ज्ञान गंगा – Gyan Ganga Book Pdf Free Download

“भक्ति मर्यादा”
“जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा । हिन्दु मुसलिम सिक्ख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा ।।”
प्रिय भक्तजनों !
आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पहले कोई भी धर्म या अन्य सम्प्रदाय नहीं था। न हिन्दु, न मुसलिम, न सिक्ख और न ईसाई थे। केवल मानव धर्म था। सभी का एक ही मानव धर्म था और है।
लेकिन जैसे-२ कलयुग का प्रभाव बढ़ता गया वैसे-2 हमारे में मत-भेद होता गया। कारण सिर्फ यही रहा कि धार्मिक कुल गुरुओं द्वारा शास्त्रों में लिखी हुई सच्चाई को दबा दिया गया।
कारण चाहे स्वार्थ हो या ऊपरी दिखावा। जिसके परिणाम स्वरूप आज एक मानव धर्म के चार धर्म और अन्य अनेक सम्प्रदाएँ बन चुकी हैं। जिसके कारण आपस में मतभेद होना स्वाभाविक ही है।
सभी का प्रभु / भगवान / राम / अल्लाह / रब/गोड/ खुदा / परमेश्वर एक ही है। ये भाषा भिन्न पर्यायवाची शब्द हैं। सभी मानते हैं कि सबका मालिक एक है लेकिन फिर भी ये अलग-2 धर्म सम्प्रदाएँ क्यों ?
यह बात बिल्कुल ठीक है कि सबका मालिक/रब / खुदा /अल्लाह/गोड/ राम / परमेश्वर एक ही है जिसका वास्तविक नाम कबीर है और वह अपने सतलोक / सतधाम / सच्चखण्ड में मानव सदश स्वरूप में आकार में रहता है।
तीर्थ स्थानों पर जाना निषेध :- किसी प्रकार का कोई व्रत नहीं रखना है। कोई तीर्थ यात्रा नहीं करनी, न कोई गंगा स्नान आदि करना, न किसी अन्य धार्मिक स्थल पर स्नानार्थ व दर्शनार्थ जाना है।
किसी मन्दिर व ईष्ट धाम में पूजा व भक्ति के भाव से नहीं जाना कि इस मन्दिर में भगवान है। भगवान कोई पशु तो है नहीं कि उसको पुजारी जी ने मन्दिर में बांध रखा है।
भगवान तो कण-कण में व्यापक है। ये सभी साधनाएँ शास्त्रों के विरुद्ध हैं।
जरा विचार करके देखो कि ये सभी तीर्थ स्थल (जैसे जगन्नाथ का मन्दिर, बद्रीनाथ, हरिद्वार, मक्का-मदीना, अमरनाथ, वैष्णो देवी, वन्दावन, मथुरा, बरसाना, अयोध्या राम मन्दिर, काशी धाम, छुड़ानी धाम आदि) मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च व ईष्ट धाम आदि ऐसे स्थल हैं जहाँ पर कोई संत रहते थे।
वे वहाँ पर अपनी भक्ति साधना करके अपना भक्ति रूपी धन जोड़ करके शरीर छोड़कर अपने ईष्ट देव के लोक में चले गए।
तत्पश्चात् उनकी यादगार को प्रमाणित रखने के लिए वहाँ पर किसी ने मन्दिर, किसी ने मस्जिद, किसी ने गुरुद्वारा, किसी ने चर्च या किसी ने धर्मशाला आदि बनवा दी ताकि उनकी याद बनी रहे और हमारे जैसे तुच्छ प्राणियों को प्रमाण मिलता रहे कि हमें ऐसे ही कर्म करने चाहिए जैसे कि इन महान आत्माओं ने किये हैं।
ये सभी धार्मिक स्थल हम सभी को यही संदेश देते हैं कि जैसे भक्ति साधना इन नामी संतों ने की है, ऐसी ही आप करो। इसके लिए आप इसी तरीके से साधना करने वाले व बताने वाले संतों की तलाश करो और फिर जैसा वे कहें, वैसा ही करो।
लेकिन बाद में इन स्थानों की ही पूजा प्रारम्भ हो गई जो कि बिल्कुल व्यर्थ है और शास्त्रों के विरुद्ध है।
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 336 |
Pdf साइज़ | 13 MB |
Category | Religious |
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