मैं कौन हूँ – Main Kaun Hun Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
जब दूसरे विचार उदित होते हैं तो व्यक्ति को उन ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि अन्वेषण करना चाहिए कि वे विचा किसके लिए उदित होते हैं : चाहे जितने भी विचार उदित हो हैं, तो क्या फर्क पड़ता है ?
जैसे ही कोई विचार उदित होत है, व्यक्ति को तत्परता से खोज करनी चाहिए कि किसके लिए यह विचार उदित हुआ । उत्तर आएगा – मेरे लिए ।
इस पर जब व्यक्ति खोज करता है कि ‘मैं कौन हूँ तो मन अपने स्रोत में वापिस चला जाता है और उदित हुआ विचार शान्त हो जाता है ।
इसके बारम्बार अभ्यास से मन अपने स्त्रोत में रहने की दक्षता विकसित कर लेता है । मन जो सूक्ष्म है जब बुद्धि एवं झानेन्द्रियों के द्वारा बाहर जाता है तो स्थूल नाम, रूप प्रकट होते है और जब यह हृदय में निवास करता है तो नाम रूप विलुप्त हो जाते है ।
मन को बाहर जाने से रोककर, उसे इदय में स्थिर करने को अहंमुख या अन्तर्मुखी होना कहते है । मन को हृदय से बाहर जाने देने को बहिर्मुखी होना कहते है । इस प्रकार जाय मन हदय में निवास करता है तो “मै जो सभी विचारों का मूल है,
लुप्त हो जाता है और सदैव अस्तित्वमान स्वरूप प्रकाशित होता है । व्यक्ति चाहे जो भी कर उसे बिना मके लहंकार के करना शरीर में जो मैं के रूप में उदित होता है, वह मन है ।
जब कोई खोज करता है कि सर्वप्रथम ‘म’ का विचार शरीर में कहाँ से उदित होता है तो उसे पता चलता है कि यह हदय से उदित होता है ।
वह मन के उदित होने का स्रोत है । यदि कोई लगातार मैं में सोचता है तो भी वह उस स्थान (स्रोत) पर पहुँच जाएगा । मन में उदित होने वाले समस्त विचारों में ‘मैं’ का विचार प्रथम है ।
लेखक | श्री रमण महर्षि- Raman Maharishi |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 28 |
Pdf साइज़ | 3.8 MB |
Category | प्रेरक(Inspirational) |
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कम शब्दों मैं, अति मूल्यवान बात, धन्यवाद