घाघ और भड्डरी की कहावते – Ghagh Aur Bhaddari Ki Kahawate Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
पाच कवि का कथन कि न्यायी राणा, अपने में क पड़ोसी, सपने मित्र, याकारी पुत्र, साध्वी पुत्री, विचारशील श्री और भाई की नसीब से ही प्राप्त होते है ।1१३॥
वेस चिदाह फीम अपना देव यौनी, न देने देव ॥२४॥
जो मनुष्य हा बैल और पतला कपड़ा खरीदता है, वह न- बूझकर अपने दवर्थी काम बिगाशता है तथा अन्त में ईश्वर के जपा मिष्या दोषारोप करता है। ॥ २४ ॥
डीठ पतोह चिया गरियार। खसम पीर न करे विचार ॥ घरे जलावन अल् न होय । कहते घाच अभागा जोय ॥ २५ ॥
दीठ पुत्रवधू, मुस्त लड़की, र स्वमाच प तथा विचारहीन पति धन तथा अन्न से रहित घरवाली स्त्रियों पड़ी थी अभागिनी होती हैं ॥ २५ ॥
विभर टहछआ चो धन, अरु नारी की बाढ़ यतने पर धन ना भटे, करहु से राह ॥ २६ ॥
आहाण से सेवा-कार्य कराने, कलई का व्यापार करने तथा कन्याओं की वृद्धि पर मी यदि न धन न पढे तो यड़े आावमियों से लड़ाई मोल लेनी चाहिये । इस अन्तिम उपाय से अवश्य ही मनका नाय हो जायेगा ।। १६ ।।
पावर कृषी, रहा भाई। क. पाच दुष् कहो मा ॥ ६१ ॥
नस काटने वाला कुता, बास काटने वाली औरत सबसे पहले लकी का पैदा होना कमजोर कृषि और पागल माई से तुतही तकलीफ उठानी पड़ती है। ऐसा पाथ का कथन है ॥ १२ ॥
भैस सुखी जय, मरिया परे। रॉब सुशी सब, सबका मरे ॥ १३ ॥भैस कीचड़ में बैठने से सुरा रहती है और रॉब स्त्री को बूमरी सभी स्त्रियों के विधवा हो जाने पर खुशी प्राप्त होती है॥ १३ ॥
खेती करे पनि को धाथे । ऐसा चूद थाह न पावै ॥ ३४ |॥
जो आदमी खेती करने के साथ ही साथ रोजगार भी करना चाहताहै, यह किसी और का नहीं होता। उसके दोनों काम बिगड़ बाते ॥४॥
भूगे इथिनी, चँदुली जोय। पूस की परखा, चिरलै होय ॥ ३५॥
लेखक | हरिप्रसाद त्रिपाठी-Hariprasad Tripathi |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 120 |
Pdf साइज़ | 3.16 MB |
Category | विषय(Subject) |
घाघ और भड्डरी की कहावतें – Ghagh Aur Bhaddari Ki Kahawaten Book/Pustak Pdf Free Download