मैं कौन हूँ रमण महर्षि | Main Kaun Hun PDF In Hindi

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मैं कौन हूँ – Main Kaun Hun PDF Free Download

मैं कौन हूँ रमण महर्षि

जब दूसरे विचार उदित होते हैं तो व्यक्ति को उन ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि अन्वेषण करना चाहिए कि वे विचा किसके लिए उदित होते हैं : चाहे जितने भी विचार उदित हो हैं, तो क्या फर्क पड़ता है ?

जैसे ही कोई विचार उदित होत है, व्यक्ति को तत्परता से खोज करनी चाहिए कि किसके लिए यह विचार उदित हुआ । उत्तर आएगा – मेरे लिए ।

इस पर जब व्यक्ति खोज करता है कि ‘मैं कौन हूँ तो मन अपने स्रोत में वापिस चला जाता है और उदित हुआ विचार शान्त हो जाता है ।

इसके बारम्बार अभ्यास से मन अपने स्त्रोत में रहने की दक्षता विकसित कर लेता है । मन जो सूक्ष्म है जब बुद्धि एवं झानेन्द्रियों के द्वारा बाहर जाता है तो स्थूल नाम, रूप प्रकट होते है और जब यह हृदय में निवास करता है तो नाम रूप विलुप्त हो जाते है ।

मन को बाहर जाने से रोककर, उसे इदय में स्थिर करने को अहंमुख या अन्तर्मुखी होना कहते है । मन को हृदय से बाहर जाने देने को बहिर्मुखी होना कहते है ।

इस प्रकार जाय मन हदय में निवास करता है तो “मै जो सभी विचारों का मूल है,

लुप्त हो जाता है और सदैव अस्तित्वमान स्वरूप प्रकाशित होता है । व्यक्ति चाहे जो भी कर उसे बिना मके लहंकार के करना शरीर में जो मैं के रूप में उदित होता है, वह मन है ।

जब कोई खोज करता है कि सर्वप्रथम ‘म’ का विचार शरीर में कहाँ से उदित होता है तो उसे पता चलता है कि यह हदय से उदित होता है ।

वह मन के उदित होने का स्रोत है । यदि कोई लगातार मैं में सोचता है तो भी वह उस स्थान (स्रोत) पर पहुँच जाएगा । मन में उदित होने वाले समस्त विचारों में ‘मैं’ का विचार प्रथम है ।

आत्म-विचार के अतिरिक्त कोई उपयुक्त उपाय नहीं हैं । यदि दूसरे उपायों से मनः नियंत्रण का प्रयास किया जाता है तो लगता है कि मन नियंत्रित है किन्तु वह पुनः प्रकट हो जाता है ।

प्राणायाम के द्वारा भी मन स्थिर हो जाएगा किन्तु वह तभी तक नियंत्रित रहेगा जब तक कि प्राण नियंत्रित है और जब श्वसन आरम्भ होता है तो मन पुनः गतिशील हो जाता है तथा संचित वासनाओं के अनुरूप भटकेगा ।

मन और प्राण दोनों ही का स्रोत एक ही है । निश्चित ही विचार मन का स्वरूप है ।

‘मैं’ का विचार मन का प्रथम विचार है और यही अहंकार है ।

जहाँ से अहंकार उत्पन्न होता है, वहीं से श्वसन भी आरंभ होता है ।

इसलिए जब मन स्थिर होता है तो श्वाँस नियंत्रित हो जाता है और जब श्वाँस नियंत्रित होता है तो मन स्थिर हो जाता है । किन्तु सुषुप्ति में यद्यपि मन स्थिर रहता है किन्तु श्वाँस नहीं रुकता है ।

यह ईश्वरीय इच्छा के कारण है ताकि शरीर सुरक्षित रहे और लोग यह नहीं समझें कि यह मर गया है ।

जाग्रत एवं समाधि की अवस्थाओं में, जब मन स्थिर हो जाता है तो श्वाँस नियंत्रित रहता है ।

प्राण मन का स्थूल रूप है । मृत्यु के क्षण तक, मन प्राण को शरीर में रखता है ।

जब शरीर मर जाता है तो मन प्राण को साथ ले जाता है । इसलिए प्राणायाम का अभ्यास मनोनिग्रह में सहायक तो है किन्तु यह मन का नाश नहीं करता है ।

लेखक श्री रमण महर्षि- Raman Maharishi
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 28
Pdf साइज़3.8 MB
Categoryप्रेरक(Inspirational)

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