हरिहर स्तोत्र और नागलीला – Harihar Stotra PDF Free Download
हरिहर स्तोत्र Hindi Lyrics
प्रथम जो लीजे है गणपति का नाम।
तो होवें सभी काम पूर्ण तमाम।
करे बेनती दास कर हर का ध्यान।
जो कृपा करी आप गिरिधर हरि।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
ब्रह्मा, विष्णु, शिवजी हैं एको स्वरूप।
हुए एक से रूप तीनों अनूप।
रचन, पालन,विनाशहेत भये तीन रूप।
चौबीसों अवतारों की महिमा करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
शक्ति स्वरूपी और परमेश्वरी।
रखा अपना नाम महा ईश्वरी।
योगीश्वर, मुनीश्वर, तपेश्वर ऋषि।
तेरी जोत में लीं परमेश्वरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
तेरा नाम है दुःख हरण दीनानाथ।
जो बरसन लगा इन्द्र गुस्से के साथ।
रखा तुमने ग्वालों को देकर के हाथ।
वहां नाम अपना धरा गिरिधरि।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
असुर ने जो बाँधा था प्रह्लाद को।
न छोड़ा भक्त ने तेरी याद को।
न कीनी तव्वकफ खड़े दाद को।
धरा रूप नरसिंह पीड़ा हरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
नहीं छोड़ता राम का था ज़िकर।
तो गुस्से में बांधा था उसको पिदर।
कहा के करूँ मैं जुदा तन से सर।
रो खम्भ फाड़ निकले न देरी करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
चले जल्द आए प्रह्लाद की बेर
हिरणाकुश को मार न कीनी थी देर।
किया रूप बावन ब्राह्मण का फेर।
बलि के जो द्वारे आ ठाड़े हरि।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
था जलग्राह ने गज को घेरा जभी।
न लीना था नाम उसने तेरा कभी।
जो मुश्किल बानी शरण आया तभी।
हरि रूप हो करके पीड़ा हरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
अजामिल को तारा न कीनी थी देर।
चखे प्रेम से जूठे भीलनी के बेर।
करी बहुत कृपा जो गणिका की बेर।
अजामल कहाँ कर सके हमसरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
जभी भक्त पे आके बिपता पड़ी।
सुदामा की थी पल में पीड़ा हरी।
है इसने तेरे नाम की धुन धरी।
न राखे तू मुश्किल किसी की अड़ी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
नरसी भगत की हुण्डी करी।
साँवलशाह पर थी उस लिख धरी।
ढूंढत फिरे थी लगी थरथरी।
साँवलशाह हो उसकी हुण्डी भरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
वक्रदन्त ने जब सताई मही।
न सूझे कुछ बहुत आतुर भई।
सिर्फ ओट तेरी मही ने लई।
किया रूप वाराह रक्षा करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
जो सैयाद ने पंछी को दुःख दिया।
वह आतुर भय नाम तेरा लिया।
तभी साँप सैयाद को डस गया।
छुड़ाया था पक्षी को जो हरहरि।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
वो रावण असुर जो सिया ले गया।
निकट मौत आई वह अँधा भया।
असुर मार राजा विभीषण किया।
सिया लेके आए अयोध्यापुरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
जो गौतम ने अहिल्या को बद्दुआ दी।
उसी वक्त अहिल्या शिला हो गई।
पड़ी थी वह रस्ते में मुद्दत हुई।
लगा के चरण मुक्ति उसकी करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
जो संकट बना एक नामी को आ।
कहे बादशाह मेरी गौ दे जिवा।
तो नामे ने बिनती तुम्हारी करी।
वहाँ नाथ नामे की पीड़ा हरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
शंखासुर असुर एक पैदा हुआ।
ब्रह्मा के वह वेद सब ले गया।
ब्रह्मा आपकी शरण आकर पड़ा।
मत्स्य रूप से वेद लाए हरि।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
यमला और अर्जुन ने किया कुछ पाप।
हुए जड़ जो उनको हुआ था शऱाप।
ऊखल बंधे जो नाथ पहुंचे थे आप।
ऊखल साथ ही उनकी आपदा हरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
द्रोपदी के कौरव ज़ुल्म ज़ोर साथ।
उतारन लगे चीर पट अपने हाथ।
किया याद द्रोपदी ने तुझे दीनानाथ।
रखी लाज उसकी नग्न न करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
वो है याद तुमको जो रुक्मण की बार।
ख़बर देने आया था जुन्नार दार।
चढ़े नाथ रथ पर हुए थे सवार।
