दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 | CRPC All Sections List PDF In Hindi

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दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 – CrPC All Sections List PDF Free Download

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973

(1974 का अधिनियम संख्यांक 2)

दण्ड प्रक्रिया संबंधी विधि का समेकन और संशोधन करने के लिए भारत गणराज्य के चौबीसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :

अध्याय 1: प्रारंभिक

  1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 है।

(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है :

परंतु इस संहिता के अध्याय 8, 10 और 11 से संबंधित उपबंधों से भिन्न, उपबंध,

(क) नागालैंड राज्य को ;

(ख) जनजाति क्षेत्रों को,

लागू नहीं होंगे, किंतु संबद्ध राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा, ऐसे उपबंधों या उनमें से किसी को, यथास्थिति, संपूर्ण नागालैंड राज्य या ऐसे जनजाति क्षेत्र अथवा उनके किसी भाग पर ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक या पारिणामिक उपान्तरों सहित लागू कर सकती है जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं।

स्पष्टीकरण – इस धारा में, “जनजाति क्षेत्र” से वे राज्य क्षेत्र अभिप्रेत हैं जो 1972 की जनवरी के 21वें दिन के ठीक पहले, संविधान की पष्ठ अनुसूची के पैरा 20 में यथानिर्दिष्ट असम के जनजाति क्षेत्रों में सम्मिलित थे और जो शिलांग नगरपालिका की स्थानीय सीमाओं

अध्याय 2: दंड न्यायालयों और कार्यालयों का गठन

  1. दंड न्यायालयों के वर्ग-उच्च न्यायालयों और इस संहिता से भिन्न किसी विधि के अधीन गठित न्यायालयों के अतिरिक्त, प्रत्येक राज्य में निम्नलिखित वर्गों के दंड न्यायालय होंगे, अर्थात् : –

(i) सेशन न्यायालय ;

(ii) प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट और किसी महानगर क्षेत्र में महानगर मजिस्ट्रेट ;

(iii) द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट; और

(iv) कार्यपालक मजिस्ट्रेट ।

  1. प्रादेशिक खंड (1) प्रत्येक राज्य एक सेशन खंड होगा या उसमें सेशन खंड होंगे और इस संहिता के प्रयोजनों के लिए प्रत्येक सेशन खंड एक जिला होगा या उसमें जिले होंगे :

परंतु प्रत्येक महानगर क्षेत्र, उक्त प्रयोजनों के लिए, एक पृथक् सेशन खंड और जिला होगा।

(2) राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात्, ऐसे खंडों और जिलों की सीमाओं या संख्या में परिवर्तन कर सकती है।

(3) राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात्, किसी जिले को उपखंडों में विभाजित कर सकती है और ऐसे उपखंडों की सीमाओं या संख्या में परिवर्तन कर सकती है।

(4) किसी राज्य में इस संहिता के प्रारंभ के समय विद्यमान सेशन खंड, जिले और उपखंड इस धारा के अधीन बनाए गए समझे जाएंगे.

उद्देश्यों और कारणों का कचन

हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत की एक ऐसे देश के रूप में परिकल्पना की है जिसमें सभी धर्मों और जातियों के लोगों का सम्मान किया जाता है और जो जाति, पंथ, रंग, आस्था, संस्कृति, पाक शैली, वेशभूषा और रीति रिवाजों के अंतर के बावजूद अखंड बना रह सकता है और अपने मिश्रित और बहुलवादी लोकतंत्र को कायम रख सकता है।

यही मूलभूत अखंड व्यवस्था भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में जोड़ती है।

भारत का संविधान सभी व्यक्तियों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता, विधि के समान संरक्षण की गारंटी देता है और लिंग के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है तथा नागरिकों के सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए विशेष उपबंध करता है।

यह नोट करना आवश्यक है कि समलैंगिक और उभयलिंगी व्यक्तियों सहित विपरीतलिंगी व्यक्ति तथा पुरुष देश की दांडिक विधियों के अंतर्गत यौन शोषण, हमले या उत्पीड़न के पीड़ितों के दृष्टिकोण से तथा बलात्संग आदि से संरक्षण हेतु इन विधियों के दायरे से बाहर है जबकि इसकी आसन्न आवश्यकता है।

इस विधेयक का आशय बलात्संग और भेदभाव की शिकार हुई महिलाओं के अनुभवों की गंभीरता को कम करना नहीं है। लेकिन जैसे-जैसे समाज परिपक्व होता है, हमें सभी के लिए सहानुभूति पैदा करनी होगी और इसमें पुरूष और विपरीतलिंगी बलात्संग के पीड़ित भी शामिल हैं।

हमें पुरुषों और विपरीतलिंगी व्यक्तियों के बलात्संग पर अपनी चुप्पी तोड़ने और उन सामाजिक मान्यताओं पर सवाल खड़े करने की आवश्यकता है जो मर्दानगी का महिमामंडन करती है और पुरुषों तथा विपरीतलिंगी व्यक्तियों के बारे में रूढ़िवादी धारणा बनाती है और उन्हें अपनी भावनाओं को छिपाने के लिए विवश करती है।

यह विधेयक यौन शोषण, उत्पीड़न और यौन हमले से संबंधित विधियों को बदलती हुई सामाजिक नैतिकता के अनुरूप बनाने का प्रयास है।

संयुक्त राष्ट्र के संकल्पों और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 के अनुसरण में ऐसे देशों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हुई है जिन्होंने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 के अनुरूप यौन अपराधों की लिंग-तटस्थ बनाने के लिए विधियों को संशोधित किया है।

63 से अधिक देश अपनी में संशोधन करके यौन अपराधों के संबंध में लैंगिक तटस्थता को पहले ही प्रभावी कर चुके है ताकि उन्हें संयुक्त राष्ट्र और मानवता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के अनुरूप बनाया जा सके।

लेखक Government
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 207
PDF साइज़5 MB
CategoryLaw

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