ब्रह्मचर्य ही जीवन है | Bramhacharya Hi Jeevan Hai PDF

ब्रह्मचर्य ही जीवन है – Bramhacharya Hi Jeevan Hai Book/Pustak PDF Free Download

ब्रह्मचर्य की महिमा(Importance)

न तपस्तप इत्याहुर्ब्रह्मचर्य्य तपोत्तमम् । ऊर्ध्वरेता भवेद् यस्तु स देवो न तु मानुपः ॥ १ ॥

भगवान् कैलाशपति शंकर कहते है:- “ब्रह्मचर्य अर्थात् वीर्य धारण यही उत्कृष्ट तप है। इससे बढकर तपश्चर्या तीनों लोकों मे दूसरी कोई भी नहीं हो सकती ।

ऊर्ध्वरेता पुरुष अर्थात् अखण्ड त्रीर्य का धारण करने वाला पुरुप इस लोक मे मनुष्य रूप प्रत्यक्ष देवता ही है ।”

अहा हा ! क्या ही महान् इस ब्रह्मचर्य की महिमा है । परन्तु आज हम इस महानता को भूल कर नीचता की धूल मे दास्यभाव से विचरण कर रहे हैं।

कहाँ हमारे वीर्यवान, सामर्थ्य-संपन्न पूर्वज और कहाँ हम उनकी निर्वीर्य और पद-दलित दुर्बल सन्तान ! घोफ ! कितना यह आकाश पाताल का अन्तर हो गया है !

हमारा कृतना भयंकर पतन हुआ है ? इसमे तनिक भी सन्देह नहीं है कि मारा यह जो भोपण पतन हुआ है इसका मुख्य कारण एक मात्र हमारे “ब्रह्मचर्य का हास” ही है।

ब्रह्मचर्य के नाश से ही हमारा संपूर्ण सत्यानाश हो गया है। हमारा सुख, आरोग्य, तेज, विद्या, बल, सामर्थ्य, स्वातन्त्र्य और धर्म सम्पूर्ण हमारे ब्रह्मचर्य के ऊपर ही सर्वथा निर्भर है। ब्रह्मचर्य ही हमारे आरोग्य मन्दिर का एक मात्रं आधारस्तंभ है।

हमारे “प्रक्षचर्य का वास ही है। प्राचर्य के नाश से ही हमारा संपूर्ण सत्यानाश हो गया है। हमारा सुख, आरोग्य, तेज, विद्या, बल, सामर्थ्य, स्वानत्त्रय और धर्म सम्पूर्ण हमारे ब्रह्मचर्य के ऊपर ही सर्वधा निर्भर है।

ब्रह्मचर्य ही हमारे आरोग्य- मन्दिर का एक मात्र आधारस्तंभ है। आधारस्तंभ के टूटने से जैसे सम्पूर्ण भवन ढह जाता है, बैसे ही वीर्यनाश होने से सम्पूर्ण शरीर का भी नाश अति शोध हो जाता है ।

जैसे जैसे हमारे ब्रह्मचर्य का नाश होजाता है, बैसे बैसे हमारे स्वास्थ्य का मो नाश हो जाता है। “मरणं बिन्डुपातेन जीवनं विन्दु धारणा यह भगवान् शंकर का असिट सिद्धान्त है। m को नशा बरने बाला पुरुष कभी

बच नहीं सफता और बीर्य को धारण फरने वाला कमी अकाल में मर नहीं सकता। तत्वतः व वस्तुतः ब्रह्मचर्य ही जीवन है और बीर्यनाश ही मृत्यु है। ब्रह्मचर्य के अभाव से हम किसी अवस्था में सुखी और उन्नत न हो सकते ।

प्रद्माचर्य ही हमारे इस लोक ब परलोक के मुख का एक मात्र आधार है। यही नहीं किन्तु ब्रह्मचर्य ही हमारे चारों पुरुषार्थों का मुख्य मूल है मुक्ति का प्रदाता है बीर्य अत्यन्त अनमोल वस्तु है।

लेखक शिवानंद-Shivanand
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 194
Pdf साइज़6.3 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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