भारत का भौतिक स्वरूप | Geographical Status Of India PDF In Hindi

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भारत के भौतिक स्वरूप के बारे में जानकारी – Information about the physical nature of India PDF Free Download

भौतिक स्वरूप

मुख्य भौगोलिक वितरण

भारत की भौगोलिक आकृतियों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है (चित्र 2.2)।

(1) हिमालय पर्वत श्रृंखला

(2) उत्तरी मैदान

(3) प्रायद्वीपीय पठार

(4) भारतीय मरुस्थल (5) तटीय मैदान

(6) द्वीप समूह

हिमालय पर्वत

भारत की उत्तरी सीमा पर विस्तृत हिमालय भूगर्भीय रूप से युवा एवं बनावट के दृष्टिकोण से वलित पर्वत श्रृंखला है। ये पर्वत श्रृंखलाएँ पश्चिम-पूर्व दिशा में सिंधु से लेकर ब्रह्मपुत्र तक फैली हैं।

हिमालय विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणी है और एक अत्यधिक असम अवरोधों में से एक है। ये 2.400 कि०मी० की लंबाई में फैले एक अर्द्धवृत्त का निर्माण करते हैं। इसकी चौड़ाई कश्मीर में 400 कि.मी. एवं अरुणाचल में 150 कि०मी० है।

पश्चिमी भाग की अपेक्षा पूर्वी भाग की ऊँचाई में अधिक विविधता पाई जाती है। अपने पूरे देशांतरीय विस्तार के साथ हिमालय को तीन भागों में बाँट सकते हैं। इन श्रृंखलाओं के बीच बहुत अधिक संख्या में घाटियाँ पाई जाती हैं।

सबसे उत्तरी भाग में स्थित श्रृंखला को महान या आंतरिक हिमालय या हिमाद्रि कहते हैं। यह सबसे अधिक सतत् श्रृंखला है. जिसमें 6,000 मीटर की औसत ऊंचाई वाले सर्वाधिक ऊँचे शिखर हैं। इसमें हिमालय के सभी मुख्य शिखर हैं।

उत्तरी मैदान को मोटे तौर पर तीन उपवर्गों में विभाजित किया गया है। उत्तरी मैदान के पश्चिमी भाग को पंजाब का मैदान कहा जाता है। सिंधु तथा इसकी सहायक नदियों के द्वारा बनाये गए इस मैदान का बहुत बड़ा भाग पाकिस्तान में स्थित है। सिंधु तथा इसकी सहायक नदियाँ झेलमए चेनाबए रावीए ब्यास तथा सतलुज हिमालय से निकलती हैं। मैदान के इस भाग में दोआबों की संख्या बहुत अधिक है।

गंगा के मैदान का विस्तार पप्पर तथा तिस्ता नदियों के बीच है। यह उत्तरी भारत में हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के कुछ भाग तथा पश्चिम बंगाल में फैला है। ब्रह्मपुत्र का मैदान इसके पूर्व विशेषकर असम में स्थित है।

उत्तरी मैदानों की व्याख्या सामान्यतः इसके उच्च में बिना किसी विविधता वाले समतल स्थल के रूप में की जाती है। यह सही नहीं है। इन विस्तृत मैदानों की भौगोलिक आकृतियों में भी विविधता है। आकृतिक भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदानों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है।

नदियाँ पर्वतों में नीचे उतरते समय शिवालिक की डाल पर 8 से 16 कि.मी. के चौड़ी पट्टी में गुटिका का निक्षेषण करती है। इसे ‘भावर’ के नाम से जाना जाता है। सभी सरिताएँ इस भावर पट्टी में विलुप्त हो जाती है।

इस पट्टी के दक्षिण में ये सरिताएँ एवं नदियाँ पुनः निकल आती हैं। एवं नम तथा दलदली क्षेत्र का निर्माण करती है, जिसे ‘तराई’ कहा जाता है। यह अन्य प्राणियों से भरा पर्ने जंगलों का क्षेत्रा बँटवारे के बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को कृषि योग्य भूमि उपलब्ध कराने के लिए इस जंगल को काटा जा चुका है। इस क्षेत्र के दुधवा राष्ट्रीय पार्क की स्थिति ज्ञात कीजिए।

उत्तरी मैदान का सबसे विशालतम भाग पुराने जलो का बना है। वे नदियों के बाद वाले मैदान के ऊपर स्थित हैं तथा वेदिका जैसी आकृति प्रदर्शित करते हैं। इस भाग को ‘भांगर’ के नाम से जाना जाता है।

इस क्षेत्र की मृदा में चूनेदार निक्षेप पाए जाते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में ‘कंकड़’ कहा जाता है। बाढ़ वाले मैदानों के नये तथा युवा निक्षेपों को खादर’ कहा जाता है। इनका लगभग = प्रत्येक वर्ष पुननिर्माण होता है, इसलिए ये उपजाऊ होते हैं तथा गहन खेती के लिए आदर्श होते हैं।

