ट करती है और जो स्वयं आदि पुरुषकी आड़में खड़ी रहती है; जो केवल प्रत्यक्ष देखनेसे ही दिखाई पड़ती है और विचार करनेसे अदृश्य हो जाती है और ब्रह्मा आदि भी जिसका पार नही पाते;

जो जगत् के सभी नाटकोंकी भीतरी कला है, जो निर्मल स्फूर्ति है और जिससे आत्मानन्द तथा ज्ञान शक्ति प्राप्त होती है ;

जो लावण्य स्वरूपकी शोभा है, जो पर ब्रह्म सूर्यकी शोभा है और जो शब्दोंसे बना बनाया संसार नष्ट कर सकती है; जो मोक्ष देनेवाली लक्ष्मी और महामंगला है; जो सत्रहवीं जीवन-कला, मनुष्यको अमर करनेवाली |

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लेखक स्वामी रामदास- Swami Ramdas
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 386
Pdf साइज़26.9 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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