दिमाग ही दुश्मन है | Mind Is Enemy PDF In Hindi

दिमाग ही दुश्मन है – Dimag Hi Dushman Hai Book/Pustak Pdf Free Download

इसके बाद से मैने इस पर सोचना शुरू किया मैं इस तलाश मै लग गया कि सचमुच मैं चाहता क्या हूँ। इस तलाश में दिनों-दिन मेरी स्थिति विचित्र- सी होती गई।

मैं इस प्रश्न के उत्तर को जितना सरल और सीधा समझता था, अब यह उतना ही कठिन और जटिल होता जा रहा था।

मुझे लगा कि मैं एक साथ इतनी खरी चीजें चाहता उनके बीच से किसी एक चीज पर स्थिर हो पाना बहुत मुश्किल हो गया है। मैं आज कुछ चाहता हूँ तो कल कुछ और चाहने लगता हूँ।

इतना ही नहीं, बल्कि मैं आज जो चाहता हूँ, उसका भविष्य के मेरे चाहने से कोई तालमेल नहीं है। जैसे-जैसे मेरी कह खोज बढ़ती गई, वैसे-वैसे जो. कृष्णमूर्ति के उस एक वाक्य की दीप्ति मेरे अंदर फ्रमशः फैलती चली गई।

मुझे ऐसा लगा, माने इस प्रश्न के रूप में यू.जी. कृष्णमूर्ति ने मेरे अंदर यूरेनियम का कोई एक टुकड़ा रख दिया हो, जो समय-समय विस्फोटित हो रहा है। सचमुच, वह छोटा-सा सरल वाक्य फिरता बड़ा और जटिल बन गया है।

इसके बाद से मेरी यह तलाश आज तक जारी है। अपने हने को तलाश 1 की इस प्रक्रिया में मैंने न जाने कितनी चाहतों को निरस्त किदा है, और किडनी १ नई चारों पैदा हुई हैं।

इस प्रक्रिया में निश्चित रूप से मुझे भटकने से बचाकर एक निश्चित दिशा दी है, और मेरे अंदर एक आत्मविश्वास पैदा किया है।

एक – ऐसा आत्मविश्वास पैदा किया है, जिसके पैर अपनी ठोस जमीन पर हैं। निश्चित से इसमें यू जी. के केवल उस एक वाक्य का ही नहीं, बलि उनकी पुस्तकों का भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सबसे बड़ा योगदान मेरे वरिष्ठ में श्री प्रेम नरोजा का है,

लेखक यू .जी . कृष्णमूर्ति-U.G.Krishnamurti
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 168
Pdf साइज़7.4 MB
Categoryप्रेरक(Inspirational)

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