प्रायद्वीपीय पठार

प्रायद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला स्थल है जो पुराने क्रिस्टलीय आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से बना है। यह गोंडवाना भूमि के टूटने एवं अपवाह के कारण बना था तथा यही कारण है कि यह प्राचीनतम भूभाग का एक हिस्सा है।

इस पठारी भाग में चौड़ी तथा छिछली घाटियाँ एवं गोलाकार पहाड़ियाँ हैं। इस पठार के दो मुख्य भाग हैं- मध्य उच्चभूमि’ तथा ‘दक्कन का पठार’। नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो कि मालवा के पठार के अधिकतर भागों पर फैला है उसे मध्य उच्चभूमि के नाम से जाना जाता है।

विध्य श्रृंखला दक्षिण में सतपुड़ा श्रृंखला तथा उत्तर पश्चिम में अरावनी से घिरी है।

थार मरुस्थल (Thar Desert in Rajasthan in Hindi) :

द ग्रेट इंडियन डेजर्ट जिसे भारत का थार मरुस्थल भी कहा जाता है, भारत के पश्चिमी भाग में आता है। राजस्थान राज्य पूरा ही थार के रेगिस्तान में आता है। राजस्थान की जनसंख्या का 61 प्रतिशत हिस्सा इसी रेगिस्तानी इलाके में रहता है। इस वजह से थार मरुस्थलको विश्व का सबसे धनी रेगिस्तान भी कहा जाता है। थार के रेगिस्तान का कुछ हिस्सा पाकिस्तान के अंदर भी पड़ता है।

इसी रेगिस्तान के ऊपर भारत और पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा भी बनाई गई है। यह इलाका पानी की कमी की वजह से शुष्क और सूखा है। दिन गर्म और रातें अपेक्षाकृत ठंडी होती है। बलुआ मिट्टी यहां पर बहुतायत में पाई जाती है। इस रेगिस्तान में मिट्टी के छोटे छोटे टीले बन जातें हैं जिन्हें यहां धोरे कहा जाता है।

थार के रेगिस्तान में 25 सेंटीमीटर से भी कम वार्षिक वर्षा होती है। यहां की हवा शुष्क है। कंटीली झाड़ियां और ऐसे पेड़ पौधे पाए जाते हैं जो कम पानी में भी जीवित रह सकते हैं। प्राचीन सरस्वती नदी इसी रेगिस्तान से होते हुए गुजरात कच्छ के रण में बहती थी जो अब विलुप्त हो चुकी है।

प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau in Hindi) :

ऐसा भूभाग जो तीन तरफ से जल स्रोतों या पानी से घिरा हुआ हो, प्रायद्वीप कहलाता है। भारत का प्रायद्वीपीय पठार भी तीन तरफ से पानी से घिरा हुआ है जिसके पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण में हिन्द महासागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी है। यह आग्नेय और क्रिस्टलीय पत्थरों से बना एक फ्लैटलैंड हैं। पैंजिया जिसे सुपर कॉन्टिनेंट कहा जाता था के टूटने के बाद गोंडवानालैंड बना था।

जब यह भी टूटा तब इस पठारों का निर्माण हुआ था। इसे मुख्यतः दो हिस्सों में बांटा जाता है। पहला डेक्कन का पठार और दूसरा मध्य उच्च भूमि। नर्मदा नदी के उत्तर में मालवा के पठार वाला इलाका उच्च भूमि कहलाता है। नर्मदा के दक्षिण में स्थित त्रिकोणीय आकृति वाले हिस्से को डेक्कन का पठार कहा जाता है।

भारत के तटीय मैदान (Coastal Plains of India in Hindi) :

भारत का मुख्य भूमि प्रदेश तीन तरफ से पानी से घिरा हुआ है और भारत के तटीय मैदान प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर समानांतर पाए जाते हैं इन्हें मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है जिनमें से पहला है पूर्वी तटीय मैदान और दूसरा है पश्चिमी तटीय मैदान। ये दोनों तटीय मैदान भारत के कन्याकुमारी में आकर सबसे अंतिम दक्षिणी छोर पर मिल जाते हैं। तटीय मैदान भारत के भौतिक स्वरूप महत्वपूर्ण रूप हैं। भारत की कुल तटीय रेखा की लम्बाई 7516.6 किलोमीटर है।

पूर्वी तटीय मैदान (East Coast Plain in Hindi) :

इन्हें पूर्वी घाट भी कहा जाता है। पूर्वी तटीय मैदान भारत के पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में ज़्यादा फैला हुआ और सुखा है। पश्चिमी तटीय मैदान पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पुडुचेरी राज्यों में फैला हुआ है। पूर्वी तटीय मैदानों में बहने वाली कावेरी, महानदी, गोदावरी और कृष्ना नदियाँ यहाँ पर प्रमुख डेल्टा बनाती हैं।

