सतसंग और महात्माओं का प्रभाव – Gyan Yog Ka Tatv Book PDF Free Download

ज्ञानयोग का तत्व सतसंग और महात्माओं का प्रभाव
पारस और संतमें बहुत भेद है, पारस लोहेको सोना बना सकता है; परंतु पारस नहीं बना सकता । किंतु संत-महात्मा पुरुष तो सङ्ग करनेवालेको अपने समान ही सत-महात्मा बना देते हैं।
इसलिये महात्माओके सङ्गके समान संसारमें और कोई भी लाभ नहीं है । परम दुर्लभ परमात्माकी प्राप्ति महात्माओंके सङ्गसे अनायास ही हो जाती है।
उच्चकोटिके अधिकारी महात्मा पुरुषों के तो दर्शन, भाषण, स्पर्श और वार्तालापसे भी पापों का नाश होकर मनुष्य परमात्माकी प्राप्तिका पात्र बन जाता है ।
साधारण लाभ तो सङ्ग करनेवालेमात्रको समान भावसे होता ही है, चाहे उसे महात्माका ज्ञान हो या न हो। महात्माका महत्त्व जान लेनेपर तो उनमें श्रद्धा होकर विशेष ज्ञान हो सकता है ।
जैसे किसी कमरेमें दकी हुई अग्नि पड़ी है और उसका किसीको ज्ञान नहीं है, तब भी अग्निसे कमरे में गरमी आ गयी हैं और शीत- निवारण हो रहा है मिल रहा यह सहज लाभ तो, यहाँ जो लोग हैं
उनको, बिना जाने भी । पर जब अंगिका ज्ञान हो जाता है, तब तो वह मनुष्य उस अमीर से भोजन बनाकर खा सकता है और दीपक जलाकर उसके प्रकाशसे लाभ उठा सकता है।
अग्निमें प्रकाशिका और विदाहिका-ये दो शक्तियाँ स्वाभाविक ही हैं अग्निका ज्ञान होनेपर ही मनुष्य उसकी दोनों शक्तियोंसे लाभ उठा सकता है और यदि अग्निमें यह भान हो जाता है कि अगि साक्षात् देवता है,
तब तो वह उसमें पुत्र, घन, आरोग्य, कीर्ति आदि किसी कामनाकी पूर्तिके लिये श्रद्धा तथा विधिपूर्वक हवन करता है तो वह अपने मनोरथके अनुसार उससे लाभ उठा लेता है
लाभ संसारके किसीके भी सङ्ग से नहीं हो सकता। संसारमें लोग पारसकी प्राप्तिको बड़ा लाभ मानते हैं, परंतु सत्सङ्गका लाभ तो बहुत ही विलक्षण है।
लेखक | गोस्वामी तुलसीदास-Goswami Tulsidas |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 301 |
Pdf साइज़ | 68.9 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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