रुकम बाँध रुक्मण को लाए हरि।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
असुर एक दर पे सतावन लगा।
दशों दिश शिवाँ को फिरावन लगा।
धारन हाथ सिर शिव के इच्छा करी।
शक्ति रूप हो शिव की रक्षा करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
दुर्वासा गया ले शिष्य पांडवों के पास।
भोजन कारन की जो कीनी थी आस।
तो राजे छलक बन के इच्छा करी।
वहाँ नाथ पांडवों की आपदा हरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
जो धन्ने भगत मांग ठाकुर लिया।
त्रिलोचन मिसर हंस के बट्टा दिया।
भगत का जो दृढ़ निश्चय देखा हरि।
भोजन किया धरती हुई हरीभरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
युधिष्ठिर पे जब कोप कौरव हुआ।
कि हर दो तरफ जंग आकर मथा।
तब खून का सिन्धु बहने लगा।
टटीरी के बच्चों की रक्षा करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
तेरे अन्त को कोई पावै कहाँ।
माधो दास को जाड़ा लगा जहाँ।
छप्पर बांधने आप पहुंचे वहाँ।
छप्पर बाँध कर उसकी रक्षा करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
गरुड़ की सवारी पर अब तक रहा।
बड़ा ही तअज्जुब है हमको भया।
कड़ाह गरम कर तेल जब वह चढ़ा।
सुधन्वा को आकर बचाया हरि।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
बढ़ा राक्षसों का ज़ुलम था जहाँ।
ऋषीश्वर मुनीश्वर खराबी नशां।
मारे दैत्य सब ऋषि शादमाँ।
कृपा करी पीड़ा भगतन की हरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
ध्रुवन सुखन माता का गोश कर।
चले घर से बाहर तेरी आस पर।
लगे भजन करने तब इक पाँव पर।
किया दास उसको गले ला हरि।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
तमाम उम्र कंस दुश्मन रहा।
पालक में तूने उसका उद्धार किया।
उग्रसेन को राज मथुरा दिया।
संदीपन का बेटा जिवाया हरि।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
लिखी बाप की उसको चिठ्ठी गई।
नहीं एक पल ढिल्ल करनी पड़ी।
लिखी विष थी जो उसकी विषया करी।
लिखी कुछ थी ईश्वर ने कुछ जा करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
जो कुब्जां से संदल लिया मुरलीधर।
लगे देखने लोग इधर और उधर।
तअज्जुब रही देख कुब्जां ऊपर।
रखा पाँव पर पाँव सीधी करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
राजा पकड़ ज़हर कातिल दिया।
जो पीये तब उसको न छोड़े जिया।
मीरा ने तेरा नाम लेकर पीया।
उसी विष से जा उसको अमृत करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
ये अड़सठ के ऊपर चौबीस हज़ार।
रखे बहुत राजा जरासंध तार।
वहां भगत तंगी में कीनी पुकार।
उसी वक्त उनकी जो आपदा हरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
दीनानाथ जो नाम तेरा भया।
वही नाम सुन दास शरणी पया।
अपने नाम की लाज राखो हरि।
मेरे सभी दुःख काट डालो हरि।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
तू हैगा ब्रादर बलिराम का।
मैं राखूँ भरोसा तेरे नाम का।
नहीं कोई दूजा तेरे नाम का।
तू ही जगत रचना है करता हरि।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
मेरी बिनती को सुनो लाल जी।
यह ग़फ़लत का नहीं वक़्त गोपाल जी।
करो मुझ को दुनिया में खुशहाल जी।
तेरे बिन मेरा कौन है दुःख हरी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
तू ही जगत बीच तारन तरन।
तू ही है सकल सृष्टि कारण करण।
विभीषण जो आया था तेरी शरण।
बख़्शीश लंका थी उसको करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
कृष्ण दास की विनती हर सुनी।
सर्व सुख दिए तुम सर्व के धनी।
आनन्द भया बहुत करुणा करी।
भगत अपने की पदवी ऊंची करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
करी हर कृपा दरस दिया दिखाई।
मेरी जान संकट से ली बचाई।
मन की मुराद सब मिल गई।
पूर्ण कृपा हमपे हरि ने करी।
हरि हर हरि हर हरि हर हरि।
मेरी बेर क्यों देर इतनी करी।
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 36 |
PDF साइज़ | 18.2 MB |
Category | Religious |
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