पूर्वी तटीय मैदान में पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा कम बंदरगाह है। पुलिकट झील और चिल्का झील इस तटीय मैदान के और भारत के भौतिक स्वरूप में महत्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताएं हैं। पूर्वी तटीय मैदान को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। तमिलनाडु पुडुचेरी और आंध्र प्रदेश का तटीय मैदान संयुक्त रूप से कोरोमंडल मैदान कहलाता है। आंध्र प्रदेश और उड़ीसा का संयुक्त उत्तरी सिरकार तटीय मैदान कहलाता है।

पश्चिमी तटीय मैदान (Western Coastal Plain in Hindi) :

इन्हें पश्चिमी घाट भी कहा जाता है। भारत के पश्चिमी तटीय मैदान गुजरात से लेकर दक्षिण में केरल तक फैले हुए हैं। पश्चिमी तटीय मैदान भारत के 5 राज्यों को मिलाकर बनती है इनमें गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक और केरल राज्य शामिल हैं। पश्चिमी तटीय मैदान का इलाका संकरी पट्टी की तरह है जो उत्तर से दक्षिण तक लगभग 25 किलोमीटर लंबा है। मैदान बीच में संकरा है और बाकी हिस्सों में इसकी चौड़ाई ज़्यादा है।

यहां बहने वाली नदियां किसी भी तरह का डेल्टा नहीं बनाती है। पश्चिमी तट के कई हिस्से हैं जिन्हें कच्छ की खाड़ी, खम्भात की खाड़ी, कोंकण तट और मालाबार तट कहते हैं। पश्चिमी तटीय मैदान भारत के भौतिक स्वरूप में महत्वपूर्ण रूप हैं।

भारतीय द्वीप समूह (Indian Islands in Hindi) :

भारत के भौतिक स्वरूप में दो प्रमुख द्वीप समूह आते हैं जिन में से पहला है अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जो बंगाल की खाड़ी में स्थित है और दूसरा है लक्षद्वीप समूह जो अरब सागर में स्थित है।भारत के भौतिक स्वरूप अब इन दोनों के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल करेंगे :

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (बंगाल की खाड़ी) :

बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूहों की बात करें तो इसमें लगभग पांच सौ बहत्तर छोटे बड़े द्वीपों को शामिल किया गया है। ये सभी द्वीप आकर में बड़े हैं। जबकि लेब्रिन्थ और रिची द्वीप समूह आइलेट्स कहलाते हैं।

इन दीप समूह का निर्माण बर्मा प्लेट और भारतीय प्लेटों के मध्य टकराव की वजह से हुआ था। बंगाल की खाड़ी में स्थित दीप समूह को मोटे तौर पर दो भागों में बांटा गया है – उत्तरी द्वीप समूह और दक्षिणी द्वीप समूह। उत्तरी द्वीप समूह को अंडमान द्वीप समूह कहा गया है और दक्षिणी द्वीप समूह को निकोबार दीप समूह कहा गया है। दोनों मिलाकर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह कहलाते हैं।

उत्तरी और दक्षिणी द्वीप समूह को एक समतल और कम गहरे पानी के जल स्रोत से अलग किया गया है जिसे ‘टेन डिग्री चैनल’ कहा जाता है। इन द्वीप समूह में से कुछ तो प्राकृतिक रूप से ज्वालामुखी हैं। भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी निकोबार द्वीप समूह के ‘बैरन’ नामक द्वीप पर पाया जाता है। इनमे से कुछ द्वीपों पर सुंदर समुद्री तट पाए जाते हैं जबकि कुछ द्वीप पर प्रवाल निक्षेप पाए जाते हैं।

भूमध्य रेखा पर स्थित होने की वजह से यहां पर भूमध्य रेखीय प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं इसलिए यहां पर बारिश भी संवहनीय प्रकार की होती है जिसमें सतह की गर्म हवा ऊपर पहुंच कर फैल जाती है फिर ठंडी होकर बारिश के रूप में वापस जमीन पर बरसती है।

लक्षद्वीप (अरब सागर) :

लक्षद्वीप और मिनिकॉय नामक द्वीप समूह इसमें शामिल किये गए हैं। केरल राज्य के समुद्री तट से इनकी दूरी दो सौ अस्सी किलोमीटर से चार सौ अस्सी किलोमीटर तक हैं। लक्षद्वीप समूह के सारे के सारे द्वीप प्रवाल निक्षेपों के बने हुए हैं। इस द्वीप समूह में कुल छत्तीस द्वीप पाए जाते हैं जिनमें से ग्यारह द्वीपों पर इंसानी बसावट पाई जाती है।

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