गौरव का प्रतीक – Gaurav Ka Pratik Book/Pustak Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
आपके क यना रहे। सो, अपनी का और स्वार्थ को भूनकर इस चक्कर ममता।””उसमें सुमने किया । थी के प भर की रानी है विश्वास करते-करते अब तो बूड़ी हो ” मुंबाल इस पोट थे दवे नवर में बोला, “वेड लाव पहले तो धारा मंडण
श्री धारका न या, धौर बर बड़ी-बड़ी बापीरों धोर मंडवों [को [छोडकर द] बगह भापकी पान पर रही है। पन्द्रावती की वैषार क्ी हुई देपा भी गर कुछ न कर सकी तो पापडे कारण।”तुम्हारी वे बिकायतें गुग-धुनययी हूँ ” “अभी और पगी ।”
“मैं पावित होकर नहीं जा सकती। तुम्हारे जन्मदाता भी है जिन्होंने सारा बीचन गाम-बाच पचिकार भोपकर बिता दिया । बिन्तु मुछ ऐसा कसे हो ?””मैं ऐसा जीवन बिताने को कब कहता है । परन्तु एक से दूसरे को बड़ा कर सत्ता क्यों वयायी
जाय बाबीरकषारों घौर बंडलाचिकारियों को एतत] को] निर्बंधित बनाने के लिए राजपूतों को नीचा दार ड को धष्ठता पर्दों से जाये। क्या इस तप पाटन शक्तिशाली बनेगा। यह तो स्वप्न दी।” “मुझे तो तुम्हारा ही स्वज मालूम होता है।
जब तक यह दोनों पक्ष एक दूसरे को निबंन न कर देगे, तब तक राजा को कौन पछता है ?””निर्वलता पर राम स्थापित करना हों का बेच है। घासो माबूब] है, इसका क्या परिचय होगा ? हमारे बाव मे ऊबकर ह की स्थापना की पोर
महामन्त्री ने पममो कहा। रानी वे अरा व्यंग से -“वह अपने आप सीधा हो जायेगा । कोई तूफान उठ खड़ा हुया तो उसका हाथ सबल हो उठेगा। सारे गाँवों के राजपूत उसकी तरफ हो जायेंगे । मैं तद बीर से उसे निबल बना देना चाहता
“वह अपने आप सीधा हो जायेगा । “वह अपने आप सीधा हो जायेगा । कोई तूफान उठ खड़ा हुया तो उसका हाथ सबल हो उठेगा। सारे गाँवों के राजपूत उसकी तरफ हो जायेंगे । मैं तद बीर से उसे निबल बना देना चाहता
लेखक | कन्हैयालाल मुंशी-Kanaiyalal Munshi |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 220 |
Pdf साइज़ | 9.7 MB |
Category | प्रेरक(Inspirational) |
गौरव का प्रतीक | Gaurav Ka Pratik Book/Pustak Pdf Free Download