गीता प्रबोधनी | Geeta Prabodhani Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परन्तप। कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः ॥ हे परन्तप! ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रोंके कर्म स्वभावसे उत्पन्न हुए तीनों गुणोंके द्वारा विभक्त किये गये हैं।
व्याख्या- कर्मयोगके प्रकरणमें भगवान्ने नियत कर्मोके त्यागको अनुचित बताते हुए फल एवं आसक्तिका त्याग करके नियत कर्मोको करनेकी बात कही (गीता १८। -९ ), और सांख्ययोगके प्रकरणमें नियत कर्मको कर्तृत्वाभिमान,
फलेच्छा तथा राग-द्वेषसे रहित होकर करनेकी बात कही (गीता १८ । २३ ) । अब भगवान् यह बताते हैं कि किस वर्णके लिये कौन-से कर्म नियतकर्म हैं और उन नियत कर्मोको कैसे किया जाय?
मनुष्य जो कुछ भी कर्म करता है, उसके अंतःकरण में उस कर्मके संस्कार पड़ते हैं और उन संस्कारोंके अनुसार उसका स्वभाव बनता है। इस प्रकार पूर्व के अनेक जन्मों में किये हुए
कर्मोंके संस्कारोंके अनुसार मनुष्यका जैसा स्वभाव होता है, उसीके अनुसार उसमें सत्त्व, रज और तम-तीनों गुणोंकी वृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं। इन गुणवृत्तियोंके तारतम्यके अनुसार ही ब्राह्मण क्षत्रिय,
वैश्य और शूद्रके कर्मोका विभाग किया गया है (गीता ४। १३) । कारण कि मनुष्यमें जैसी गुणवृत्तियाँ होती हैं, वैसा ही वह कर्म करता है। पूर्वपक्ष- चौथे अध्यायमें भगवान्ने कहा था
चारों वर्णों की रचना मैंने गुणों और कर्मोके विभागपूर्वक की है-‘गुणकर्मविभागशः’ (४। १३) । पर यहाँ भगवान् कहते हैं कि चारों वर्णों के कर्म स्वभावसे उत्पन्न हुए तीनों गुणोंके द्वारा विभक्त किये गये हैं-‘स्वभावप्रभवैर्गुणैः’।
इसका सामञ्जस्य कैसे करेंगे? उत्तरपक्ष- चौथे अध्यायमें तो चारों वर्णों के उत्पन्न होनेकी बात कही गयी है और यहाँ चारों वर्णों के कर्मोकी बात कही गयी है। तात्पर्य यह हुआ
चौथे अध्यायमें भगवान्ने बताया कि चारों वर्णों का जन्म पूर्वजन्मके गुणोंके अनुसार हुआ है, और यहाँ बताते हैं कि जन्मके बाद चारों वर्णोंके अमुक-अमुक कर्म होने चाहिये,
लेखक | रामसुख दास-Ramsukha Das |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 544 |
Pdf साइज़ | 22.2 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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